लेखक / रश्मि

Gadya Kosh से
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लेखक महोदय घर पहुंचे तो भीतर से आती बातचीत कि आवाजें सुन दरवाज़े पर ही रुक गए।

'देखो बहन, ये है इनकी नई छपी किताब।' उनकी पत्नी अपनी सहेलियों को लेखक महोदय कि नई स्व-रचित पुस्तक दिखा रहीं थीं व बडबडा रहीं थीं।

'न जाने इन्हें क्या सूझी कि दोस्तों से कर्जा लेकर ये किताब छपवाई। लोग-बाग़ वाह-वाही करके एक-एक किताब ले जाएंगे और एक पैसा भी न थमाएंगे।यदि कुछ चर्चा-वर्चा हो भी गई तो क्या एक मैडल ही तो पाएंगे।' हाथ नचाते हुए वे आगे फिर बोलीं, 'न जाने ये किस माटी के बने हैं? दिन पर दिन सोना महंगा होता जा रहा है, इतने रुपयों में तो एक बढ़िया सा हार बनवा लेती। सारी उम्र पहनती और बुढापे में उसके लालच पर बहु से सेवा भी करवा लेती।'