लिव इन / मधु संधु
दोनों अपने-अपने क्षेत्र में माहिर थे। आभिजात्य उनके चारों ओर लिपटा पड़ा था। घर के बाहर दोनों एकदम मर्दाना होते और घर के अंदर जनाना।
बाहर लंबी गाडियाँ ड्राइव करते, कम्प्यूटर पर प्रोजेक्ट बनाते, मीटिंग कर कर्मचारियों / अधिकारियों को संबोधित कराते, नित्य नए ट्रिप पर जाते, शाम को अलग-अलग दोस्तों के साथ कैफे, पिक्चर, रेस्टोरेन्ट में घूमते।
अंदर आते ही दोनों किचन में घुस जाते। वह आटा मलता, वह चपाती सेंक देती। वह दूध उबालता, वह फ्रिज की साफ-सफाई कर देती। वह बिखरी चीजें तहाता, वह कबेट में संभाल देती।
दोनों में पूरी अण्डरस्टैंडिंग थी। दोनों खुश थे और इस जीवन से संतुष्ट थे। सास-ननद की तानेबाजियों और पत्नी की हिदायतों की जगह हाई टैक संगीत चलता। सिंदूर की जगह कम्पनी की स्मार्ट ड्रेस की कैप ने और मंगलसूत्र की जगह गले में लटकते पहचान पत्र ने ले ली थी।
दोनों प्राइवेट कम्पनियों में कार्यरत थे। लड़का चार और लड़की तीन कम्पनियाँ बदल चुकी थी। वेतन वृद्धि के इंतजार की अपेक्षा उन्हें नई नौकरी ज़्यादा सुविधाजनक लगती। लड़का इससे पहले हैदराबाद, गुड़गाँव, मैसूर आदि में और लड़की बैंगलोर, नोएडा वगैरह में रह चुकी थी। लिव-इन में रहना उन्हें अच्छा लगता था और सौभाग्य से उन्हें अच्छे साथी मिलते रहे थे। दोनों विदेश यात्राओं पर भी रहते। लड़का सिंगापुर, आस्ट्रेलिया और लड़की इटली, अमेरिका घूम चुके थे।
सबसे बड़ी बात कि दोनों आज़ाद थे। गृहस्थ के कारावास, सात फेरों वाले अटूट बंधन और बंधी नौकरी की बासी रूटीन से दोनों बहुत आगे निकल चुके थे।