लाली मौसी / मृदुला शुक्ला
गरमी के साँझ छेलै। हमरा सिनी भागलपुर वाला घरोॅ के ऐंगना में खटिया बिछाय केॅ बैठलोॅ छेलियै। चौथी, पाँचवी किलासों में पढ़तेॅ होवै। ऐंगने के पीरोॅ रङ रौशनी में पढ़ै के कोशिश करी रहलोॅ छेलियै, तखनिये हमरोॅ कक्का नें आवी केॅ हमरोॅ माय सें धीरे सें मुस्की केॅ कहलकै-"तोरोॅ बहिन आवी रहलोॅ छौं-ऑल इन्डिया रेडियो।" माय रोटी पकावै छेलै, सुनी केॅ बस मुस्काय केॅ रही गेलै। हम्में कॉपी में कुछू लिखी रहलोॅ छेलियै-गरमी के दिनोॅ में तखनी ई मजा रहै छेलै। तखनी ताँय पंखा केकर्हो घरोॅ में नै लागलोॅ छेलै। साँझ केॅ नै चाहतेॅ हुवेॅ माय।बाबूजी केॅ हमरा सिनी केॅ बाहरोॅ में पढ़ै के हुकुम दै लेॅ पड़ै छेलै। बाहरोॅ में जहाँ एत्तेॅ।एत्तेॅ चीज मोॅन लगावै लेॅ रहै, वहाँ तेॅ पढ़ाय खाली बहाना छेलै।
पहिनें ऐंगन आरू बाहर में धुरियैलोॅ।तपलोॅ धरती में पानी पटावै के धूम।धाम आरू फेनू पानी के खेल।उत्सव में छः साढ़े छोॅ बजे तक समय काटियै, ओकरोॅ बाद नहाना बारी।बारी सें। डाँट खाय केॅ पढ़ै लेॅ बैठियै भी तेॅ कान सब्भे के गप्प सुनै में लागलोॅ रहै। जे काम मना करलोॅ जाय छै-वै में एक मजा होय छै, जेकरा में साहस के भाव आपने।आप आवी जाय छै। वही गप्प सुनै के मजां आय हमरा लेखिका बनाय देलकै, ई बात की हम्में भूलेॅ पारै छी।
हौ दिन कॉपी सामन्हैं राखी केॅ हम्में फूल।पत्ती नाँखी कुछू बनाय रहलोॅ छेेलियै। मौसी के आवै के बात सुनी केॅ मोॅन गद्गद होय गेलै। कैन्हें कि हुनका चाय।नास्ता दै में आरू हुनकोॅ गप्प सुनै लेॅ जबेॅ माय साथें बाबूजी बैठी जैतै, तबेॅ हमरोॅ तरफ ध्यान केकरोॅ जाय छै।
लाली मौसी हमरोॅ माय के ममेरी बहिन छेलै। मतरकि बचपने सें हमरोॅ माय ननीहारोॅ में नाना।नानी आरू मामा।मामी के पास रहली छेलै, यै लेली हमरा सिनी केॅ बहुत दिनोॅ तक मौसी मानें माय के बहिन-एतने समझ में आवै। दूर आरो नजदीक के रिश्ता केकरा कहै छै, ई नै समझेॅ पारै छेलियै। हमरी माय के माय आरू लाली मौसी के बाबूजी-दोनों भाय।बहिन के अकाल मृत्यु होलोॅ छेलै। शायद यही सें दोनों टूअर बहिन एक दोसरा के नगीच आवी गेली होतै। हमरोॅ माय अन्तर्मुखी छेलै, यै लेली भी बर्हिमुखी स्वभावोॅ के लाली मौसी सें हुनकोॅ घनिष्ठता बुझै में आवै छै। प्रतिभा।सम्पन्न कुशाग्र बुद्धि आरू सब्भे विषय पर धारा।प्रवाह बोलै के हुनकोॅ गुणोॅ सें लोग प्रभावित हुवेॅ पारै छेलै। हम्में आबेॅ कहियो।कहियो सोचै छियै कि पुरुष प्रधान समाजोॅ के चलतें कतना प्रतिभाषाली नारी शक्ति डगमगैलोॅ, धपड़ियैलोॅ, संघर्ष करी।करी कुम्हलाय जाय छै। आपना केॅ जहाँ कोय जनानी स्वतंत्र चिन्तन आकि बराबरी पर रखै लेॅ चाहै छै कि समाज-साम, दाम, दंड, भेद सें ओकरा निष्फल करै के कोशिश करै छै। आखिर में सही दिशा के अभावोॅ में ऊ मजाकोॅ के चीज बनी जाय छै। आय रङ के जों अधिकार मिललोॅ रहतियै, तेॅ हमरी मौसी उच्चोॅ जग्घा पर पहुँची गेलोॅ रहतियै। हुनकोॅ बाबूजी सी0 एम0 एस0 इस्कूल सें प्रथम श्रेणी में पास होय वाला, ऊ समय के मेधावी विद्यार्थी छेलै, जौनें तखनका समय्यै में एम0 ओ पास करनें छेलै। मौसी सुन्दर भी छेलै। हम्में जखनी मौसी केॅ देखने छेलियै-हुनी प्रौढ़ावस्था में कदम रक्खी चुकली छेलै।
आपनोॅ घोॅर।ऐंगना में हुनका हम्में जबेॅ देखलेॅ छेलियै, तबेॅ शायद हम्में कँही बाहरोॅ सें ऐली छेलियै। हमरा याद पड़ै छै कि हम्में कुछू दिन लेॅ नानी पास पटना गेलोॅ छेलियै आरू वहाँ सें आवी केॅ हुनका आपनोॅ घरोॅ में पैनें छेलियै। कुछुवे दिन हुनी हमरोॅ घरोॅ में छेली आरू फेनू एक किराया के घरोॅ में अलग रहेॅ लागली। ऊ घोॅर भी हमरोॅ घरोॅ सें दूर नै छेलै। हमरौ सिनी जाय छेलियै आरू मौसीयो प्रायः ऐत्हें रहै छेली। हमरी माय केॅ नैहरा तरफ सें एकमात्र परिजन-बहिन, सखी या बड़ी जेठी-सब्भे हुनिये छेली, जे हमरा सिनी के सम्पर्क में रहै छेली।
मौसी के पास जाय केॅ कोय्यो हुनका सें प्रभावित होने बगैर नै रहेॅ पारै। बच्चा, बूढ़ा, जवान-सब्भे लायक हुनकोॅ पास गप्प छेलै-फ़िल्म, राजनीति, आध्यात्म, पुराण के साथें गाँव।टोला भरी के ढेर सिनी बात छेलै। आपनोॅ ननिहरोॅ के धोॅन आरू पितृकुल के विद्या पर हुनका बड्डी गौरव छेलै, जे हुनकोॅ बात।चीत में थोड़े देर में झलकी जाय छेलै। प्रशंसा सें हुनी केकर्हौ आसमानोॅ पर चढ़ावेॅ पारै छेलै आरो कुपित होला पर, चाहे कत्तो आपनोॅ रहै, ओकरोॅ ओन्हे गुद्दी उघारै कि वैं पानीयो नै माँगेॅ पारै।
ऊ दिन भी हम्में जबेॅ आपनोॅ कॉपी पर फूल।पत्ती बनाय रहलोॅ छेलियै, मौसी पहुँचली छेली। आठ।नौ साल के उमिर होतै। ऊ उमिरोॅ में पढ़ै सें मोॅन ओकतैला पर सब्भे बच्चा जेना कॉपी पर कुछू।कुछू बेल।बूटा बनाय छै, वहेॅ रङ हम्मू करी रहलोॅ छेलियै। मौसीं हमरोॅ बगलोॅ में बैठी केॅ पुछलकै-"की लिखै छैं?" आरू जबेॅ हमरोॅ कॉपी पर आँख डाललकी तेॅ तुरन्ते बोलेॅ लागली-"वाह।वाह, एतना सुन्दर फूल आरू पत्ती बनैलेॅ छैं। सावित्री, हमरा तेॅ पते नै छेलौ कि ई एतना गुणी छौ। एकरा कलाकेन्द्र में भरती कराय दिहौ।" आरू उलटी.पुलटी केॅ हमरोॅ कॉपी मनोयोग सें देखेॅ लागली-"ई तेॅ सूरजमुखी के फूल छेकै आरू पत्तो ठीक्के छै, मतरकि थोड़ोॅ गुलाबोॅ के पत्ता नाँखी होय गेलोॅ छै आरू एकरोॅ बगल में बेली के फूलो मौसम के हिसाबोॅ सें एकदम ठीक खिललोॅ छै।"
हम्में मुकुर।मुकुर खाली हुनकोॅ मुँहे देखियै। ओकरोॅ बाद तेॅ प्रशंसा एतन्है बढ़लै कि हौ बेकार रङ के चित्रकारी घर के सब्भे लोग देखेॅ लागलै। हम्में तेॅ डाँट खाय के हदाशोॅ में बैठली छेलां आरू यहाँ हमरोॅ एक गुणोॅ सें मौसी दुसरोॅ गुणोॅ पर बढ़ली जाय छेलै। हम्में लाजोॅ सें धौ।धौ करेॅ लागलियै। हमरा कॉपी दै देॅ आबेॅ-कहियै तेॅ माय नें आँख कड़ा करी केॅ ताकै। मौसी होन्हे हमरा रवीन्द्र नाथ ठाकुर सें लैकेॅ पता नै केकरोॅ।केकरोॅ खिस्सा सुनैवो करलेॅ छेलै। मौसी नें ऊ दिन भविष्यवाणी तक करलकै-"ई बेटी तोरोॅ बड़का कलाकार होतौ, चित्रकला में बहुत आगू जैतौ" आरू हमरा कहलकै-हमरोॅ टेबुल।क्लाथोॅ पर एक ठो फूल एन्हे छापी दिहैेें तेॅ। " आय मौसी रहतियै तेॅ देखतियै कि सूरजमुखी के फूल आरू खजूरी पत्ता छोड़ी केॅ हम्में आय ताँय कुछू नै बनावेॅ पारै छियै, आरू वहो, वही रङ-जेना तहिया बनैलेॅ छेलियै। मतरकि कैन्हें तेॅ हमरा बहुत दिन ताँय लागै कि मौसी एतना अनुभवी छै तेॅ कुछू तेॅ हुनी देखल्है होतै, तभिये तेॅ कहलेॅ होतै। आरू एक दिन हम्में सुती केॅ उठवै कि बड़का चित्रकार बनी चुकलोॅ होवै। मौसी के ई गुण सहज नै छेलै। एतना आसान बात नै होय छै-केकरो अन्दर एतना विश्वास बढ़ाय देना। है गुण मौसी में कूटी.कूटी केॅ भरलोॅ छेलै, भले हमरा सिनी हुनकोॅ बातोॅ पर ओतना ध्यान नै दै छेलियै।
कोय लड़की के सुन्दरता केॅ देखी केॅ हुनी आपनोॅ जमाना नाँखी पुरनका विशेषण या तुलना करै के काम नै करै। ओकरोॅ नाम धरी दै-वैजयन्तीमाला, मधुबाला आरू माला सिन्हा। वै जमाना में जबेॅ लड़की सिनी केॅ आपनोॅ माय केॅ हिरोइन सिनी केॅ चिन्हाय लेॅ पड़ै छेलै, तबेॅ आपनोॅ तुलना मौसी.उमिर के जनानी सें सुनी केॅ थोड़ोॅ खुश आरू थोड़ोॅ हैरान होय जाय छेली। है बातो नै छेलै कि हुनी घोॅर।गृहस्थी या गंभीर बातोॅ के मरम नै जानै छेली, मतरकि हुनी युवा।मनोविज्ञानो केॅ भी बूझै छेली।
हम्में कॉलेज सें ऐलोॅ छेलियै। एक दिन मौसी नें हमरोॅ विषय पूछी देलकै। हम्में कहलियै-"हिन्दी आर्नस आरू साइकोलॉजी." मौसी नें तुरत्ते हमरा जेना बताय देलकै-"तोहें साइको आनर्स कैन्हें नी लेल्हैं।" हम्में समझी गेलियै कि नया सें नया शब्द, कॉलेज कैम्पस के शार्टकट बात सब्भे चीज केॅ हुनी तुरत पकड़ी लै छै आरू ज्ञान के ई पिपासा नें ही हुनका दोसरा सें अलग करी दै छै। हमरोॅ सायकोलॉजी शब्द सें हुनी 'साइको' कही केॅ विषय सें आपनोॅ घनिष्ठता ही सूचित करै लेॅ चाहै छेली।
नया सें नया व्यक्ति आरू समाजोॅ में हुनी आपनोॅ जग्घोॅ बनाय के बुद्धि राखै छेलै। आपनोॅ दाय कबूतरी।माय-जेकरा लैकेॅ हुनी सब्भे जग्घो जाय छेली आरू ओकरा पूरा पुजारिन बनाय केॅ छोड़लेॅ छेली, ओकरोॅ समस्या सें लै केॅ उच्चोॅ सें उच्चोॅ पद के लोग-चाहे संगीतज्ञ हुवेॅ की संसद, विधायक-सब्भे सें समय के अनुकूल बात करै लेॅ जानै छेली।
हुनी एक दिन हमरोॅ मँझला भैया सें बहसोॅ में फँसी गेली। हमरोॅ भैया तखनी पढ़तेॅ तेॅ इस्कूले में होतै, मतरकि तर्क करै के आपनोॅ आदत सें लाचारो छेलै आरू नेहरू जी के परम भक्तो। नेहरू जी के गेला के बादोॅ में हुनकोॅ नशा तखनका पीढ़ी पर छेवे करलै। ऊ दिन मौसी-सरकार, कांग्रेस आरू व्यवस्था के आलोचना करतें।करतें नेहरू जी के बारे में सुनलोॅ या समझलोॅ बात, आपनोॅ नारी सुलभ बुद्धि सें माय केॅ समझावेॅ लागली-"नेहरू जी की हिन्दू छेलै, नै। तहीं सें हुनी मुसलमानोॅ के एतना पक्ष लै छेलै।" हमरी माय बस आपनोॅ बहिन के ज्ञान।गंगा में बही रहली छेली आरू मौसी तर्कोॅ सें समझैतें चल्लोॅ जाय रहलोॅ छेली-"हुनकोॅ पहनावा।ओढ़ावा देखलेॅ छेल्हौ नी, पंडित सिनी कँही हौ सब पिन्है छै, आरू बोली में खाली उर्दू भाषा।" एन्हे सिनी कहाँ।कहाँ के बात कही रहलोॅ छेली-"कांग्रेस नें देश केॅ खतम करी देलकै।"
ऊ जमाना में हमरोॅ पूरा परिवार कांग्रेस के भक्त छेलै आरू तहिया राजनीतिक पार्टी के प्रति लोगें भावनात्मक सम्बन्धो राखै छेलै-जै में बुद्धि आरू तर्क के स्थान थोड़ोॅ तेॅ कम ज़रूरे छेलै। हमरोॅ मँझला भैया सुनथैं मौंसी सें बहस करेॅ लागलै। कहै लागलै-"मौसी, तोरा जौनें ई सिनी बतैलोॅ होथौं, वहीं यहो कहलोॅ होथौं कि सुभाष चन्द्र बोस केॅ तेॅ नेहरू नें मरवाय देलकै।" मौसी कहलकै कि "ई बातो ठीक छेकै।" आरू ऊ दिन आधोॅ रात बीती गेलोॅ छेलै-दोनो के बहस में। मौसी अपनोॅ तर्क केॅ पहिनें तेॅ दुराग्रह के सीमा ताँय लेलेॅ गेलै। ऊ वाक्।युद्ध सें माय के परान कंठ में छेलै कि बेटा आरू नूनू दी के झगड़ा में वें करेॅ तेॅ की करेॅ। कहाँ काँग्रेस, कहाँ नेहरू, कहाँ सुभाष-हमरा सिनी केॅ एकरा सें की मतलब, आरू के देखनें छै-जे लड़ी रहलोॅ छै। मतरकि हमरी मौसी नें आपना सें छोटोॅ जानी केॅ हौ दिन हारलोॅ बाजी हँसी केॅ जीती लेलकी आरू नेहरू जी के बात छोड़ी केॅ हमरोॅ भैया के गुण।गाण करेॅ लागली-"सावित्री एकरोॅ नाम विजय एकदम्मे सही छै, ई सब जग्घोॅ पर जीततौ, एकरोॅ ललाट देखैं छें, बहुत इन्टेलीजेन्ट छौ ई बेटा।" हँसी केॅ मौसी नें प्रसंग बदली तेॅ देलकै, मतरकि सब्भें बूझी रहलोॅ छेलै। असल में गाँधी आरू नेहरू जी के प्रशंसक हुनियो छेली, मतरकि हुनी जे दोसरा लग सुनै, ओकरा सें फेनू आपनोॅ ज्ञान बढ़ाय लेॅ बहस छेड़ै छेलै। ओकरोॅ बाद सें हमरोॅ फूल भैया जों सामनें पड़ी जाय तेॅ मौसी कोय विवादास्पद प्रसंग नै छेड़ै आरू भैया केॅ बैठाय केॅ ढेर सिनी राजनीतिक जानकारी लै। मतरकि हमरी मौसी ऊ जमाना में दुनिया भर के जानकारी केना इकट्ठा करै छेलै, पता नै-'बेटी.बेटा' सिनेमा देखतैं।देखतैं नेहरू जी बच्चा केॅ आगिन तरफ बढ़तेॅ देखी केॅ हुनी कुर्सी सें उठी बचाय लेॅ खाड़ोॅ होय गेलोॅ छेलै या कि "ए मेरे वतन के लोगों" गाना सुनी केॅ नेहरू जी कानै लागलोॅ छेलै, ई सिनी बात सबसें पहिनें हमरा सिनी मौसी के मुँहे सें सुनलोॅ छेलियै। यही लेली हुनका लोग पीठ पीछू ऑल इण्डिया रेडियो कही केॅ मजाक उड़ाय छेलै।
मौसी के बस-एक ठो बेटा आरू एक ठो बेटी छै। तखनी हमरोॅ दोनों मौसेरोॅ भाय।बहिन बाहरोॅ में पढ़ै छेलै आरू मौसा भी उच्चोॅ पदोॅ पर सरकारी नौकरी में बाहरे रहै छेलै।
मौसी के बीहा पाकुड़ में होलोॅ छेली, आरू घरोॅ में हुनका सिनी बंगला भाषा ही बोलै छेलै।
मौसी बतावै छेली कि पटना के बंगला इस्कूल में पढ़लोॅ आरू सम्भ्रान्त बंगला के ज्ञान-सोसरारी के बंगला सामनें पानी भरेॅ लागै आरू हुनी परेशान होय जाय छेली। हुनी सोसरारी सें खुश नै छेली आरू हमरी माय केॅ हरदम्मे कहै कि "बेटी के बीहा सगरे करियोॅ, मगर पाकुड़ नै करियोॅ। सूप भरी जेवर चढ़ैतौं आरू चार बजेॅ साँझ केॅ सासु परोसी केॅ जबेॅ खाय लेॅ देतौं, तेॅ खैतौं। 'पछियारी भूत' कही।कही केॅ वहाँ के लोग सिनी बेटी के मजाक उड़ैतेॅ रहतौं।"
हमरी मौसी केॅ मिष्ठान।पकवान बनाय सें लै केॅ सिलाय।कढ़ाय सब्भे लूर।ढंग छेलै। "सज्जा, बाजा, केस-तीन-बंगला देश" के कहावत पर भी हुनी कमजोर नै छेली, तहियो बातोॅ सें लागै कि सोसरारी में जे अधिकार आरू सम्मान हुनी खोजै छेली, शायद नै पावेॅ सकलेॅ छेली। आरू हमरी मौसी जे सबके सामना एतना समर्थ लागै छेली, सोसरारी के चक्रव्यूह भरलोॅ ऐंगना में चारो खाना चित्त होय जाय छेली। यही लेली मौसी आपनी विधवा माय केॅ लै केॅ भागलपुरोॅ में रही रहलोॅ छेली, जहाँ हमरोॅ मौसेरोॅ भाय पढ़ाय खतम करी आवी केॅ रहै छेलै आरू छुट्टी में मौसेरी बहिनो आवै छेली। मौसा भी आवै छेलै तेॅ हमरा सिनी सें खूब बतियावै आरू हँसी करै छेलै। मतरकि हमरा लागै छै कि हुनी मौसी केॅ ठीक तरह सें समझेॅ नै पारलकै आकि मौसी के तीव्र मस्तिष्क आरू महत्त्वकांक्षा के जवाब लायक हुनका पास कोय बाते नै होतै। कारण जे भी रहै, मतरकि आय्यो हमरा लागै छै कि मौसी केॅ आपनोॅ प्राप्य नै मिललोॅ छेलै। हालांकि घरोॅ में तेज आवाज मौसी के ही गूंजै छेलै, आरू मौसा या तेॅ किताब पढ़ै छेलै या एक ठो बाँसुरी खरीदने रहै, हमरा याद आवै छै कि ओकरा बजैतें रहै।
नानीं मौसी केॅ बहुत सिनी जिम्मेवारी सें मुक्त रखनें छेलै, आरू वाँही सें मौसी के अन्दर कुछ कमी भी शामिल होय गेलोॅ छेलै। देर सें सुती केॅ उठै के आदतो वही में पड़ी गेलै। बचपन में हमरा बड़ा आचरज लागै, कैन्हें कि हमरा सिनी घरोॅ।परिवारोॅ के कोय जनानी एतना बेर ताँय सुती केॅ नै उठै छेलै। हमरी माय तेॅ जब तांय हमरा सिनी जागियै, तब तांय नहाय।सुन्हाय चुकै छेली। देर सें उठै के कारण देर सें रात केॅ सुतना भी छेलै आरू एकरोॅ प्रभाव हुनकोॅ स्वास्थ्यो पर पड़लै। पूजा।पाठ, धरम।करम भी कम नै करै छेली। जीवन के बेतरतीबी-शायद हुनके अन्दर के कोय बेचैनीये होतै, जे कोय समझ्हौ नै पारतेॅ होतै।
हम्में बच्चहै सें गप्पी छेलियै आरू जेना कोय।कोय बच्चा लाल बुझक्कड़ होय छै, वहेॅ रङ छेलियै। यै ली हम्में घरोॅ में बहुत डाँटो सुनै छेलियै, मतरकि मौसी हमरा सिनी केॅ मान्तहौ छेली, से हमरा सिनी केॅ जखनी मोॅन होय छेलै, हुनकोॅ घरोॅ में जाय केॅ बैठी रहै छेलियै।
मौसा रिटायर होय केॅ जबेॅ भागलपुर आवी गेलै आरू हुनकी पुतोहू आवी गेली, तखनी तांय नानीयो छेली। मतरकि नानी के बाद मौसी एकदम अकेली रही गेलोॅ छेली। हालांकि घोॅर भरलोॅ छेलै। तब तांय हम्मूं साहित्य के दुनियां से जुड़ी गेलोॅ छेलियै। आरू आपनोॅ बीहा के बाद पता नै नारी।जनित कौन भावनावश हम्में हुनकोॅ प्रति ज़्यादा आकर्षण अनुभव करै छेलियै। मौसा के आपनोॅ कुछू अनुभव होतै, मतरकि हुनकोॅ तटस्थ भाव केॅ हम्में आय्यो मौसी के प्रति एक तरह के मानसिक अन्याय समझै छियै। ऐन्होॅ बात नै छेलै कि मौसा कोय खराब आदमी छेलै आरू हुनकोॅ प्रशंसाहौ करै वाला कत्तेॅ नी लोग छेलै। पुतोहू के पढ़ाय हुवेॅ या बेटी के नौकरीओ, हुनी ओन्हे मस्त भाव सें दोसरा सिनी के बच्चा।बुतरुओ केॅ संभाली लै छेलै, मतरकि दाम्पत्य जीवन में जबेॅ कोय तटस्थ भावोॅ केॅ अपनाय केॅ भगवान बनी जाय के कोशिश करै छै तेॅ हमरा एक तरह के वितृष्णा होय जाय छै।
मौसी कोय्यो बातोॅ पर बहुत बोलै छेलीं ई बात के सब्भै मजाको करै, मतरकि कोय स्त्री तभिये ज़्यादा बोलै छै, जबेॅ या तेॅ ओकरा बहुत ज़्यादा मान।सम्मान मिली जाय छै आकि वैं अपना केॅ उपेक्षित या असुरक्षित समझै छै। दुर्भाग्य सें जनानी के साथें अक्सर यहेॅ होय छै-या तेॅ मात्र औरत होला के कारण अयोग्य होल्हौ पर माथोॅ पर चढ़ाय लेलोॅ जाय छै आकि ओकरोॅ अहम् केॅ तोड़ै लेॅ उपेक्षित करी देलोॅ जाय छै, बराबर के सम्बन्ध तेॅ कभियो काल देखै में आवै छै।
मौसां मध्यम मार्ग निकाली केॅ मौसी पर कोय दवाब तेॅ नै बनैलेॅ होतै, मतरकि एक छाँव आकि एक बचाव के कवच जे औरत चाहै छै, हौ दै में तेॅ निश्चित रूपोॅ सें असमर्थ होतै।
नानी के मरला सें मौसी एकदम टूटी गेलोॅ छेली आरू आपनोॅ एकमात्र बेटा के बीहा पाकुड़ तरफ नै करै लेॅ हुनी कटिबद्ध छेली। आखिर हुनकोॅ मोॅन पुरलै आरू पुतोहू ऐली, हुनका कॉलेज में पढ़ावै के भी हिम्मत हुनी करलकी। मौसी के दोसरोॅ सपना भी पूरा होलोॅ छेलै, हुनका पोता होलोॅ छेलै। पुतोहू नैहरा में छेली। बेटा सोसरार जाय रहलोॅ छेलै। हम्में तखनीये मौसी के घोॅर पहुँची गेलियै। घरोॅ में कुछू।कुछू भारीपन छेलै। मौसी हमरा देखथैं बोलेॅ लागली-"देखी लेॅ आपनोॅ मौसी केॅ, अपना सिनी तरफोॅ सें छट्टी में बच्चा वास्तें कपड़ा।लत्ता, सोना।चाँदी, घरोॅ भरी के कपड़ा।मिठाय सब्भे जाय छै। छट्टीयो में कोय नै गेलै। आबेॅ जबेॅ जाय रहलोॅ छै तेॅ तोरोॅ मौसा के यहेॅ सिनी रिवाज देहाती बुझाय छों, मतरकि वहाँ हमरा की कहतै सब्भे" कहतें।कहतें मौसी के आवाज भर्राय गेलै। दबंग मौसी के कातर रूप हमरोॅ अन्दर तक डूबी गेलै-"हम्में घरोॅ में केन्होॅ मलकैन छी, से भी तोहें देखीये ले।"
मौसी पलंग पर आरामोॅ सें अखबार पढ़ी रहलोॅ छेली, पढ़तैं।पढ़तैं कहलकी-"एक बेटां बस यहेॅ कहलकै-ई ग्रामोफोन बजता है, तो बन्द ही नहीं होता है-अरे ई सब बेकार का धंधा है, हमरा आदमी है, तो हमरा सब कुछ उसी का न है।" बस एतना कही केॅ हुनी फेनू चुपचाप पढ़ेॅ लागली। मौसी के उत्साह, अरमान, अधिकार केॅ जेना हुनी ऊ दिन उपेक्षित करनें छेलै, हमरा हौ दिन सौंसे स्त्री जाति के वास्तें-स्त्री जाति के सच्चाई के रूपोॅ में अंकित होय गेलै। हमरोॅ अन्दर तखनीये सें ई भय भी शायद अचेतन में समाय गेलै कि स्त्री केॅ आजादी पावै लेॅ आर्थिक आजादी ज़रूरी छै आरू हेना तेॅ पत्नी बस पति के सम्पत्ति के हिसाब राखै वाली मंुशी सें ज़्यादा कुछू नै छेकै।
मौसी के भावुकता के ई हाल छेलै कि हुनी एक बेर सिनेमा देखी केॅ ऐली आरू आवी केॅ हमरोॅ घरोॅ में शुरू होय गेली-"ई बलराज साहनी पगलाय गेलोॅ छै की, कतना अच्छा।अच्छा काम करै छेलै आरू आबेॅ बुढ़ापा में बच्चा।बुतरू साथें सामनाहैं गावै छै-ऐ मेरी जौहरा जवीं...में अभी तक हूँ जवाँ। बताब्भैं है सिनी की अच्छा लागै छै।" हमरा सिनी सब भाय।बहिन हुनकोॅ ई निर्दोष गुस्सा देखी केॅ कमरा में घुसी.घुसी केॅ हाँसियै आरू हुनी एक घण्टा के बाद ऐलान करलकै कि आबेॅ बलराज साहनीयो के फ़िल्म हम्में देखै लेॅ नै जैवै।
नेमान में माय-नयका चूड़ा आरू अक्षत-प्रसाद बनाय लेॅमौसी के घोॅर हमरा हाथों सें भेजी दै छेलै आरू तखनी मौसी आपनोॅ गामोॅ के खेत, पोखर, अनाजोॅ के बारे में सोची केॅ एकदम दुखी होय जाय-"जानै छैं मृदुल, मौसा के घरोॅ पर सब कुछ छौ, मतरकि नै हमरा नेमान भरै लायक सेर।दू सेर चूड़ा आवेॅ पारै छै आरू नै हम्में वहाँ रहै पारै छी। हमरोॅ पुतहुओ केॅ केना बसेॅ देतै वै सिनी।"
पुरुष आरू स्त्री के भेदे नें नारी मोॅन वाला पुरुष केॅ भेंड़ आरू मौगा भी कहलेॅ छै आरू तेजस्वी पुरुषार्थी स्त्री के आँच नै सहै के कारण ओकरोॅ या तेॅ शोषण कैनें छै या उपेक्षा। नारी जेन्हैं सवाल उठावै छै-चाहे कार्य।जगत में आकि घरोॅ में-ओकरा चुप रहै के सलाह देलोॅ जाय छै। यही में प्रतिभो ऊसर होय जाय छै आरू कुंठा सें जीवन भी असन्तुलित होय छै।
मौसी के बेटा।पुतोहू, पोता।पोती, नाती।नतनी भरलोॅ।पुरलोॅ संसार छै। सुख।सम्पन्नतो में कुछ कमी नै छै। मतरकि आय मौसी नै छै। सब कुछ हुनकोॅ लगैलोॅ आय फली।फूली रहलोॅ छै। मौसी के अन्तिम सांस लै वक्तीयो हमरी माय हुनकोॅ पास छेली आरू नया कनियैनी केॅ सबकुछ सुझावै, बतावै लेॅ कै दिन वाँही रही गेलोॅ छेली। माय आवी केॅ बतैलेॅ छेली कि मौसा ऊपर सें तेॅ कुछू नै बोलै छेलै, मतरकि भोरे।भोर तकिया में मुँह छुपाय केॅ कानै। मौसी के बाद मौसाहौ ज़्यादा दिन नै रहेॅ पारलै, आदत जे पड़ी गेलोॅ होतै होन्हे जीवन के.
आय मौसी के बेटा के दू मंजिला घोॅर।ऐंगन-मौसी के रहला सें-केन्होॅ गुलजार रहतियै। धुँआधार भाषा, बेवाक बोली, घटना के रससिक्त वर्णन सें मोॅन केन्होॅ हरखित रहतियै-यहेॅ सोची केॅ हमरोॅ डेग बहुत बार हुन्नें जैतेॅ।जैतेॅ रुकी जाय छै।