लूट / शोभना 'श्याम'
"उफ़ बड़ी गर्मी है बाहर तो! ज़रा ए.सी. तेज़ करवाना मिसिज गुप्ता!"
"जी करती हूँ, लीजिये, पानी लीजिये! घर मिलने में कोई दिक्क्त तो नहीं हुई?"
"ज्यादा नहीं, मगर साईकिल-रिक्शावाले ने मरे तीस रुपये झटक लिए। इतना लूटने लगे हैं कि पूछो मत! बीस रूपये से कम में तो पैर नहीं रखने देते रिक्शा में!"
"महँगाई भी तो कितनी है मिसिज जुनेजा, ऊपर से जानलेवा गर्मी। बीस-तीस रुपये में बेचारों का होता ही क्या है।"
"अरे छोड़िये! बड़े बदमाश होते हैं ये लोग, कोई बेचारे-वेचारे नहीं हैं। अरे मिसिज़ गुप्ता! ये डांसिंग गणेशा का स्टेचू कहाँ से लिया? हमारी हैंडीक्राफ्ट्स की शॉप पर भी तो सेम टू सेम स्टेचू है। वहीं से लिया होगा ना? सच! कितनी बढ़िया कारीगरी हैं!"
"अ... न ...नहीं मिसिज जुनेजा! ये तो मैंने दिल्ली हाट से लिया है।"
"अरे! मिसिज गुप्ता! इतनी दूर जाने की क्या ज़रूरत थी? हमारा एम्पोरियम तो इतनी पास है!"
"जी... मिसिज जुनेजा ..., पहले तो वहीं गयी थी...मीन्स आपके यहाँ, ...लेकिन आपके यहाँ तीन हज़ार का था और...दिल्ली-हाट में... कारीगर की दुकान से चौदह सौ का मिला।"