लीजेंड क्रिकेटर मिताली की भूमिका में तापसी पन्नू / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 09 दिसम्बर 2019
तापसी पन्नू महिला क्रिकेटर मिताली राज की बायोपिक अभिनीत करने जा रही हैं। कुछ वर्ष पूर्व शाहरुख खान ने फिल्म 'चक दे इंडिया' में कोच कबीर की भूमिका अभिनीत की थी। फिल्म महिलाओं के हॉकी के खेल में विश्व विजेता बनने को बयां करती थी। 'चक दे इंडिया' में यह प्रस्तुत किया गया था कि खिलाड़ी कबीर पाकिस्तान के खिलाफ गोल दागने से चूक गया था और इस्लाम अनुयायी होने के कारण यह अफवाह फैलाई गई कि उसने जानकर गलती की थी।
अफवाहों के कारण उसे अपने पारिवारिक निवास को छोड़कर अन्य स्थान पर बसना होता है। चीन जमीन हड़पता रहे तो भारतीय नेताओं के माथे पर बल नहीं पड़ता। परंतु पाकिस्तान के अंगड़ाई लेने पर भी नेताओं की भुजाएं फड़फड़ा उठती हैं। पाकिस्तान की आर्थिक दशा भारत से कहीं अधिक कमजोर है। पाकिस्तान में औद्योगिक विकास नहीं किया गया। वहां की फौज, राजनीति में दखल देती है। मुल्ला-मौलवी अदालती मामलों में हस्तक्षेप करते हैं। हमारे यहां भी तरह-तरह के आरोप लगाए जाते हैं। पाकिस्तान की शायरा फहमीदा रियाज कहती हैं 'तुम बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छिपे थे भाई? वही मूर्खता, वही गंवारपन, जिसमें हमने सदी गंवाई, आखिर में पहुंची द्वार तुम्हारे, अरे बधाई, बहुत बधाई।'
फिल्म 'चक दे इंडिया' में चयन के लिए आई खिलाड़ी अपने साथ प्रांतीय संकीर्णता भी लाई है। अतः कोच कबीर उन्हें पहले एकजुट होकर भारत के लिए खेलने की भावना से प्रेरित करता है। पेंच के भीतर पेंच यह है कि दो खिलाड़ियों के बीच आपसी होड़ है कि कौन अधिक गोल मारता है। कोच कभी उन्हें समझाता है कि आपसी होड़ त्याग दें, अन्यथा टीम के 9 खिलाड़ी उन दोनों के खिलाफ खेलेंगे। एक महिला कहती है कि उसे अपने अहंकारी मित्र को सबक सिखाने के लिए सबसे अधिक गोल मारना हैं। फाइनल मैच में विरोधी गोलकीपर को भी धक्का दिया गया है। गोल मारने के लिए खिलाड़ी अपना अवसर अपने प्रतिद्वंद्वी को यह कहते हुए देती है कि अपने 'दंभी मित्र को सबक सिखा दे'।
फाइनल जीतकर टीम भारत आती है। कोच कबीर अपने पुश्तैनी घर वापस आता है। बाहरी दीवार पर 'देशद्रोही' लिखा है। वर्तमान समय में तो हर विरोध करने वाले को देशद्रोही करार दिया जाता है। बहरहाल एक बच्चा देशद्रोही शब्द को कोयले से मिटाता है। कोच कबीर अपनी हॉकी स्टिक उस बच्चे को भेंट स्वरूप देता है। ज्ञातव्य है कि स्वतंत्रता संग्राम के समय गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधीजी को पत्र लिखा था कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए देश प्रेम की भावना जगाना आवश्यक है, परंतु स्वतंत्रता प्राप्त होने के कुछ समय बाद देश प्रेम को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। आज स्वतंत्र विचार शैली रखने वालों को 'देशद्रोही' कहा जा रहा है।
कुछ समय पूर्व ही अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म आजादी के बाद खेले गए पहले ओलंपिक में भारतीय टीम की जीत का विवरण प्रस्तुत करती है। फाइनल मैच के दरमियान ही बरसात होने लगती है और भारतीय खिलाड़ियों के जूते फिसलने लगते हैं। टीम पिछड़ने लगती है। उनका कोच खिलाड़ियों को जूते और मोजे उतारकर खेलने का आदेश देता है और इसका अनुसरण करते ही भारतीय खिलाड़ियों के पैर नहीं फिसलते और वे मैच जीत जाते हैं। इसके पूर्व की घटना में नायक कीचड़ में फंसी गाड़ी को धक्का देता है। पत्नी कहती है कि जूते उतार दो तो फिसलोगे नहीं। ज्ञातव्य है कि पूजा एवं आरती शेट्टी ने ध्यानचंद बायोपिक के अधिकार खरीदे हैं और उनके परिवार के सदस्यों से रजामंदी के पत्र भी हासिल कर लिए हैं। पात्र चयन नहीं हो पाने के कारण यह फिल्म अभी तक नहीं बन पाई है।
'गोल्ड' और 'चक दे इंडिया' में सामान बात यह है कि दोनों फिल्मों के कोच अपने श्रेष्ठ खिलाड़ी को फाइनल में ही खिलाना चाहते हैं। दूसरी टीमों के कोच हर मैच को देखकर अपनी खेल नीति में परिवर्तन करते हैं। अत: श्रेष्ठ खिलाड़ी को फाइनल के पहले मैदान पर नहीं उतारते। ज्ञातव्य है कि सन 1983 में कपिल देव निखंज के नेतृत्व में भारत ने मैच जीता था। इससे प्रेरित फिल्म '83' निर्माणाधीन है। रणबीर सिंह, कपिल देव निखंज की भूमिका अभिनीत कर रहे हैं। एक दौर में शिक्षा संस्थाओं में खेल-कूद के मैदान होते थे और छात्र रुचि लेते थे। आज कई नगरों की बहुमंजिला इमारतों में स्कूल चलाए जा रहे हैं। वहां खेल के मैदान ही नहीं हैं। ज्ञातव्य है कि तापसी पन्नू ने 'नाम शबाना' और 'बेबी' फिल्म में खलनायकों को मारा-पीटा है और वे दृश्य विश्वसनीय लगते हैं। उनके मजबूत शरीर के कारण ही महिलाओं की मजबूत हड्डियों के लिए एक पौष्टिक पाउडर वाली विज्ञापन फिल्म में उनसे अभिनय कराया गया है। विज्ञापन बनाने वाले लोग कलाकार का सही इस्तेमाल करना, कथा फिल्म बनाने वालों से अधिक जानते हैं। अत: महिला क्रिकेटर मिताली राज की भूमिका के साथ तापसी पन्नू न्याय करेंगी।