लालाजी और अंग्रेजी राज का दरोगा / सुभाष चन्दर
कहानी काफी पुरानी है। अंग्रेजों के ज़माने की। उस समय देश में दो तरह के अंग्रेज राज कर रहे थे। गोरे अंग्रेज और काले अंग्रेज, गोरे अंग्रेजो का काम था- भारत नाम की सोने की चिड़िया के परों को बड़े करीने से उखाड़ना और फिर उन्हें महारानी विक्टोरिया के मालखाने में जमा करना। वे वहाँ से वेल्डन के रूप में रसीद लेते और फिर अपने काम में जुट जाते। फुर्सत मिलती तो देश संभाल लेते। काले अंग्रेज उनके अनुयायी थे। वे गोरे अंग्रेजो से सीखी गयी कला को चिड़िया के बदन पर अजमाते। वे चिड़िया के बदन से मांस नोचने के पुनीत काम को अंजाम देते। चिड़िया खुश थी कि उसके शरीर का बोझ कम हो रहा था और फ्री में उसकी डाईटिंग हो रही थी। चिड़िया खुश तो देश खुश। देश खुश था तो आम आदमी नाम का एक जीव भी खुश था।गाहे बगाहे वह अपने अधनंगे बदन की हड्डियों का प्रदर्शन करके, अपनी ख़ुशी दर्शाता रहता था इसी खुशनुमा माहौल में देश का काम चल रहा था।
इसी खुशहाल देश के एक कस्बे में लाला रामदीन रहते थे। बड़े शरीफ आदमी थे। हमेशा मीठा बोलते थे और कम तोलते थे। उस दिन भी वह अपनी दुकान पर बैठे तोलन विद्या के क्षेत्र में नए आविष्कार कर रहे थे तभी एक सिपाही उनकी दुकान पर प्रगट भया। लाला का उसे देखते ही माथा ठनक गया-ज़रूर लौंडे ने कोई गुल खिलाया होगा। उन्होंने लड़के के गुल अपनी जेब की तराजू पर तोले, फिर बोले, "कहो दीवान जी कैसे आना हुआ, बैठो, उन्होंने शब्दों में मिसरी घोलते हुए उससे तशरीफ़ रखने की गुजारिश की। पर वह अंगरेजी राज का सिपाही था, अदने से लाला के कहने पर भला इतनी महंगी तशरीफ़ कैसे धर देता। उसने तशरीफ़ नहीं रखी और खड़े खड़े ही हुंकारा, -"लाला, तेरे लौंडे ने ननुआ की लौंडिया की इज्ज़त खराब की है। थाने में बंद है।जल्दी चल, दरोगा जी ने बुलाया है।"इतनां सुनते ही लाला को सच्ची-मुच्ची का सांप सूंघ गया। सो कुछ देर वह बेहोशी को प्राप्त भये। होश में आते ही उन्होंने एक हाथ से अपना माथा ठोंका और दूसरे हाथ से अपनी जेब कसके पकड़ ली। उसके बाद गिनकर एक हज़ार एक लानते बेटे को भेजी,"कमबख्त ने कभी कोई काम सलीके से नहीं किया। अच्छे भले रिश्ते आ रहे थे। लाखो का मामला जमना था। रेट सीधा बीसियों हजार नीचे चला जायेगा, ऊपर से थाना कचहरी में चपत पड़ेगी सो अलग।"
इलाके के दरोगा के बारे में उनकी राय थी कि वाह वैसे तो दयालु प्रवृति का है, पर भेड़ों के बदन से ऊन भर उतारने का उसे शौक है। यहाँ तो भेड़ को खुद थाने आना था। सो उसकी जेब में भारी ऊन कैसे बचती, सो कटवाने के लिए लालाजी ने जेब भरी और पहुँच गए थाने।
जेल में काफी तबीयत से ठुकाई कार्यक्रम चल रहा था। लालाजी के आने के बाद उसमें और बढोत्तरी हुई. सुपुत्र महाराज की चीखें, कटते बकरे की चीखों से कम्पटीशन करने लगी। लालाजी यह देखकर काफी प्रभावित हुए. अपने स्वर में हीं...हीं...की मात्रा बढ़ाते हुए दरोगा जी से बोले, "हुजूर, ये क्या कर रहे हैं? बच्चा जख्मी हो जायेगा। इलाज में बहुत खर्चा आएगा। अब छोड दीजिए, अब ये ऐसी कोई गलती नहीं करेगा।"
अपनी जान में लालाजी ने बड़ी मार्के की बात कही थी। सतयुग होता तो ऐसी चाशनी भरी बातों से लड़का बाइज्जत छूट जाता, ऊपर से लालाजी की तारीफ होती सो अलग, पर यह कमबख्त कलियुग था। कलियुग में भी जो जगह थी, वह थाना था। थाने में दरोगा था, वह भी अंग्रेजी राज का। मामला तो बिगडना ही था सो बिगड़ा।
दरोगा ने लाला को लगते हाथों ले लिया, "चुप रह बे लाला। इस सेल को तो में जान से ही मार दूँगा, स्साले ने सत्रह साल की लड़की बिगाड़ी है। इसका मजा में इसे चखाऊंगा। सालो साल सडाऊँगा साले को" कहकर उसने लाला के सपूत के पिछवाड़े मैं दो तीन बेल्टें और रसीद कर दीं।
लालाजी ने दरोगा की बात सुनकर भोलेपन से कहा, "हुजूर सड़ाएंगे कैसे? क्या हवालात में कोढ़ फैली है?
दरोगा चिहुंक गया, उसने लड़के में दो तीन डंडे फिर फटकार दिए और गरमा कर बोला, "बरबाद कर दूँगा, भूखा मार दूँगा। इसकी शक्ल ऐसी बिगाड दूँगा कि पहचान में भी नहीं आएगा।
लालाजी कहने तो वाले थे कि हुजूर ऐसा गजब मत करना, वरना लड़के की दहेज की मार्किट बिगड जायेगी, पर कुछ सोचकर चुप रह गए.
उन्हें चुप देखकर लड़का डकराया, "पिताजी मुझे छुडा लो, अब कभी गलती नहीं करूँगा। ये लोग तो मुझे मार ही डालेंगे।
यह दृश्य देखकर लाला का माथा ठनका। वह दरोगा जी से हाथ जोड़कर बोले, " हुजूर बच्चे की गलती माफ कर दो। जो सजा देनी है मुझे दे दो। आखिर इस कपूत का बाप हूँ। बताओ चाय-पानी को कितने नजर कर दूं। सौ दो सौ...हुक्म करो।
दरोगा भन्ना गया। अंग्रेजी राज का दरोगा। उसे कोई इतने बड़े गुनाह के एवज में इतनी छोटी सजा की तजबीज करे। धिक्कार उसकी दरोगाई पर।
वह कड़ककर बोला, "लाला...सौ...पचास की बात की तो तुझे भी अंदर कर दूँगा। लड़का छुड़ाना तो पूरे पांच हजार सिक्के लगेंगे चांदी के।
लालाजी ने बहुतेरी चिरोरी की। दो हजार तक को तैयार हो गए पर दरोगा न माना। उल्टे बहस करने पर प्रति शब्द सौ सिक्के बढ़ाने की धमकी और दी। लालाजी का ब्लड प्रेशर बढ़ गया। हारकर दो दिन का वक्त मांगा ताकि राशि का इंतजाम कर सके। इसके बाद वह बैक टू पवेलियन हो गए।
घर लौट कर लालाजी ने सिक्कों का वजन किया, बेटे का वजन किया और दरोगा को तौल कर देखा। बेटा भारी निकला। बेटे के भारी पड़ने के पीछे कई तकनीकी कारण थे। मसलन जेल में रहने के दौरान दुकान पर न बैठने की हानि, दहेज के फूटी कोड़ियों में बदलने का डर और थोड़ी बहुत बेइज्जती भी। लालाजी ने सारा हिसाब लगा लिया। नुक्सान ज़्यादा था तो लड़के का वजन भी ज़्यादा था। पर पांच हजार सिक्के...रकम बड़ी थी तो लालाजी की चिंता ही कहाँ छोटी थी। लालाजी ने सारी रात सोच में काटी। हल निकल आया लालाजी ने दरियादिली से एक मुस्कराहट खर्च की और चैन की नींद सो गए।
लालाजी ने अगले दिन ही दरोगा को खबर भिजवा दी कि वह उन्हें शाम को पांच बजे घंटा घर पर मिलें। वहीं वह उन्हें रूपये देंगे।
दरोगा को खबर मिली तो उसका माथा ठनक गया। कंजूस लाला पूरे पैसे दे रहा है। एक तो यही खुराफ़ाती बात, दूसरे घंटाघर पर बुलाहट। बस उसके दिमाग में खतरे की घंटी घनघना गयी। उसने कुछ सोचा और खबरची को कहला दिया कि वह दो दिन के लिए गांव जा रहा है। ज़रूरी काम है वहाँ से लौट कर पैसा लेगा।
दो दिन बाद दरोगा नियत समय पर घंटाघर पहुंचा। अपने साथ दो आदमी गवाह के रूप में साथ और ले लिए ताकि कहीं लाला कोई चालाकी ना खेल दे।
घंटाघर पर पहुँच कर देखा तो लालाजी मय अपने छोटे बेटे, मुनीम और दो लोगों के साथ मौजूद थे। दरोगा ने लाला का फ़ौज फांटा जांचा। मामला कुछ कुछ समझ में आ गया। पर दरोगा अंग्रेजो के ज़माने का था बुद्धि भी काफी हद तक अंग्रेजी हो चुकी थी। सो वह कतई नहीं घबराया बोला, " लाला पूरे पैसे गिनकर लूँगा, तेरा विश्वास नहीं है।
लालाजी ने खींसे निपोरी, "हुजूर पूरे गिनकर लीजिए रोजी की कसम...एक रुपया भी कम ना है।"
दरोगा ने भी एक एक रूपया उछाला जांचा और फिर थेले के हवाले किया। संतुष्ट होने के बाद लाला के लड़के को अभयदान दे दिया।
लालाजी ने पहले लड़का छुडाया, उसके बाद उसे दूर रिश्तेदारी में पहुँचाया। हर तरफ से निश्चिंत होने के बाद अंग्रेज जज के इजलास में डाल दिया, दरोगा के खिलाफ रिश्वत लेने का मुकदमा, साथ ही झूठे मुकदमे में फ़साने की धमकी दी। मुकदमा पेश हुआ लाला ने गवाह पेश किये। उन्होंने बयान दिए कि उनके सामने ही दरोगा ने रुपये लिए हैं।
जज ने दरोगा से पूछा –क्यों डरोगा...ये लोग ठीक बोलटा? टूमने पैसा लिया...?
दरोगा बोला, "जी हुजूर, मैंने वाकई पैसा लिया। मेरे भी अपने गवाह हैं जिनके सामने मैंने पैसा लिया" कहकर उसने अपने गवाह भी पेश कर दिए। उन्होंने भी बयान दिया कि "दरोगा जी ने उनके सामने ही रूपये गिन गिन कर लिए।"
लालाजी यह सब देखकर भौचक्के थे! भला दरोगा की बुद्धि खराब हो गयी, खुद जुर्म स्वीकार कर रहा है, ज़रूर मरेगा ससुरा।
जज बोला, "तो डरोगा, तुम मानता कि टूमने रिश्वत लिया? जुर्म कबूलता बोलो?
दरोगा रिरियाकर बोला, "हुजूर कैसी रिश्वत। मेरी तो आपसे यही गुजारिश है कि मेरे बाकी के पांच हजार भी लालाजी से दिलवाइये वरना में गरीब तो मर जाऊंगा।
जज चौंका –"क्या मतलब? सारी गवाही तुम्हारे खिलाफ। बजाय सजा के टूम बोलटा कि लाला से पांच हजार और दिलाओ. अडालट से मजाक करेगा तो और बड़ा सजा मिलेगा। ठीक ठीक बोलो क्या बात है?
दरोगा आवाज में मिस्री घोलता हुआ बोला, "हुजूर माई बाप, नाराज न हों। सच्ची बात ये है कि मैंने अपने खेत बेचकर लाला को दस हजार रुपये दिए थे, जिसमें से लाला ने पांच हजार वापिस कर दिए। अभी इसे मेरे पांच हजार वापस और करने हैं। उन्हें बचाने के लिए ये मुझे फसाने की कोशिश कर रहा है। विश्वास न माने तो ये देखिये मेरे खेतों की रजिस्ट्री की रसीद। देख लीजिए ये लाला से पैसे लेने से एक दिन पहले की ही हैं।
जज ने रशीद देखी और प्रभावित हुआ।
उधर दरोगा फिर शुरू हो गया, "हुजूर में अंग्रेजो का वफादार नौकर। में भला रिश्वत लेने जैसा पाप कर सकता हूँ। फिर थोडा रुक कर बोला, "हुजूर अगर में रिश्वत लेता तो क्या सबके सामने लेता। पूछो लाला से गवाहों से कि मैंने एक एक सिक्का गिनकर लिया या नहीं...पूछो... पूछो।
जज ने पूछा लाला सकपकाया –बहुतेरी ना –नुकुर की –पर जज ने घुड़क कर हामी भरवा ली।
दरोगा फिर बोला, " हुजूर...आप खुद देख लीजिए आदमी अपने पैसे को ही ठोक बजाकर वापस लेता है, गवाहों के सामने लेता है। बताइए में ग़लत कह रहा हूँ।
जज ने सहमति में गर्दन हिलाई.
दरोगा के चेहरे पर दीनता आ गयी, बोला, "हुजूर अब तो आप समझ गए कि मैंने रिश्वत नहीं ली। अब हुजूर आपसे मेरी विनती है कि लाला से मेरे बाकी पांच हजार भी दिलवा दीजिए. वरना ये बेईमान मेरी रकम लूट लेगा, में गरीब बेमौत मर जाऊंगा।" कहकर दरोगा फूट फूट कर रोने लगा।
लालाजी ने बहुतेरी ना नुकुर की, खूब रोये गिडगिडाए, चिल्लाये, दरोगा पर चालबाजी का इल्जाम लगाया। पर जज अंग्रेज था। क्रांतिकारियों का मामला होता तो न्याय की पूरी लुटिया डुबो देता। पर यहाँ न्यायी होने की पूरी छूट थी सो बेहतरीन न्याय किया।
दरोगा बाइज्जत बरी हुआ और लाला को अगले दिन तक पैसा चुकाने की ताकीद मिल गई। साथ ही चेतावनी की डोज भी कि आगे भविष्य में शरीफ आदमियों पर झूठे मुक़दमे ना डाले। वरना जेल की सजा हो जायेगी।
इसके बाद कोर्ट बर्खास्त हो गयी। फैसला सुनकर लालाजी रोये, दरोगा हंसा। लालाजी ने घर आकर दरोगा के पैसे दिए। दरोगा हँसता हुआ चला गया।
दरोगा के जाते ही लालाजी को दिल का दौरा पड़ा। सारे परिवारीजन इकटठे हो गए. अपने आखिरी वक्त में उनकी जुबान से ये अमृत वचन निकले — "बच्चों शेर और पुलिस दोनों सामने से आ रहे हों तो शेर की तरफ भागना चाहिए। शेर से आदमी कभी कभी बच भी जाता है" कहकर लालाजी ने प्राण त्याग दिए।