लेखन विभाग में कंगना का स्थान / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 28 जून 2014
अमेरिका से पटकथा लिखने का प्रशिक्षण लेकर लौटने के बाद कंगना रनावत न केवल अपनी अभिनीत पटकथाओं में सुझाव देंगी वरन् वे कुछ हिस्से लिखेंगी भी। वह यह भी चाहती हैं कि लेखन विभाग में उनका नाम जाना जरूरी है। सच्चाई यह है कि सारे सितारे पटकथा में परिवर्तन करते हैं, अब कंगना इस खेल में हिस्सा ले रही हैं। जब 'दबंग' का प्रदर्शन हो गया तब यूटीवी के शिखर सिद्धार्थ कपूर ने ऋषिकपूर से कहा कि दबंग की पटकथा उनके पास आई भी थी और नीरस फिल्म में पैसा लगाना उन्हें सही नहीं लगा परंतु प्रदर्शित फिल्म 'दबंग' अपनी मूल पटकथा से बहुत अलग है। जाहिर है कि सारे परिवर्तन सलमान और अरबाज ने किए।
'प्रेम रोग' की मूल कथा सामंतवादी मूल्यों पर प्रहार करते हुए एक युवा विधवा की कथा थी परंतु नायक का चरित्र गौण था। पटकथा लेखक जैनेंद्र जैन उसमें अनेक परिवर्तन किए और फिल्मांकन के समय राजकपूर ने भी परिवर्तन किए। मूल पटकथा में बिना किसी परिवर्तन के बहुत कम फिल्में बनी हैं। फिल्म निर्माण निरंतर परिवर्तन की प्रक्रिया है। कई बार लोकेशन पर पहुंच कर निर्देशक परिवर्तन करता है। मसलन राकेश रोशन ने करण अर्जुन की राजस्थान में हो रही शूटिंग में अपनी मूल पटकथा में बैल गाड़ी की जगह ऊंट गाड़ी किया तो राखी ने आपत्ति उठाई। उस फिल्म के निर्माण के समय सारे सितारे गुटबाजी करके राकेश रोशन का विरोध करते रहे क्योंकि उन्हें वह अवधारणा ही नापसंद थी कि दो भाई अगले जन्म में अलग-अलग परिवारों में जन्म लें और फिर मिलकर विगत जन्म के अन्याय का प्रतिकार करें।
फिल्म निर्माण में एक स्कूल है जो 'वाटर राइट' पटकथा की बात करता है अर्थात जिसमें परिवर्तन ही नहीं किया जाएगा गोयाकि पटकथा नहीं हुई वरन् 'वाटरप्रूफ' पनडुब्बी हो गई। दूसरे स्कूल में लोकेशन, कलाकार की क्षमता और अन्य कारणों से परिवर्तन करना अनुचित नहीं माना जाता। चेतन आनंद के पास 'हकीकत' का एक ग्राफ था और लोकेशन पर पहुंचकर चेतन आनंद दृश्य लिखते थे। उस फिल्म के निर्माण में भारतीय सेना ने सहयोग दिया था और सेना की सुविधा के लिए भी परिवर्तन किए गए थे। विजय आनंद ने 'राम-बलराम' और 'राजपूत' कमोबेश त्वरित पटकथा पर बनाई थी। माध्यम पर मजबूत पकड़ वाला फिल्मकार ही 'हार्ड बाऊंड' पटकथा के अभाव में काम कर सकता है।
आमिर खान अपनी हर फिल्म में निर्माण के हर विभाग पर पूरा नियंत्रण रखते हैं और यह काम उन्होंने 'लगान' के बाद किया। काफी अनुभव के बाद आपको यह अधिकार मिलता है। कंगना रनावत को फिल्मों में आए मात्र सात वर्ष बीते हैं और अभी उनके पास यथेष्ठ अनुभव नहीं है परंतु प्रतिभाशाली कलाकार होने के नाते वे अपनी भूमिका को संवारने के सुझाव दे सकती हैं। फिल्म उद्योग का व्यावहारिक तथ्य यह है कि सितारे को उसकी लोकप्रियता के अनुपात में अधिकार मिलते हैं। अब 'क्वीन' के प्रदर्शन के पहले कंगना के पास परिवर्तन का अधिकार नहीं था। आज भी कंगना उन्हीं लोगों के साथ काम कर रही है जिनके साथ उसने पहले काम किया है और उनसे उसका नियमित संवाद रहा है। मसलन साई कबीर की 'रिवाल्वर रानी' सफल नहीं रही परंतु कंगना को उस पर इतना विश्वास है कि उसके साथ वह दूसरी फिल्म कर रही है। रिवाल्वर रानी की आय धीरे-धीरे बढऩे लगी थी परंतु दूसरे सप्ताह में मल्टीप्लेक्स वालों ने उसके शो घटा दिए और समय भी असुविधाजनक दिया। आज फिल्म व्यवसाय ऐसा हो गया है कि मल्टीप्लेक्स प्रदर्शक की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। 'पाकीजा' ने तीसरे सप्ताह में जोर पकड़ा था। आज जैसी दशा होती तो उसे तीसरे हफ्ते का अवसर ही नहीं मिलता।