लोककथा / रंजन

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लोक कथा

अंग प्रदेशोॅ में केकरो-केकरो ली कहलोॅ जाय छै-'अरे होकरो गप्प नैं करें, वैं बड़का गप्पी छै।' या कि कहलोॅ जाय छै-'एक नम्बर के खिस्साबाज छै।' एकरोॅ की मतलब छै? मतलब साफ छै कि इ मिट्टी में खाली अनाजे नै, खिस्सो उपजै छै। खिस्सा-कहानी अंग-जीवन के अंग छै।

देखलोॅ जाय तेॅ हमरोॅ सोंसे हिन्दुस्तान, विश्व कथा-साहित्य के प्रधान कथा-पीठ छै। कमलेश्वर नें 'कथा संस्कृति' ग्रंथ में लिखै छै कि 'इ कहना प्रामाणिक आरो उचित छै कि भारत संसार के प्रथम आरो सर्वश्रेष्ठ कथा पीठ रहलोॅ छै। इ देश कहानी के जन्मभूमि छेकै। ...आइयो भारत में लोक-कथापीठोॅ के कमी नै छै। यही लोककथा साहित्य में पहुँचलै, कैन्हेंकि कहानी के मूल श्रोत लोकधर्मी कथा-प्रतिभा ही छै।'

इ निर्विवादित सत्य छेकै कि 'ऋग्वेद' विश्व-साहित्य के प्राचीनतम ग्रंथ छेकै। एकरोॅ अनेक स्थलोॅ पर तखनी के समाजोॅ में कथा के लोकप्रियता आरो एक प्रचलित विधा के रूप में रहला-के प्रमाण मिलै छै। पराक्रमी राजा-सिनी के सम्बंध में एकरे बाद एक-सें-एक आख्यान आरो कथा के रचना वैदिक कालोॅ में होय चुकलो रहै। आख्यान या कथा के इ परम्परा में-पौराणिक, ऐतिहासिक आरो सामाजिक पक्षोॅ के बराबर स्थान छलै। यही कारण 'अथर्व वेद' में चार विधा मिलै छै-

इतिहास, पुराण, गाथा, नाराशंसी एकरा में इतिहास के सम्बंध 'अतीत' सें पुराण के 'मिथक' सें आरो, गाथा के साथ नाराशंसी के सम्बंध तत्कालीन 'मनुष्य-जीवन' सें छलै।

वैदिक साहित्य के साथें जे लोकप्रिय कथा-साहित्य तखनी विकसित होलै, ओकरोॅ परिणति रामायण, महाभारत आरो पूराणो में होलै।

लोकप्रिय कथा के वें समय, आख्यान, उपाख्यान, आरो आख्यायिका आदि रूप विकसित होय चुकलोॅ छलै, जेकरा सूत, मागध या चारण-सनी गाय केॅ आरो कही केॅ प्रस्तुत करै छलै।

सौंसे गाथा के नाम छलै आख्यान आरो आख्यान के अंदर उपस्थित, छोटो-छोटो उपदेशात्मक गाथा के नाम छलै उपाख्यान। 'महाभारत' उपाख्यान परम्परा के कोष छेकै। एकरो आख्यान में सहस्त्रों उपाख्यान भरलोॅ छै। मतर पुरातन काल सें ही हमरोॅ देश के कथा-परम्परा, अनगिनत धारा में प्रवाहित होतै रहलोॅ छै जेकरो सब्भै धारा 'महाभारत' जैन्होॅ कोश में भी समाय नै सकलै।

ईशा के पहलें उदयन, विक्रमादित्य सातवाहन आरो शुद्रक आदि ऐन्होॅ राजा होलै, जिनका उपर कत्तेॅ-नी खिस्सा-कहानी हमरो देशोॅ में प्रचलित होय गेलै।

महाभारत के बाद हमरोॅ कथा-कोश में, 'बृहत्कथा' के रूप अति तेजस्वनी कथा-धारा प्रवाहित होलै। 'बृहत्कथा' के महत्त्व समझै-लेॅ संस्कृत के अनेक विद्वानोॅ द्वारा समय-समय पर प्रकट करलोॅ गेलोॅ विचार जानना आवश्यक छै।

779 ई. में रचित 'कुवलयमाला' के रचयिता उद्योतन सूरि ने आपनोॅ ग्रंथ के प्रारंभ में लिखलकै-' बहृत्कथा की छेकै, साक्षात सरस्वती छेकै। गुणाढ्य (बृहत्कथा के रचयिता) खुदे ब्रह्म छेकै। इ कथा-ग्रंथ सब्भे कला के खान छेकै। कवि-सिनी एकरा पढ़ी केॅ रचनाक्रम में प्रशिक्षित होय छै।

सातवीं सदी के महान महाकवि वाण एकरोॅ तुलना शिवलीला सें करलकै। ग्यारहवीं सदी के कवि धनपाल नें आपनोॅ ग्रंथ 'तिलकमंजरी' में वृहत्कथा के ऐन्होॅ समुद्र कहलकै जेकरोॅ एक-एक बूंद सें ढेर के ढेर कथा निकलै छै।

'बृहत्कथा' नें भारतीय-कथा के आपनोॅ एक विशिष्ठ आरो मौलिक स्वरूप निर्मित करलकै। एकरोॅ एक खिस्सा के भीतर सें दूसरोॅ आरो दूसरोॅ सें तिसरोॅ खिस्सा निकलतें रहै छै, आरो इ तरीका सें खिस्सा के शृंखला बनतें जाय छै। इ शैली के प्रयोग 'पंचतंत्रा' के अलावे आरो कथा-ग्रंथोॅ में होलै, जेकरा में एक पात्रा दुसरा केॅ, आरो कोय कहानी प्रसंगवश सुनावै छै, या कि कोय पात्रा आपनोॅ आपबीती सुनैथैं आपनो अलगे कथा शृंखला बनाय दै छै।

बृहत्कथा के अनुवाद सौंसे संसार में होलै, आरो एकरो मौलिक शैली सें प्रभावित होय केॅ विश्व के कोना-कोना में असंख्य खिस्सा के निर्माण होलै। वास्तव में 'बृहत्कथा' भारतीय कथा-साहित्य के अमूल्य निधि रहलोॅ छै। बृहत्कथा के परंपरा में विपुल कथा-साहित्य के रचना होलै-जेकरा में उल्लेखनीय छै-वैतालपंचविशंति, शुकसप्तति सिंहासन द्वात्रिंशिका, पंचतंत्रा, हितोपदेश आदि।

लोककथा आरो लोक साहित्य के परम्परा सें भी इ कथा-संसार गहराई सें जुड़लोॅ छै। बौद्ध जातक कथा आरो जैन साहित्य के कथा-सागर के खिस्सा भी, हमरोॅ लोककथा के धारा से सम्बद्ध छै।

अंग-जनपद में आइयो, विशेष करी केॅ ग्राम्य जन-जीवन में खिस्सा सुनै के सौख बच्चा-सिनी में जबरदस्त होय छै। खिस्सा सुनले-बगैर लड़का-सिनी सुतबे नै करै छै। हमरोॅ जनम तेॅ गाँव में नै, शहर भागलपुर में होलै मतर आइयो हमरा याद छै-'बाबू दीप नारायण सिंह' उर्फ गुरु जी सें हम्में रोज खिस्सा सुनलेॅ बिना नै सुतियै। गजब क कथक्कड़ छलै हुनी। हुनी पूछै रहै-कै रातो के खिस्सा सुनभैं-एक, दू, सात या कि दस-पंद्रह रातोॅ के. हम्मे जेतना रात कहियै, हुनी ओतने रात तक के, ऐन्हों खिस्सा सुनाबै कि प्रत्येक रात खिस्सा के एक अध्याय पूर्ण होला के बादो, अगला अध्याय सुनै के ललक रही जाय।

तखनी होसगर नै छेलियै, नै त आय हजारों खिस्सा संग्रहित रहतियै, मतर गुरु जी के सुनैलोॅ खिस्सा केॅ यदि वर्गीकरण करलो जाय त मोटो-तौर सें, निम्नांकित श्रेणी में हुनको खिस्सा बँटे पारै छै-

नीति कथा, व्रतकथा, प्रेमकथा, मनोरंजक कथा, दन्तकथा, ऐतिहासिक कथा, सृष्टि कथा, पौराणिक कथा, सामान्य कथा आरिन। अंगिका लोक कथा के भी यहेॅ वर्ग बनै छै।

अंग-प्रदेश के लोक-कथा के दुसरोॅ वर्गीकरण करलोॅ जाय तेॅ फेनू नौ वर्ग ही बनै छै।

(क) व्यक्ति सम्बंधित-जेना विक्रमादित्य, राजा भोज, ढोलन, अकबर-बिरबल, गोनू झा आरिन के.

(ख) स्थान सम्बंधित-तीरथ, मंदिर मठ, गढ़हा, तालाब, गाछ-वृक्ष आदि के खिस्सा

(ग) खास-खास, वंश-परिवार, जाति-उपजाति, बस्ती आरो अनुश्रुति सम्बंधी खिस्सा

(घ) सृष्टि के खिस्सा-सूरज, चाँद, आकाश, पृथ्वी, नदी, पशु-पक्षी, आदमी आरिन के उत्पत्ति सम्बंधित खिस्सा

(च) हँसी-मजाक के खिस्सा

(छ) साधु ऋषि-मुनी के खिस्सा

(ज) भूत-प्रेत-जिन, चुड़ैल, किच्चिन के खिस्सा

(झ) यौन सम्बंध आरो प्रेम के खिस्सा

(ङ) फुटकर