लाशें / कामतानाथ
कभी किसी मरीज़ के असमय खांसने या खर्राटे लेने की आवाज के अतिरिक्त वार्ड में खामोशी थी। उसने अंतिम बार घड़ी देखी। दो बजने में दस मिनट शेष थे। कोट की जेब को बाहर से ही दबाकर उसने कुंजियों का आभास लिया और उठकर खड़ा हो गया।
सिस्टर दूसरी मेज़ पर बैठी कोई रूमानी उपन्यास पढ़ रही थी। वह सिस्टर के पास तक गया।
‘‘मैं ज़रा डॉक्टर गुजराल तक जा रहा हूं। शैल बी बैक इन अ फ्यु मिनिट्स।’’ उसने कहा।
सिस्टर ने खुले हुए पेज पर उंगली लगाकर पुस्तक बंद की और उठकर खड़ी हो गई।
‘‘यू विल बी हियर?’’ उसने पूछा।
‘‘यस।’’
उसने कोट का कॉलर मोड़ लिया और दरवाज़े के बाहर निकल आया। साइड के बरांडे से होकर वह वार्ड के पीछे आ गया। सामने माली द्वारा अपेक्षित पड़ा हुआ मैदान था। मैदान के अंतिम छोर पर दाहिनी ओर मार्चरी थी। बाएं हाथ पर ताड़ का पेड़ था, जिसकी फुनगियों में पीला मटमैला चांद उलझा हुआ था। दूर पर टी. बी. वार्ड की खिड़कियों से रोशनी फूट रही थी। एक कुत्ता पिछली टांगों में अपनी दुम दबाए मैदान में भागा जा रहा था। हवा में काफी ठंड थी।
वह कुछ देर वहीं खड़ा-खड़ा ठंडी हवा का आनंद लेता रहा। तब दोबारा घड़ी देखी, जेब में कुंजियों का आभास लिया और चुपचाप मार्चरी की ओर चल दिया। वहां पहुंचकर वह कुछ ठिठका, इधर-उधर देखा, और मार्चरी का ताला खोलकर उसके अंदर आ गया। अंदर आकर उसने खामोशी से दरवाजा भेड़ दिया। दोनों पल्लों के बीच एक पतली झिरी उसने छोड़ दी।
थोड़ा संयत हुआ तो उसे वहां फैली बू का अहसास हुआ। उसकी बगल में फ़र्श पर दो लाशें चादरों से ढकी रखी थीं। रोशनदान से आती हुई चांद की मुर्दा रोशनी लाशों के मुख पर पड़ रही थी। उसने झुककर चादरें उलटकर लाशों का मुंह देखा। दोनों ही लाशें पुरुषों की थीं। उनमें से एक को वह पहचानता था। आर्थोपेडिक्स वार्ड की बेड नंबर सत्रह की लाश थी। खन्ना ने उसे बताया था कि वह ग़लती से ढाई सौ की जगह ढाई हज़ार पॉवर का एक इंजेक्शन उसे दे गया था। दूसरी लाश वह नहीं पहचान सका। कुछ देर वह खड़े-खड़े उन्हें देखता रहा, तब उन्हें ज्यों का त्यों ढक दिया। यह वह निश्चित नहीं कर सका कि बू लाश से आ रही है या वहां का वातावरण ही ऐसा है।
वह दरवाज़े के पास आ गया और झिरी से बाहर झांकने लगा। चांद ताड़ के पेड़ के कुछ ऊपर चढ़ आया था। हल्की-हल्की चांदनी मैदान में बिखरने लगी थी। उसने दोबारा घड़ी देखी। घड़ी की सुइयों में लगे रेडियम की चमक से उसने जाना कि बड़ी सुई बारह को पार कर चुकी है। वह बेसब्र होने लगा। तभी उसने टी. बी. वार्ड के बाएं विंग की ओर से उसे आते हुए देखा। उसका हृदय कुछ और तेज़ी से धड़कने लगा। वह मैदान में लगी हेज के बराबर से बिना इधर-उधर देखे मार्चरी की ओर आ रही थी। वह चुपचाप खड़े होकर उसे निकट आते देखता रहा।
वह मार्चरी के सामने आ गई तो उसने दरवाज़े की झिरी को थोड़ा बड़ा कर दिया। बरांडे के निकट पहुंचकर वह ठिठकी। मुड़कर इधर-उधर देखा, फिर दरवाज़े के पास आ गई। उसने एक ओर का कपाट खोलकर उसे अंदर ले लिया और दरवाज़े की सिटकनी लगा दी।
कुछ क्षण वे खामोश खड़े रहे।
‘‘लाश है क्या?’’ उसने नाक पर आंचल लगाते हुए पूछा।
‘‘हां, दो हैं।’’ उसने उत्तर दिया और उसे अपने निकट खींचकर उसकी पीठ और नितंबों पर हाथ फेरने लगा। उसने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए और ब्रेसरी के ऊपर से ही भरी-भरी गोलाइयों को अपने हाथ के नीचे महसूस किया। थोड़ा दबाया। फिर हाथ पीठ पर ले जाकर ब्रेसरी के बकल्स खोलने लगा।
‘‘क्या कर रहे हो? जल्दी करो न।’’ उसने कहा।
‘‘कोई इधर आएगा नहीं।’’ उसने उसे और करकर दबा लिया।
‘‘क्या पता!’’
वे फुसफुसा रहे थे।
उसने अपना कोट उतारकर फ़र्श पर रख दिया और उसे बांह से पकड़कर फ़र्श पर बिठाने लगा।
‘‘बैठ जाओ।’’ वह फुसफुसाया।
‘‘नहीं। ऐसे ही...’’
‘‘बैठ जाओ न।’’ उसने फिर भी इसरार किया।
‘‘नहीं, मैं बैठूंगी नहीं।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘पता नहीं यहां क्या कूड़ा-करकट पड़ा हो।’’
‘‘यहां क्या होगा? रोज़ तो धोया जाता है।’’
‘‘नहीं, मैं बैठूंगी नहीं।’’
उसने एक क्षण इधर-उधर देखा। फिर एक लाश के ऊपर से चादर खींचते हुए बोला, ‘‘इसे बिछा लेते हैं।’’
‘‘पता नहीं क्या डिज़ीज रही हो इसे।’’ लाश का चेहरा रोशनदान से आती रोशनी में साफ़ दिखाई देने लगा था।
‘‘आर्थोपेडिक्स का केस है। मैं जानता हूं।’’ उसने कहा और चादर को लंबा-लंबा फ़र्श पर फेंककर उसका हाथ पकड़कर उसे उस पर बिठा दिया।
‘‘जल्दी करो न।’’ वह चादर पर लेट गई।
अब उन्हें बू नहीं आ रही थी।
उसकी गर्दन लाश की ओर मुड़ी हुई थी। रोशनदान से आती चांदनी के प्रकाश में लाश का चेहरा साफ़ दिखाई दे रहा था। उसकी आंखें आधी खुली हुई थीं। होंठों के बीच बड़े-बड़े गंदे दांत झांक रहे थे। पथराई हुई आंखें जैसे उसकी ओर देख रही थीं। लाश के हाथ उसके सीने पर मुड़े हुए थे और बनियाइन के नीचे से उसके सीने के अधपके बाल झांक रहे थे। मुश्किल से उसे दो-तीन मिनट लगे होंगे। परंतु वह फिर भी उसके ऊपर लेटा रहा। ‘‘उठो!’’ उसने कहा तो वह उठकर बैठ गया। वह भी उठ पड़ी और अपनी ब्रेसरी के बकल्स ठीक करने लगी। उठते-उठते उसने एक बार फिर उसे निकट खींचकर सीने से लगा लिया और उठकर अपना कोट पहनने लगा। उसने ब्लाउज़ के बटन बंद किए और खड़े होकर साड़ी की चुन्नट ठीक करने लगी। उन्हें फिर बू का एहसास होने लगा था।
‘‘लाश डिकंपोज हो रही है?’’ उसने कहा।
‘‘पता नहीं।’’ उसने उत्तर दिया और उसे साड़ी ठीक करते देखता रहा।
‘‘दरवाज़ा खोलूं?’’ उसने पूछा।
बड़े आहिस्ता से उसने सिटकनी खोली, पल्लों को जरा-सा हटाकर बाहर झांककर देखा। सामने टी. बी. वार्ड की खिड़कियों की रोशनी चमक रही थी। चांद ताड़ के पेड़ के थोड़ा और ऊपर चढ़ आया था।
‘‘पहले मुझे निकल जाने दो।’’ उसने कहा।
‘‘ठीक है।’’ उसने दरवाज़े की झिरी को बड़ा कर दिया।
वह बाहर निकल आई और बिना किसी ओर देखे हेज के बराबर से होती हुई अपने वार्ड की ओर चली गई।
वह कुछ देर वहीं दरवाज़े पर खड़ा रहा। तब बाहर निकलकर ताला बंद किया और खड़े होकर साइड की दीवार पर पेशाब करने लगा। पेशाब कर चुकने के बाद वह भी अपने वार्ड की ओर चल दिया।
बरांडे में पहुंचकर उसने सिगरेट जला ली। घड़ी देखी। दो बजकर बीस मिनट हुए थे। चलते-चलते उसने अपने पुट्ठों पर हाथ ले जाकर पतलून की धूल झाड़ी। कोट की आस्तीनों आदि पर भी हाथ फिराकर उन्हें झाड़ा। बालों को हाथ से सेट किया और वार्ड के अंदर आ गया।
सिस्टर अपनी जगह पर नहीं थी। उसने चारों ओर दृष्टि घुमाकर देखा। सिस्टर कहीं दिखाई नहीं दी। तीन नंबर का मरीज उठकर बैठा हुआ गिलास से पानी पी रहा था। पानी पीते-पीते उसने एक बार उसे देखा और गिलास नीचे रखकर लेट गया।
वह अपनी टेबुल पर आ गया। मार्चरी की कुंजी निकालकर उसने मेज़ की ड्रार में रख दी और बाथरूम चला गया। हाथ-मुंह धोया, बालों में कंघी की, कोट उतारकर उसे दोबारा झाड़ा, पतलून की क्रीज ठीक की और लौटकर फिर अपनी टेबुल पर बैठ गया।
तब तक सिस्टर आ चुकी थी।
कहां गई थीं? उसने सोचा वह पूछे, परंतु फिर टाल गया। कुर्सी पर थोड़ा आगे खिसककर उसने पैरों को हीटर के और निकट कर लिया और नयी सिगरेट जला ली।
सिस्टर उठकर बाथरूम चली गई।