लेडी डॉक्टर / मधु संधु

Gadya Kosh से
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जनवरी की बर्फीली सर्दी थी। बुखार-जुकाम से निढाल-सा लौटकर वह धूप में फैली उस चारपाई पर लेट गया, जहां माँ भी पड़ी थी।

बहन ने पानी का गिलास पकड़ाते पूछा, " भैया तबीयत ज़्यादा खराब लग रही है। दवा समझा दें, मैं समय पर देती रहूँगी।

"पर दवा मिली कहाँ? दोनों डॉक्टर किसी मीटिंग पर गए हुये थे।"

स्वर में निराशा ही नहीं, हताशा भी थी।

माँ विस्मित थी, "लल्ला मैं अभी डॉक्टर को काँख का गूमड़ दिखा कर आई हूँ। इतनी जल्दी निकल गई क्या?"

"तो क्या मैं लेडी डॉक्टर के पास जाता?" आहत मर्दानगी से वह बौखला उठा।