लाॅकडाऊन / मनोज शर्मा

Gadya Kosh से
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साड़ी के पल्लू से पेशानी पौछते हुए सुलेखा ने सिगनल पर आती गाड़ी को देखा और उसकी तरफ़ दौड़ पड़ी। गाड़ी के शीशे पर हथेली से थपकी देते हुए उसने अपने दोनों हाथों से ताली पीटी और पीछे आने वाली गाड़ी के बोनेट पर अंगुलियों से हल्की-सी टाप दी। गाड़ी का शीशा खुला उसमें से ड़ाइवर सीट की तरफ़ से एक हाथ निकला जिसमें मरा हुआ दस का नोट था जिसे देखते ही सुलेखा ने दोनों हाथों की कलाइयों को मोड़ते हुए कानों की ओर घुमाते हुए मुंह से दुआ दी!

भगवान भैया आपकी हर इच्छा पूरी करे! चेहरे पर हंसी के भाव लिए सुलेखा ने हाथ जोड़ दिये और अगली गाड़ी की ओर बढ़ गयी।

सुलेखा एक किन्नर है जिसे प्रायः मैंने ऑफिस से शाम को निकलते इसी सिगनल पर देखा है कभी

गहरे हरे रंग की साड़ी में तो कभी लाल रंग के कढ़ाई वाले सूट में। सुलेखा के गोल चेहरे पर ऊठी नाक है पर लंबे बाल हैं गहरी काली आंखों

पर खासा मेकअप होता है। अक्सर सिगनल पर शाम को सुलेखा और उस जैसी दो तीन किन्नरों की टोली गाड़ियों से पैसा आदि की मांग करती देखी जाती है। उस रोज़ पिंक सूट में सुलेखा एक आॅटों में बैठे युगल से पैसा मांग रही थी पर आॅटो में बैठे युवक ने उसे वहाँ से आगे बढने का निर्देश दिया और साथ में बैठी युवती संग बतियाने लगा! क्या यार! ये हिजडी यहाँ डेली फटक जाती है कोई काम नहीं है क्या इसको घ्आॅटो के शीशे में सुलेखा बीच-बीच में दूसरी किसी गाड़ी से पैसा मांगती दिखाई दे रही है। नहीं-नहीं इनका यही तो काम है इसी पैसे से तो इनकी ज़िन्दगी चलती है! देखो साड़ी कितनी सुंदर है! उत्सुक्तावश चेहरा आॅटों से बाहर झांकता हुआ बोलता है। एक दूसरी महिला किन्नर पास ही में गाड़ियों के इर्द गिर्द घूमती हुई सबको बोलती हैं! ऐ सर जी! भला लो आपका!

भगवान भला करे!

राम राम मैडम!

भैया कैसे हो!

सर जी ठीकठाक!

मुहं पर मुस्कुराहट के साथ बीच-बीच में ताली पीटती तेज दौड़ जाती हैं।

सड़क के इस छोर से उस छोर तक दोपहर से शाम और फिर देर रात बिना रूके अनवरत हर सिगनल पर इसी तरह न जाने कितने किन्नर युवा या अधेड़ अपनी ज़िन्दगी जीते हैं। हरा सिगनल जैसे ही ओरेंज होता है इन लोगों की उछल कूद आरंभ होने लगती है और कुछ ही मिनटों यानी के सिगनल जब तक लाल रहता है ये मस्तीएस्फूर्ति व मशक्कत से हर सामने आने वाले लोगों से आत्मीयता स्थापित करने की पुरजोर कोशिश करते हैं। सुलेखा भी किन्नरों की इसी टोली का एक हिस्सा है जो मुझे जब भी सिगनल से गुज़रते देखती है मुस्कुराकर बोलती है भैया राम राम! या सर जी नमस्ते या अन्य किसी अभिवादन उक्ति लिए प्रकट हो जाती है उसी तरह जैसे इक्के पर बैठा मीठी-मीठी बातों से रास्ता मांगता आगे बढ़ता है। सुलेखा के चेहरे पर तन्मयता है कोई क्रोध या द्वेष नहीं अर्थात कोई कुछ दे-दे तो ठीक वरना किसी दूसरी गाड़ी के करीब चली जाती है कोई ना नुकर नहीं और न कोई झगड़ा। जाने कितनी ही मर्तवा उसे मेरे दफ्तर के करीब यानी के बाराखंभा रोड के चौराहे पर बने सिगनल पर देखा है आज से नहीं बल्कि करीब तीन चार सालों से। मुझे उस रोज़ जब ऑफिस में या जाने किसी और जगह किसी ने सलाह दी थी जब मुझे शिमला जाना था कि यदि किसी किन्नर की दुआ

मिल जाए या उनका पढ़ा हुआ पैसों का सिक्का मिल जाए तो सफलता मिलने के अधिक चांस होते हैं। यद्यपि मैं ऐसी बातों कोअधिक तरज़ीह नहीं देता किंतु न जाने क्यों उस रोज़ सुलेखा को सिगनल पर देखते ही मैं मुस्कुरा दिया वह मेरे करीब से गुजरते हुई थोड़ा मुस्कुराई और बोली भैया राम राम! उस रोज़ मैंने उसकी आंखों में ख़ुशी देखी थी अब चूंकि सड़क के दूसरी ओर ग्रीन सिगनल की वज़ह से ट्रैफिक दोड़ रहा था तो उसे देखते ही दिन वाली बात याद आ गयी मैंने झट से अपने पर्स से पचास रूपये निकाले और सुलेखा के हाथों में रख दिये उसकी आंखों में चमक थी उसने नोट को माथे पर लगाकर अपने

पर्स में रख लिया व एक सिक्का निकाला जिसे अपने मस्तक आंखों व होठो से छूते हुए पुनः मेरे हाथ में रख दिया यही नहीं थोड़े चावल भी एक डिबिया से निकाले और मुझे देते हुए कहा भैया! आपके सारे काम पूरे होंगे! भगवान आपकी सारी इच्छाएँ पूर्ण करे! सड़क के दूसरी और निकलती गाड़ियों की गति काफ़ी तीव्र थी एक मोटर साइकिल पर सवार युवक सुलेखा को देखकर अजीब-सी टोंट कसता हुआ वहाँ से निकला तो गाड़ी में बैठी युवती ने अनमने भाव से उसे देखते हुए स्पीड़ बढ़ा दी। सुलेखा अपनी रोज़मर्रा ज़िन्दगी में पूरी तरह व्यस्त दिख रही थी गाड़ी के सिगनल को बदलता देख फिर सड़क के दूसरे किनारे की ओर दौड़ लगा दी। सड़क के एक किनारे मोती के फूलों की गंध से पूरी सड़क महक उठती थी यह आज ही नहीं बल्कि ऐसा रोज़ शाम को होता है जब एक औरत जो पचास के लगभग की होगी हाथों में मोतियों के फूलों की माला लिए फिरती है। मैंने अक्सर ग्राहकों को उस महिला से माला खरीदते देखा था गाड़ी वाले भी और ऑटों की पिछली सीट पर बैठे लोगों के द्वारा भी। सुलेखा और अन्य किन्नर इस महिला से मज़ाक आदि कर लेते हैं पर मैंने कभी इन्हें आपस में झगड़ते नहीं देखा।

पिछले तीन चार दिनों से एक बीमारी ने सारे देश को चौका दिया। हर तरफ़ बस एक ही बात कोरोना वायरस! सुना है दिल्ली बंद हो रही है

आॅफिस से निकलते हुए शाम को मुझसे किसी ने पूछा। मैंने चौंकते हुए कहा! अच्छा!

हाँ यार सुना तो मैंने भी है!

दुधिया रोशनी में नहायी सड़क आस पास की तेज रोशनी से और भी चमक रही थी पर आज एतिहातन सड़क पर भीड़ कम थी। भीड़ को कम देखकर मुझे लगा कि मैं आज लेट हो गया हूँ कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा तो महसूस किया वही टाइम तो है जो रोज़ होता है। दो एक पुलिस मुंह पर मास्क लगाकर खड़े थे वह सामनै खड़ी जीप में चढ़ते हुए बात करने लगे! हाँ दिल्ली में लाॅक डाऊन कन्फर्म है!

अच्छा! पुलिस का दूसरा कर्मी आश्चर्य से देखता

उसकी बात सुनता रहा। जीप स्टार्ट हुई और सिगनल की तरफ़ दौड़ गयी।

सब सहकर्मी जो मेरे साथ सड़क पर आगे बढ़ रहे थे चेहरों पर कौतुहलता और चिंता आने लगी।

सड़क के दोनों और लंबी बिल्डिंगों की लाइट्स अब बुझने लगी थी। युकोलिपट्स के लंबे पेड तेज समीर से झूम रहे थे। सुलेखा बैंगनी साड़ी पहने तेज कदमों से मेरी ओर आई उसके चेहरे पर उदासीनता थी वह आगे बढ़कर मुझसे पूछने लगी! भैया ये लाॅक डाऊन क्या होता है! सुना है हर तरफ़ लाॅकडाऊन होगा! मेरे सहकर्मी मुझे देखकर हंसने लगे औह हो पक्की दोस्ती!

वो लोग बोलते रहे पर मेरे क़दम आगे की ओर बढ़ते ही जा रहे थे पर फिर भी मैं दो पल के लिए रूका सुलेखा मेरे मुख से जवाब चाहती थी भैया!

बताओ ना! सब बोल रे हैं लाॅक डाऊन! लाॅकडाऊन मतलब!

एक बड़ी सफेद गाड़ी दोनों के करीब से गुजरी पर सामने लाल सिगनल देखकर वह हल्के-हल्के घिसटकर बढ़ने लगी। रोड़ के दूसरी तरफ़ एक बाईक का हार्न पूरी सड़क पर गूंज गया। हमारे सामने एक ऑटो रूका जिसमें पीछे बैठे व्यक्ति

ने सिगरेट सुलगाई और धूएँ को हवा में उड़ेलते हुए उसने पतलून की जेब से नोट निकाला और सुलेखा को बुलाकर कहा! हूँ हैलो डियर ये लो!

सुलेखा उस आदमी की ओर मुस्कुराते हुए बढ़ गयी उसने एक नोट को चूमते हुए उसे देने के लिए हाथ बढ़ाया पर जैसे ही सुलेखा ने नोट पकड़ा उस आदमी से उसकी कलाई पकड़नी चाही! अरी सुनो तो! दांत भींचते हुए होठों को फैलाते हुए भोंडी-सी हंसी लिए वह सुलेखा को घूरता रहा पर सुलेखा साड़ी के पल्लू को समेटते आगे बढ़ने लगी।

मैं जब तक लाॅकडाऊन का मतलब समझाता वह सड़क के दूसरे छोर पर पहुँच गयी थी मुझे लगा था कि वह सिगनल बदलते ही लौटेगी पर वह दूसरे किन्नरों संग व्यस्त होती गयी। मैंने सुलेखा को बुलाना चाहा मेरी आंखे हर ओर उसे ही ढूँढ

रही थी पर सुलेखा गाड़ियों की भीड़ और पैसे की चाह में मुझसे मिलना भूल गयी।

शैलेश ने मुझे पुकारा! अरे यार तुम्हें चलना नहीं क्या घ्

मैंने उसकी बाते सुनकर कोई जवाब नहीं दिया और बढ़ती गाड़ियों को देखता रहा। मुझे फिर पुकारा गया चलोगे! या हम चलेघ्

सहसा मैंने शैलेश को देखा वह मेरे इंतज़ार में आगे बढ़कर खड़ा हो गया था और मेरी राह देख रहा था उसकी आंखे बड़ी थी तथा चेहरे पर रोष था हमारी जैसे ही आंखे मिली उसने फिर इशारे से मुझे आगे बढ़ने को कहा। सड़क पर तेज शोर था मोती के फूलों की गंध अभी भी हर तरफ़ से आ रही थी।

मैं शैलेश के साथ आगे बढ़ने लगा मेरा सड़क की ओर मुड़ता चेहरा बार-बार दौड़ते वाहनों में सुलेखा को खोज रहा था। किन्नरों की टोली गाड़ियों के सामने तालियाँ बजाती लपक रही थी। फब्तियाँ और तंज कई राहगीरों के मुख पर चढ़े थे पर किन्नरों की टोली सिद्धहस्त कलाकारों की भांति अपने काज में संलग्न थी पर इस भीड़ में कहीं सुलेखा नहीं दिखाई दी। हम लोग करीब घंटे

में अपने-अपने घर पहुँच गये शायद सुलेखा और दूसरे किन्नर भी।

सरकारी आदेश पारित हुआ हर जगह लाॅक डाऊन! एक बार जैसे ज़िन्दगी ही थम गयी हो। यानि घरबंदी! सारे रास्ते बंद! कोई सड़क पर नहीं पहुँच सकता यहाँ तक कि घर से ही नहीं निकल सकता! तो फिर सिगनल!

मन कोंधा

सुलेखा कैसी होगी!

और वह किन्नर टोली!

सारी दिल्ली के किन्नर!

सारे भारत के किन्नर!

उनके खाने पीने रहन सहन के बारे में सोचकर दिल थम गया जैसे सारी इन्द्रियाँ सुलेखा को ही

तांक रही हो। आज कितने ही दिन हो चुके हैं सब घर में बैठे हैं पर रोज़ पैसा इकट्ठा करने वाले लोग कैसे जी रहे होंगे और सुलेखा या वह किन्नर टोली कैसेऽऽ क्यींकि उन लोगों को देखकर तो वैसे ही सब उन्हें उपेक्षा भरी नज़रों से देखते हैं। सड़के खाली हैं खुले आसमां की भांति हर आदमी इन दिनों अपनी ज़िन्दगी से ऊब रहा है। बालकाॅनी की तरफ़ जाकर देखा तो पाया सड़क खाली है कोई इक्का दुक्का लोग ही सड़क पर घंटो तक देखने के बाद दिखाई देता है।

शाम को अलमारी खोली सामने दराज में एक मुड़ा हुआ काग़ज़ मिला सोचा खोलकर देखू। काग़ज़ के कोने पर संगम नर्सिंग होम था नीचे कुछ दवाइयों के नाम लिखे थे। दवाइयों के नाम पढ़ते-पढ़ते याद आया पिछले महीने जब गुरनाम को ऑफिस से ले जाकर नर्सिंग होम में एड़मिट किया था क्योंकि उसदिन उसकी तबीयत ज़्यादा ही ख़राब हो गयी थी तभी ये काग़ज़ मेरे साथ आ गया था। सामने टेबल पर रखे फ़ोन से गुरनाम का फ़ोन लगाया दो तीन बैल बजते ही गुरनाम की बीबी ने फ़ोन उठाया! हैलो हाँ गुड़ इवनिंग हूँ यहीं

हैं एक मिनट!

कहो गुरनाम अब कैसे होघ्

सब ठीक है अबघ्

हाँ मैं भी ठीक हूँ!

और बच्चेघ्

हाँ सब बच्चे ठीक ठाक हैं!

हाँ एग्ज़ाम तो हो गये थे!

नहीं साइंस है ना!

भाई बारहवी में हैं ना!

हूँ हाँ हाँ!

चलो ओके! टेक केयर!

बाय!

फोन रखते ही मुंह पर मास्क लगाकर दवाई की पर्चा जेब में डालकर बाईक उठाकर रोड पर चल पड़ा। सोचा कोई न मिले तो बाराखंभा के सिगनल

तक हो आऊँ। घर से एक ढेड़ किलोमीटर ही बढ़ा था पुलिस कर्मियों ने मुझे रोकने के हाथ बढ़ाया

तेज स्पीड़ से चलते पहिये वहीं थम गये। हेलमेट बिना उतारे पुलिसकर्मी ने बाहर निकलने का सबब पूछा। मैं सहम-सा गया पर जेब से वह पर्चा निकालकर उसमें लिखी दबाई पर अंगुली रखकर बताया कि ये बहुत ज़रूरी है। वहाँ से निकलने से पहले ही मैंने पुलिस कर्मी को धन्यवाद दिया।

दो एक सिगनल आये पर इस काग़ज़ के सहारे मैं बाराखंभा के सिगनल तक पहुँच गया। शाम तेजी से रात की ओर बढ़ रही थी पर खाली सड़कों पर आज बहुत कम ट्रैफिक था। इस सड़क पर ऐसा सूनापन शायद मैंने पिछले दस बारह सालों में कभी नहीं देखा था। सड़क का हर कोना खाली था गहरा सूनापन बिल्कुल शून्य की तरह।

करीब पांच मिनट तक ऐंबुलैंस या सरकारी गाड़ियों के अलावा वहाँ से कोई नहीं निकला। आज सड़क साफ़ थी शायद वैसी ही थी जैसी उस रोज़ जब सुलेखा को यहाँ अंतिम मर्तवा देखा था। पर आज यहाँ कोई नहीं ना सुलेखा और ना वह किन्नर की टोली और न वह मोती के फूलों की गंध जो सबको लुभाती थी।

पुलिस कर्मी ने मेरे पास आकर कहा यहाँ कैसेघ्

मैंने पुनः जेब में पढ़ा काग़ज़ दिखा दिया। पुलिस ने अपने हाथ में थामे डंडे से बाईक पर सामने की ओर चोट करते हुए जल्दी ही वहाँ से निकलने को कहा।

सुलेखा आदि को न पाकर मैं हताश था एक अजीब निराशा जो अकेलेपन में मैंने महसूस की थी। मेरी आंखे दूर तक खाली सड़की पर उस टोली को तलाशती रही पर वहाँ कुछ भी नहीं था।

गहरी चुप्पी और बीच-बीच में गाड़ी का हार्न और शायद कुछ नहीं। खाली सड़को पर बाईक दौड़ती रही सफेद पीली लाईट में पेड़ चमक रहे थे एक बड़ी गाड़ी तेज आवाज़ करती पास से निकल गयी। तेज हार्न सारे सन्नाटे को परास्त कर रहा था पर लाईट के डिप्पर से वह शांत होता चला गया। नम आंखे कुछ ज़रूरी सेवाओं से लौटते लोगों को देखती रही। अस्पताल के सामने खड़ी भीड़ के पीछे पुलिसकर्मी दूर से ही चलते जाने का निर्देश दे रहे थे। पास ही मास्क लपेटे एक मरीज को कुछ लोग थामे अंदर जाने की जुगत लगा रहे हैं। सारा शहर जैसे आततायी चक्र के भय में जी रहा हो। भय पैर पसारे हर गली हर मोड़ पर जैसे दुबका हो।

पहले एक दिन बीता फिर दो तीन चार इक्कीस और फिर जब डेढ़ महीने बाद जब लाॅकडाऊन खुला ऐसा लगा सब कुछ बदल गया हो सारी दुनिया ही बदली-बदली लगी डरी डरी।सी सहमी।

लाॅकडाऊन के उपरांत जब दफ्तर का पहला दिन जैसे कि नया जीवन जीना हो। मैं अपलक अपने कम्प्यूटर की तरफ़ देखता रहा दिन बढ़ने लगा और लंच पर सोचा क्यों ना सिगनल की ओर हो आऊ। आॅफिस के गेट से बाहर खड़े गार्ड ने मुस्कुराते हुए मुझे देखा उसकी आंखे खिली थी उसने अपनी लंबी मूंछ पर ताव देते हुए मुझसे पूछा! सर आप ठीक हैघ् गर्दन को हल्का हिलाते हुए मैं बाराखंभा के सिगनल की ओर आगे बढ़ता गया। आज तेज धूप है पर ट्रैफिक ज़ोरो पर है जैसे सारा शहर को ही इस सड़क से गुज़रना हो। सिगनल पर ख़ासी भीड़ है दो एक किताब विक्रेता गाड़ी के वाईपर आदि के छोटे मोटे विक्रेता लोग ही दिखे पर किन्नरों की टोली वहाँ नहीं दिखी। मैं मायूस होकर वापिस ऑफिस लौट आया। तीन बज गये पर मन काम में बिल्कुल नहीं लगा बस मन व्यग्र है सुलेखा को एक नज़र देखने के लिए।

प्रेम एक आत्मिक अनुभूति है जिसे केवल महसूस किया जा सकता है दिखाया या बताया नहीं जा सकता। कुछ लोग सुलेखा जैसी किन्नरों का मज़ाक उडाते हैं या उनका शरीर नौचते हैं पर ये आवश्यक तो नहीं कि प्रेम में व्यक्ति साध्य हो सुलेखा को तीन चार सालों से देखा पर ये मेरी ही मुर्खता रही कि आज तक उसका कोई सम्पर्क सूत्र न ले सका। शायद समाज प्रतिष्ठा के कारण और लोगों का क्या है उन्हें तो तंज साधने के बहाने चाहिए और वैसे भी सुलेखा जैसी

किन्नर लोगों को आत्मीयता से कौन देखता समझता है घ्शायद दो फीसद लोग भी नहीं पर लोग ये क्यों नहीं समझते ये भी इंसान हैं काश इनकी दुनिया भी आम आदमी की-सी होती। पर जो भी हुआ अब और नहीं आज ही जब मैं सुलेखा से मिलूंगा सब कुछ जान लूंगा उसका संपर्क और लाॅक डाऊन में बीते संकट भरे दिनों की ज़िन्दगी के बारे में भी। सुलेखा न भी मिली तो उस जैसी दूसरी औरतों; किन्नरोंद्धसे।

काम में बिल्कुल भी मन नहीं शैलेस ने मेरी कुर्सी की हत्थी पर हाथ रखते हुए मुझे कहा!

आज तो तुम अपनी फ्रेंड से मिलोगेघ्

मैं हडबड़ा-सा गया आंखों पर से चश्मा हटाते मैंने शैलेश को देखा उसके होठ फैले थे और आंखे फटी थी बीच-बीच में कंठ से हंसने की आवाज़ निकल रही थी। किसी तरह ऑफिस से निकलने का समय हुआ पीली धूप जो ऑफिस के एक कोने से होते हुए गहरी छावं में बदलती रही। मेरे पैर ख़ुद व ख़ुद ऑफिस से बाहर होते गये और सिगनल की ओर दौड़ पड़े। सड़क पर ट्रैफिक था पर दोपहर से कम सिगनल पर गाड़ियाँ रूकने लगी सहसा मैं हर तरफ़ देखने लगा पर सुलेखा का कोई अता पता नहीं था। पूरी सड़क मोती के फूलों की गंध से लवरेज थी वैसी ही जैसी उस रोज़ थी और सुलेखा को अंतिम मर्तवा देखा था पर किन्नरों को वहाँ न पाकर मैं ठिठक गया और उस अधेड़ उम्र की औरत की ओर बढ़ने लगा जो मोती के फूल बेचती थी। सुनो अम्मा!

तुमने सुलेखा को देखा हैघ्

क्या वह आज नहीं आयीघ्

सुलेखा! अरे वह!

क्या हुआघ्

बताओ भी ऐसे क्या देख रही होघ्

मेरे इतने सवाल एकसाथ सुनकर वह हतप्रभ होकर मुझे देखने लगी। दायें ओर से एक कार तेजी से निकल गयी। मैं उत्तर की तलाश में फूल वाली को देखता रहा। मेरे प्रश्नों को पुनः सुनकर

उस अधेड़ उम्र की औरत की आंखों में आंसू तैर गये। भगवान के लिए कुछ बोलो! क्या हुआ तुम चुप क्यों होघ्

फूल बेचने वाली ने जैसे ही बोलना आरंभ किया मैं थरथर कांपने लगा जैसे मेरे होठ सील दिये गये हो वह तो तीन तारीख से ऽ!

अच्छा!

हाँ वह कोरोना संक्रमित थी!

अभी कहाँ हैं सुलेखाघ्मैंने कांपती आवाज़ से पूछा!

हूँ शायद सरकारी अस्पताल में वह जी टी बी है ना!

नम आंखों से देखते हुए मैंने उस औरत को सड़क के एक छोर पर चलने को कहा। जेब से बीस का नोट निकालकर उसके हाथ पर रख दिया प्लीज तुम मुझे सुलेखा का फ़ोन नं दे दो!

वो गंभीरता से मेरे चेहरे को देखती रही।

भैया आपको उससे क्या काम थाघ्

क्या आप उसे जानते थेघ्ऑफिस के सहकर्मी हंसते हुए निकल गये

हाँ मैं सुलेखा को जानता हूँ प्लीज आप मुझे उसका फ़ोन न दे दो या एड्रैस दे दोघ्

वो मंडावली हैं ना गली नं 12 में भूप सिहं के मकान में वह लोग किराये पर रहते हैं पर इस समय वह जी टी बी हाॅस्पीटल में हैं। औरत के चिपके होठों पर बार-बार खुश्क दिखते थे वह फिर बोली बाबूजी आप क्या करेंगे ये रोग फैलने वाला है कहीं आप भीऽऽ! जानते हो! उस मोहल्ले में छह लोगों को कोरोना था। सुलेखा मिलनसार थी वह डरती नहीं थी पर उसे भी वह भी कोरोना कि चपेट में ऽऽबोलते बोलते वह चुप हो गयी।

अच्छा आप उसका नं ले लो मेरी बात हुए तो दस बारह दिन हो गए हैं शायद इससे भी ज़्यादा! उसने ब्लाऊज में हाथ घुसेड़कर छोटा-सा फ़ोन निकाला और सुलेखा का फ़ोन नं देते हुए कहा बाऊजी देख लेना शायद फ़ोन सुलेखा के पास हो या न हो। फोन नं देकर वह एक पुराने ग्राहक को देखकर उस ओर दौड़ पड़ी।

कहो सर कैसे होघ्

एक ठिगने से आदमी ने हंसते हुए उस औरत से एक गजरा लिया और नोट देते हुए उसे अपनी सलामती की बात कही। वह औरत जल्द ही दूसरे ग्राहक में उलझ गयी। मुझे लगा कि वह वापिस लौटेगी पर दस मिनट तक वह वापिस न लौटी। सड़क पर शौर होता रहा एक बड़ी गाड़ी सिगनल पर आकर रूकी पर जैसे ही सिगनल हरा हुआ वह तेजी से घिसटती हुई वहाँ से निकल गयी।

सुलेखा का नं0 डायल करने पर वह स्वीच आॅफ था। दो तीन बार मिलाने पर यही प्रतिक्रिया सुनाई दी। मेरा कलेजा धड़कने लगा सामने से एक आॅटो आया और मुझे वहाँ खड़ा देखकर उसने ब्रेक लगाया।

जी सर! बायीं ओर से चेहरा निकला और मुझे ताकने लगा।

जी टी बी हास्पिटल चलोगेघ्

ऑटो जी टी बी हास्पिटल की तरफ़ दौड़ पड़ा।

अस्पताल पहुँचते ही मैं रिसैप्सन पर रूका और सुलेखा के बारे में जानना चाहा।

अरे बाबू जी आप!

यहाँ कैसेघ्

मास्क लपेटे एक पतली कमजोर-सी किन्नर मेरी तरफ़ बढ़ी और मुझे देखकर रूआंसी हो गयी।

सुलेखा कहाँ हैघ्

वो रोते हुए बोली बाबूजी सुलेखा नहीं रही!

पिछली तेरह को उसने दम तोड़ दिया!

उसको कोरोना हो गया था।

हाँ बाबू जी कोरोना! वो पोजिटिव थी!

सुबकते हुए उस किन्नर ने कहा!

मेरे पैर तले जैसे ज़मीं ही जैसे निकल गयी हो मैं दो पल चुप रहा।

हैं सुलेखा को कोरोना!

जैसे यक़ीन न हो रहा हो।

उसे कैसे हो सकता है कोरोना!

नहीं नहीं तुम झूठ बोल रही हो!

नहीं बाबूजी सब सच है!

एकदम सच!

बिल्कुल सच!

हाँ यही सच है!

सुलेखा नहीं बची।

कोरोना ना उसे मार दिया!

हास्पिटल के सूचना पट को देखते हुए मेरी आंखे भीग गयी।

साहब हम चार में से अब दो बचे हैं बेला भी तीन रोज़ पहलेऽऽ। कहते हुए वह किन्नर फिर रो दी।

मैं हास्पिटल के अहाते में आते जाते मरीजो व उनके प्रियजनों को देखता रहा। सुलेखा का मुस्कुराता चेहरा भी इसी भीड़ में कहीं छिपा है

काश! लाॅकडाऊन में सुलेखा बच जाती।

काले आसमां में चमकते सितारों को देखता मैं घर की ओर बढ़ गया।