लीडियन नादस्वरम का कमाल / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 18 मार्च 2019
तेरह वर्ष के बालक लीडियन नादस्वरम ने पियानो बजाने की प्रतियोगिता में 1 मिलियन डॉलर (करीब 70 लाख रुपए) का प्रथम पुरस्कार जीता। पूरे विश्व में युवा प्रतिभा को खोजने के महान उद्देश्य से इस प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। ज्ञातव्य है कि लीडियन ने 4 वर्ष तक एआर रहमान की संगीत पाठशाला में कला सीखी और उसके संगीतकार पिता वर्शन सतीश भी उन्हें प्रतिदिन प्रशिक्षण देते हैं। यह बालक प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे पियानो बजाने की रियाज करता है। पारंपरिक शिक्षा उसे घर पर ही दी जाती है। लीडियन को पियानो बजाते देख संगीत के जानकार जेम्स कॉर्डन अत्यंत प्रभावित हुए हैं। 4 अप्रैल को लीडियन अमेरिका में आयोजित एक प्रतियोगिता में भाग लेने जा रहा है। इस प्रतियोगिता में लीडियन ने 280 बीट प्रति मिनट बजाए और 350 का लक्ष्य पाने के लिए वे प्रयास कर रहे हैं। संगीत क्षेत्र में कुछ प्रभावशाली व्यक्ति बाल्यावस्था और किशोर वय में अपनी प्रतिभा का संकेत देते हैं। कहावत है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं। इन्हें चाइल्ड प्रोडिजी कहते हैं। मोजार्ट ने भी बाल्यावस्था में ही महान बन जाने के संकेत दे दिए थे। मोजार्ट का बायोपिक 'अमेडेयस' अत्यंत प्रशंसित और ऑस्कर पुरस्कार पाने वाली फिल्म है। मोजार्ट भी अपनी प्रतिभा से भलीभांति परिचित रहे और अपनी जीत व सनकीपन से उन्होंने लोगों को परेशान किया।
यूरोप के देश में दरबारी संगीतकार सेलरी ने मोजार्ट को सुना तो वह उस समारोह से भागकर एक सुनसान स्थान पर पहुंचा और आकाश की ओर देखते हुए चीखकर कहने लगा, 'हे ऊपर वाले तुमने अपार प्रतिभा मोजार्ट को दी और विराट महत्वाकांक्षाएं मुझे दीं। अब मैं मोजार्ट का जीवन कठिन और कष्टकारी बना दूंगा और षड्यंत्र रचकर उसकी हत्या कर दूंगा।' यथार्थ में ईर्ष्या से वशीभूत होकर सेलरी ने मोजार्ट की हत्या की। दरअसल, प्रतिभाहीन महत्वाकांक्षी व्यक्ति पूरे मानव समाज के लिए खतरा सिद्ध होता है। सारा प्रकरण इस बात को रेखांकित करता है कि हर व्यक्ति को स्वयं की सीमाओं को समझना चाहिए और सीमा के परे जाने का प्रयास करना चाहिए। जन्म की सतह के ऊपर उठने का प्रयास हर मनुष्य को करना चाहिए। दरअसल, हर व्यक्ति एक महान संभावना है और सकारात्मक दृष्टिकोण से उसे स्वयं को निखारना चाहिए। ईर्ष्या की अग्नि दूसरों को कष्ट देते हुए ईर्ष्यालु व्यक्ति को भी जलाकर खाक कर देती है। हर व्यक्ति स्वयं को सबसे अधिक बुद्धिमान समझता है। सारे मुगालते यहीं से शुरू होते हैं। मूर्ख मनुष्य खंजर की तरह होता है, जहां से गुजरता है वहां किसी न किसी को आहत करता है। कुमार अंबुज की कविता की कुछ पंक्तियां हैं 'बुद्धिमानी की सीमा होती है/ मूर्खता का अंतरिक्ष होता है/ मूर्खता को योग्यता से जोड़ा गया/ फिर रोजगार से/ फिर राष्ट्रीय अभिमान से, फिर परंपरा से/ इसलिए आप देख रहे हैं कि मूर्खता हर बात पर गर्व कर सकती है/ जाति पर, अशिक्षा पर, इतिहास पर, दुष्कर्म पर/ सबसे ज्यादा अपनी मूर्खता पर/ अब मूर्खता एक मौलिक अधिकार है/ और मूर्ख बनाना भी कोई अपराध नहीं रह गया है/ इसके लिए तो अनुदान की व्यवस्था है/ नियमानुसार यदि यह आपको मिल रहा है तो आप न्यायालय में याचिका भी दायर कर सकते हैं/ और आप याचिका दायर कर ही देंगे तो/ इसे अलग से साबित करने की कोई जरूरत नहीं रह जाएगी।' बहरहाल, हम प्रार्थना करते हैं कि लीडियन नादस्वरम 4 अप्रैल को अमेरिका में ऐसा प्रदर्शन करें कि लोग अचंभित हो जाएं। पियानो पश्चिम का वाद्य यंत्र है और उसे बजाने की महारत एक 13 वर्ष के भारतीय बालक के पास है। अदनान सामी भी तीव्र गति से बजाने के लिए जाने जाते हैं। खबर यह है कि संजय लीला भंसाली, सलमान खान और शाहरुख खान के साथ 'बैजू बावरा' बनाना चाहते हैं। इनमें से एक अकबर के दरबार के तानसेन की भूमिका करेगा और दूसरा बैजू बावरा की भूमिका का निर्वाह करेगा। ज्ञातव्य है कि इस विषय पर भारत भूषण और मीना कुमारी फिल्म 'बैजू बावरा' सफल रही थी। भंसाली की फिल्म में स्वयं भंसाली ही संगीत भी रचेंगे।
अगर फिल्म के माध्यम से ही अवाम की रुचि शास्त्रीय संगीत में जागे तो यह अत्यंत प्रसन्नता की बात होगी। हमारे देश में प्रतिभा का भंडार है, केवल सही मंच और सही अवसर नहीं मिल पाते। यह बात भी गौरतलब है कि रहमान साहब के नाम का 'अ'-अल्लारखा है। बड़े प्रसिद्ध तबलावादक रहे हैं अल्लारखा खां साहब।