लोकगाथा / रंजन
लोकगाथा
अंग जनपद के लोक-साहित्य में प्रचलित कथात्मक-गीत के नाम छै लोक गाथा। लोक कंठ में बसलोॅ एक-एक लोकगाथा के गावै में, एकरोॅ गायक के कै-कै रात लगी जाए छै।
एकरा जन साधारण के 'महाकाव्य' कहलोॅ जाय त कोय अत्युक्ति नै।
चरवाहा सिनी क सौंसे खिस्सा कंठस्थ रहै छै। आपनो स्मृति के आधार पर, एकरोॅ गवैय्या गैथैं चल्लो जाय छै। हेकरा में गवैय्या के व्यक्तित्व बोलै छै, कैन्हें कि एकरा में प्रत्येक गवैय्या नवीनता उपस्थित करै छै, मतर गाथा के अक्षुण्ण-धारा होकरो अंदर से प्रवाहित होतें रहै छै। गाथा केरोॅ मूल-तत्व उपमा, सुमिरन आदि होकरा कंठस्थ रहै छै।
मतर कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी सें चलै बाला इ गुण आबेॅ तेजी सें समाप्त होय रहलोॅ छै, इ वास्तें आवश्यक छै कि गाँव-गाँव में ढूंढ़ी करी क एकरोॅ संकलन करलोॅ जाय, नै त हजारों सालों के हमरोॅ इ अनमोल सम्पत्ति, आधुनिक समाजें निश्चिते भुलाय देतै। दुख के बात छै कि हमरोॅ शैक्षणिक संस्थान आइयो तक एकरोॅ संरक्षण में आगू नै ऐलै।
नामकरण
अंगिका में जेतना लोकगीत छै, ओकरोॅ दू वर्ग छै। पहिलोॅ वर्ग के गेय गीत आकार में छोटोॅ छै आरो जेकरा में कोय कथा नै होय छै। दूसरोॅ वर्ग के गेय गीतोॅ में कथानक होय छै। अंग्रेज़ी में पहलोॅ वर्ग के लेली 'लिरिक' आरो दूसरोॅ वर्ग के लेली 'बैलेड' शब्द के प्रयोग करलोॅ जाय छै। हमरा सिनी पहलोॅ वर्ग के 'लोकगीत' आरो दूसरा केॅ 'लोककथा' कहै छियै। 'लोककथा' के 'गीत कथा' या 'कथागीत' भी कहलोॅ जाय छै, मतर 'गाथा' शब्द में कैन्हे कि 'गेयता' आरो 'कथानक' , दोनों के भावार्थ विद्यमान छै, जे लोकगाथा के विशेषता छेकै, यही-ली 'लोकगाथा' ही एकरोॅ वास्तें, सबसे उपयुक्त नामकरण छै।
एकरोॅ अलावे अंग प्रदेशोॅ में प्रचलित छोटोॅ-छोटोॅ कथागीत भी ढेरे सिनी छै जेकरो कारण अति लम्बा गेय-कथानक केॅ 'लोकगाथा' कहलोॅ गेलै।
लोकगीत आरो लोकगाथा में भेद
लोकगीत आरो लोकगाथा के अन्तर केॅ हमें दू भागोॅ में बांटेॅ पारै छियै-
+ स्वरूपगत भेद
+ विषयगत भेद
स्वरूपगत
लोकगीत के स्वरूप लोकगाथा सें छोटोॅ होय छै। चारो पंक्ति के लोकगीत होय-लेॅ पारेॅ, जबकि लोकगाथा के विस्तार सैकड़ों पृष्ठ तक होय सकै छै। कुछ लोकगीत आकार में बड़ोॅ भी होय छै मतर छोटा सेॅ छोटा 'लोकगाथा' के स्वरूप भी बड़ा सें बड़ा 'लोकगीत' सें बड़ोॅ होय छै।
विषयगत
'लोकगीत' में जीवन के भिन्न संस्कार जन्म, मुंडन, विवाह, आरो ऋतु में वर्षा, बसंत, ग्रीष्म आरो पर्वो में गाय बाला गीत सम्मिलित रहै छै, मतर 'लोकगाथा' के विषय 'लोकगीतोॅ' सें भिन्न रहै छै। 'लोकगाथा' में गेय-गाथा रहै छै। लोकगाथा के विशेषता आरो अंगिका लोकगाथा के विषद् चर्चा आगू करलोॅ गेलोॅ छै।
उत्पत्ति
लोकगाथा के उत्पत्ति केना होलै, इ कहना बड़ा मुश्किल छै, कैन्हें कि इ विषय में अलग-अलग विद्वानोॅ के मत अलग-अलग छै। ककरो विचार छै कि एकरोॅ रचनाकर्ता व्यक्ति नै होय के समुदाय छै, आरो कोय कहै छै 'साहित्य-रचना' समुदाय के नै व्यक्ति विशेष के कार्य होय छै। इ विषय में जेतना प्रमुख विचारधारा छै, होकरोॅ संक्षेप रूपोॅ में उद्धरण प्रस्तुत छै।
समुदायवाद सिद्धांत-ग्रिम के समुदायवाद सिंद्धांत कहै छै कि लोकगाथा के उत्पत्ति व्यक्ति विशेष के काव्य प्रतिभा सें नै, बल्कि एकरोॅ श्रेय एक समुदाय विशेष केॅ छै। जे प्रकार सें कोय व्यक्ति विशेष के मनोॅ में हर्ष आरो विषाद के भावना उत्पन्न होय छै, तहीं प्रकार सौंसे समुदाय भी ऐंन्हों भावना के अनुभव करै छै। पर्व-त्यौहार आरो मेला-ठेला के अवसरोॅ पर एकत्रित समुदाय द्वारा एकरोॅ रचना होलेॅ होतै।
जातिवाद सिद्धांत-स्थेन्थल के जातीवाद सिद्धांत के मानना छै कि लोकगाथा के निर्माण कोय जाति विशेष के सम्मिलित प्रयासोॅ के परिणाम छै।
चारणवाद के सिद्धांत-हिनी इंग्लैण्ड के बहुत बड़ोॅ, लोकगीतोॅ के संग्रहकर्ता छलै। हिनको मत छै कि लोकगाथा के निर्माण चारण या भाटें करने छै।
व्यक्तिवादी सिद्धांत-प्रसिद्ध जर्मन विद्वान श्लेगल के कहना छै कि जेना अलंकृत कविता के रचयिता कोय कवि होय छै, वही ना लोकगीतों के कवि भी कोय ज़रूरे होतै। व्यक्ति विशेष के बगैर कोय गाथा के रचना संभवे नै छै। ग्रीम के सिद्धांत के खण्डन में हिनका कहना छै 'सौंसें समुदाय मिली केॅ लोकगीत के रचना करै छै, इ बात वैन्हें हास्यास्पद छै जेना इ कहना कि सौंसे जात शासन करै छै।' जेना कि हरेक कला रचना कोय कलाकार के कृति होय छै, हरेक कविता कोय कवि के रचना होय छै, हरेक घर निर्माणकर्ता के प्रयत्नों के फल होय छै, वैन्हें लोकगाथा भी कोय व्यक्ति के रचना अवश्य छेकै, चाहे उ अनपढ़े कैन्हें नी होय। लोकगाथा समुदाय के सम्पत्ति भले रहेॅ मतर ओकरोॅ रचना भी समुदाये द्वारा करलोॅ गेलोॅ छै, इ सिद्धांत मान्य नै छै।
व्यक्तित्वहीन व्यक्तिवाद-लोकगाथा के परम आचार्य डाॅ। फ्रांसिस चाइल्ड भी श्लेगल के मत स्वीकारै छै मतर हुनको कहना छै कि लोकगाथा में रचैता के व्यक्तित्व के सर्वथा अभाव रहै छै। लोकगाथा के रचयिता एकरोॅ रचना करी-केॅ, जनता के हाथोॅ में समर्पित करला के बाद, अंन्तध्र्यान होय जाय छै।
व ग्रिम के समुदायवाद सिद्धांत में शंका इ छै कि अनेक व्यक्ति के सम्मिलित प्रयास सें कोय रचना के निर्माण करना कदाचित असंभव छै, कैन्हें कि ऐन्होॅ रचना में तारतम्य भी बनलोॅ रहै, इ संभव नै छै। ऐन्होॅ होय पारै छै कि कोय गाथा के रचना होय गेला के बाद बाकी लोगें होकरा में पीढ़ी-दर-पीढ़ी, कुछू-कुछू जोड़तें रहेॅ, इ संभव छै मतर शुरू में तेॅ उ रचना कोय एक्के रचनाकारोॅ के कल्पना होना चाहियोॅ। इ दृष्टि सें लोकगाथा के सामूहिक मानना आरो मूल रचनाकार के उल्लेख नै रहला के कारण ओकरा स्वयंभू रचना मानना संभव छै। यही-लेॅ ग्रिम के सिद्धांत आपनोॅ मत में पूर्ण नै छै आरो लोकगाथा के उत्पत्ति के सम्बंध में पर्याप्त प्रकाश नै डालै छै।
- श्लेगल के व्यक्तिवादी मत भी पूर्ण सत्य नै छै। लोक काव्य लोक के निधि छेकै आरो लोक द्वारा होकरा में परिवर्तन, परिवर्धन हमेशा संभव छै आरो यै हाल में निश्चय ही एकरा कोय एक व्यक्ति के रचना मानलोॅ नै जाबेॅ सकै छै।
- स्टेथल के मत में लोकगाथा जातीय इतिहास, इच्छा आरो आदर्श आदि प्रेरणा के परिणाम छेकै। हमरोॅ देश के परिस्थिति में इ संभव नै छै कैन्हें कि यहाँ छोटोॅ-छोटोॅ जाति के जनसंख्या भी युरोप के तुलना में बहुत बड़ोॅ छै। यै कारण हमरोॅ देश के हिसाबोॅ सें, इ मत भी पूर्ण नै छै।
- बिशप पर्सी के चारणवाद सिद्धांत कोय-कोय लोकगाथा के सम्बध में सही हुवेॅ पारै छै। एक समय में चारण, भाट आरिन विशेष राजा-रजवाड़ा आरो जमींदारोॅ संे सम्बंधित रहै छेलै। ऐन्होॅ दशा में राजा-रजवाड़ा आरो जमींदार घराना के मनोरंजन-ली, लोकगाथा बनाय केॅ सुनैतें रहै इ संभव छै, मतर सौंसे लोकगाथा के निर्माण चारणें या भाटें करलकै, इ मानना संभव नै छै।
- प्रो0 चाइल्ड आरो श्लेगल के मत लगभग समान छै। अन्तर यही छै कि श्लेगल रचनाकार के रूपोॅ में व्यक्ति के महत्त्व दै छै आरो प्रो। चाइल्ड व्यक्ति के महत्त्व नै दै करी केॅ व्यक्ति के रचना केॅ जनप्रिय होला के कारण, लोक-रचना ठहरावै छै।
लोकसाहित्य के हमरोॅ आपनोॅ विद्वान डाॅ0 उपध्याय इ पाँचो सिद्धांत केॅ 'एकांगी' मानै छै। हिनकोॅ कहना छै कि इ सब्भे में आंशिक सत्यता छै। हिनको मानना छै कि इ पाँचों सिद्धांत 'कारणभूत' छेकै। इ सब्भै के सहयोग सें लोकगाथा के निर्माण होय छै। लोकगाथा के रचना में समुदाय, व्यक्ति, जाति, चारणजन, अनाम रचयिता के योगदान छै। हिनकोॅ सिद्धांत, पाँचो सिद्धांत के अलग-अलग मतोॅ में समन्वय स्थापित करै छै यही-ली डाॅ। उपाध्याय के सिद्धांत के 'समन्वयवादी' सिद्धांत कहलोॅ जाय सकै छै। एकरोॅ अनुसार सौंसे सिद्धांत एक साथें मिली के लोकगाथा के उत्पति के कारण छै, पृथक-पृथक नै।
डाॅ। कृष्ण चंद्र शर्मा के विचार छै कि डाॅ0 उपाध्याय के सिद्धांत कोय पृथक सिद्धांत नै छेकै, वरन हुनी लोकगाथा के वर्गीकृत रूपोॅ के सामनें रखी केॅ कदाचित यही कहै छै कि अलग-अलग वर्गो के लोकगाथा के अलग-अलग सिद्धांतोॅ सें सम्पृक्त देखलोॅ जाय सकै छै।
डाॅ0 कृष्ण चंद्र शर्मा कहै छै कि ऐन्द्रिक आरो मानसिक सम्पक-जनित-आवेग गाथा के मूल कारण रहलोॅ छै। हय आवेग रंजन आरो रक्षा के भावोॅ सें अनुप्राणित होय-करी केॅ अभिव्यक्त होतें रहलोॅ छै। गाथा के मूल में जातीय संवेदना के ही प्राश्रय प्राप्त होय छै, यही कारण छै कि एकरा में व्यक्तिनिष्ठता के अभाव दिखै छै। गाथा के पात्रा, विशिष्ट दृष्टि सें मिथकीय होय छै। यें परम्परागत रिक्श के रूपोॅ में प्राप्त करलोॅ जाय छै। प्रवाह के इ क्रम देशकालोॅ के अतिक्रमण करतें चलतें रहै छै। एकरोॅ विवरण तेॅ गाथा के विकास सें सम्बद्ध छै, मतर जहाँ तक एकरोॅ उत्पत्ति के प्रश्न छै, सम्पर्क-सिद्धांत ही सर्वाधिक समीचीन प्रतीत होय छै। कैन्हे कि सम्पर्क सें ही अनुभूति सानि पर चढ़ी केॅ गेय-कथा के रूप लै छै। डाॅ। कृष्ण चंद्र शर्मा के विश्वास छै कि नै खाली लोकगाथा बल्कि सौंसे लोकसाहित्य के उत्पत्ति के सिद्धांत 'सम्पर्क सिद्धांत' होय सकै छै।
विभिन्न सिद्धांतो के बाद जे सिद्धांत पूर्णरूपेण तार्किक लगै छै वै अनुसार यही कहना उचित छै कि
- प्रत्येक गीत आ गाथा के रचयिता कोय न कोय व्यक्ति-विशेष अवश्य छै।
- लोकगाथा के परम्परा हमेशा सें मौखिक रहलोॅ छै, यही-ली एकरोॅ कवि के नाम लुप्त होय-के संभावना स्वभाविक छै।
- आय तक कोय लोकगाथा के प्राचीन हस्तलिपि प्राप्त नै होलै जेकरोॅ द्वारा रचनाकार के नामोॅ के पता चलेॅ सकेॅ।
- व्यक्ति विशेष के रचना होला के बादो भी कालक्रमोॅ में अलग-अलग गवैय्या नें आपनोॅ-आपनोॅ अंश जोड़तें गेलै, जे कारण उ एक कवि के कृति नै रही के समुदायिक सम्पत्ति बनी गेलै।
- एक्के लोकगाथा भिन्न-भिन्न स्थानोॅ पर भिन्न-भिन्न रूपोॅ में गैलोॅ जाय छै। एकरोॅ यही कारण छै कि परिवर्तन होतें रहला के कारण, गाथा में भेद उत्पन्न होय गेलोॅ छै।
लोकगाथा के विशेषता
(राबर्ट ग्रेब्स के किताब 'द इंगलिश बैलेड' के अनुसार)
1. अज्ञात रचयिता
2. प्रामाणित मूल-पाठ केरोॅ अभाव
3. संगीत के सहयोग
4. स्थानीयता
5. मौखिक परंपरा
6. अलंकृत शैली के अभाव
7. उपदेशात्मक प्रवृति के अभाव
8. रचयिता के व्यक्तित्व के अभाव
9. ठेका के पुनरावृति
10. लम्बा कथानक
11. संदिग्ध ऐतिहासिकता
प्रो0 किटरेज, गुमरे, डाॅ0 कृष्णदेव उपाध्याय आरो डाॅ। सत्यव्रत सिंहा आरिन विद्वान भी एकरा से सहमत छै।
अंगिकांचल के लोक-साहित्य में प्रचलित सभ्भे लोक-गाथा अंगिकांचल
के अमरनिधि छै। हेकरोॅ पक्का-पक्की संख्या के निर्धारण आय-तक नै
होय सकलो छै। मतर पचास सें साठ लोक-गाथा अभियो लोक-कंठों में
सुरक्षित छै।
अंगिका के प्रमुख लोकगाथा
+बिसुराउत बिहुला विषहरी
+सोरठी वृजभार रघुनी मड़र
+लचिका रानी नटुवा दयाल
+राजा सलहेस भगत दीना भदरी
+रानी सुरंगा रेशमा चूहड़मल
+महुआ घटवारिन हिरनी बिरनी
+गोपी चन्द नैका सुन्नरी
+कारू खिरहरी लोरिक
+कैलू दास खेदन महाराज
+घोघन महाराज चिलका महाराज
+लयका बनिजरवा हरिया डोम
+अमृता ब्राह्मणी कुॅवर विजयमल
+उदय साव गाॅगो देवी
+गरीबन बाबा मीरा साहेब
+शोभा नायक बंजारन ज्योति तपस्या
+इन्दुमालीवेणी ज्योति पंजियार
+लाला महाराज काली देवी
+गहील राजा अहेरीबलकी कुमारी
+छेछन डोम नूनाचार
+छतरी चैहान मैनावती
+लुकेसरी देवी राजा बिकरमादित
+अमर सिंह बरिया राजा हरिचन
+कालीदास मनसा राम छेछनमल
+धन्नू बा राजा ढोलनसिंह
+राजा हरिमल घुघली घटमा
+लोरिकायन
वीर-रसोॅ सें भरलोॅ इ बहुत-लम्बी गाथा छै। ज्यादातर एकरा अहीर जाति के लोगें गावै छै कैन्हें कि एकरोॅ नायक अहीर जाति के छेलै। एकरोॅ मुख्य भाग छै-लोरिक के जन्म, विवाह, आरो चार-चार युद्ध, लोरिक के काशीवास आरो मृत्यु।
राजा सलहेस
एकरोॅ नायक सलहेस दुसाध जाति के रहै। दुसाध जाति के लोगें आइयो हिनका पूजा करै छै। इ गाथा ढोल, मृदंग आदि के साथ गैलो जाय छै। राजा सलहेस एक सुंदर युवक छेलै, जेकरा पर लौंगा मालिन आसक्त रहै। डाॅ। अमरेन्द्र ने इ गाथा पर खड़ी बोली में बहुत बढ़ियां उपन्यास के रचना करने छै जेकरो नाम छै 'बाबू सलहेस भगत'। अंगिका क्षेत्रा में प्रचलित इ गाथा में लौंगा मालिन सलहेस से अनुनय-विनय करतें कहें छै-
'सुन-सुन सुरमा तोरा कहय छी
तोरे असरा पर बारह बरस जब, अंचरा बान्हलौं
कहियो नय रे निदरदा, पलंगे पर दरसन देवय कयलय नय गौ। '
दीना भदरी
'दीना भदरी' मुसहरोॅ के जाति-गाथा छै। एकरोॅ नायक दीना आरो भदरी मुसहर जाति के रहै। दोनों भाय बड़ी बहादुर छलै। एक बार राजा के निमंत्राण पर जबेॅ दोनों भाय नै गेलै त राजा क्रोधित होय गेलै। बात बढ़ी गेलै। राजा के दू जादूगरनी बहिन जदुआ आरो बचुआ नें छल से दोनों भाय के मरवाय देलकै आरो होकरोॅ माय-बाप के ढेर दुख देबेॅ लागलै। मरला के बाद दोनों भाय के मृतात्मा नें जदुआ-बचुआ के मारी के आपनो बदला चुकाय लेलकै। इ गाथा करूण-रसो से भिंजलो छै।
चलोॅ चलोॅ चलोॅ हो कालू चलोॅ तू राजा के ने ही दुआर
हेहो नैना नांिहं सूझे सरवन नै छै कान
ऐहो चलहू नै सकै छी सिपाही बाबू, काँपै छी हम थर-थर
केना जैबै हम राजा के दुआर,
नयका बनजारा
एकरो नायक शोभानायक एक बनियां के विवाहित पुत्रा छै। पत्नी के साथे एक्को रात नै रूकलै आरो तुरंते व्यापार के वास्तें मोरंग के रास्ता पकड़ी लेलकै। रास्ता में एक हंस के जोड़ा आपस में बतियाय रहै। हंस के बात सुनला पर शोभा क पता चललै कि यदि आय रात वें पत्नी के साथ समागम करी लै त होकरा प्रतिभावना पुत्रा होय पारै छै। एतना सुनथैं शोभा लौटी गेलै। राते-रात घर पहुँची के पत्नी के साथें समागम करी लेलकै। आरो जाय समय अपनो निशानी में एक अंगुठी दै क भिनसरिये चल्लो गेलै।
मोरंग से तेरहवां साल बाद उ लौटलै। इ बीचो में ओकरो पत्नी के गर्भवती हालत में ओकरोॅ सास-ससुरें घरोॅ सें निकाली देलकै। वें बेचारी आपनो देवर चतुरगुन के साथ रहेॅ लागलै। शोभा के लौटला पर जबेॅ भेद खुललै। त दोनों गोटा सुख-पूर्वक रहेॅ लागलै।
अंग क्षेत्रा में प्रचलित इ गाथा में कनियैनी के जौं मोरंग के रास्ता के पता रहतियै त वें असकेल्ली चली जैतिए.
वें कहै छै-रामा, देखल रहतै मोरंग सहर भल रे ना।
रामा, असगर लगीच सामी जैतिहै रे ना।
राजा विजयमल
विजय मल राजा धुरमलसिंह के छोटका बेटा छै। वें विवाह करै ल जाय छै आरो बाराती संगे कैद होय जाय छै। तरीका सें, एक हिंचल बछ़ेड़ा विजय मल क आपनो पीठी प बैठाय के वापस लानै छै। बड़ा होला पर वें युद्ध करी क अपनों पिता, बराती आरो पत्नी के साथ लौटी आवै छै।
रामा बुटदूल राजा के नाममा रे ना।
रामा जाति के रहै धन कोर छतरियाँ रे ना।
रामा जेकरो रानी के नाम छेलै, सोमबतिया रे ना।
रामा राजा के एक ठो, लड़कवा रे ना।
राजा ढोलनसिंह
ढोलन सिंह के पिता हरिचरन समय के फेरी में पड़ी के राजा के यहाँ नौकरी करै छलै। वही वक्तीं राजा के बेटी ढोलन पर आसक्त होय गेलै, जे कारण राजा के आपनो बेटी के बीहा ढोलन सिंह से करी देलकै, मतर ढोलन के साथ ओकरो बेटा ढोलन सिंह जबै लौटी के आपनो देश वापस ऐलै त एक मालिन के प्रेमजाल में फँसी के अपनो व्याहता के भूली गैलै। बादो में दोनों के मिलन केना होलै, यही एकरो कथा छै।
घुघली-घटमा
अंगिकांचल के गाथा घुघली-घटमा, चम्पारन में 'घुघुली-बटेढ़िया' आरो दरभंगा में 'राय रनपाल' के नामो सें प्रसिद्ध छै। एकरो नायक धुधली आपनो पिता के मृत्यु के बदला अपनो घटमा आदि सात भाय के मारी के लै छै।
आवे किये तोरा मरलक हे काना, ऐ मारबो करलक आब यो
गंगवा राजा के हौदी पेाखरी खैरतेल दै लै गेलिये,
ऐहो हमरा मरलक स्वामी हौदी पोखर यो,
मन ही मन करे गुगली मन में करै छै बियार
केना हमें हे मारबो करबै सातो भाई चाण्डाल के,
केना हमें हे मारबो करबै गंगवा चाण्डाल के,
ब्राभन के भेष धरै छै, मरदे गुगुलिया ने आब यो,
जुमि जबेॅ गेलै गुगुलिया गंगवा राज के दुआर यो,
बैठी जे गेलै ब्राभन गंगवा के दुआरी यो,
बोलै जबै लगलै ब्राभन साजै छै जबाब।
मनसाराम-छेछनमल
एकरो नायक मनसाराम चमार, आरो छेछनमल डोम जाति के छलै। मनसाराम मोरंग के राजा के सिपाही छलै आरो छेछनमल सीरी राजखंड के. मोरंग के राजा सीरी राजखंड पर आक्रमण करी दै छै, मतर वीर छेछनमल के वीरता के कारण इ सम्भव नै होय छै। इ गाथा में दोनों नायक के वीरता के सुन्दर वर्णन छै।
मीरायन
इ गाथा अंग प्रदेश के पूर्णियाँ आरो सहरसा जिला में विशेष प्रचलित छै। डिहरी नगर के हरफुल नुनजागड़ के लड़ाय में मारी देलोॅ गेलै। हरफुल के मरला के बाद, होकरोॅ कनियैनी नें आपनो पुत्रा, 'मीरा' के जन्म देलकै। यही मीरा बादोॅ में जवान होला के बाद, केना 'नुनजागढ़' केॅ दखल करी केॅ अपनो पिता के बदला लै छै, एकरोॅ बड़ी सुन्दर वृतांत यै में छै।
"भैया रे बोल में बोले रे, मामा मौसी बोले रे
भैया रे किये हमरा पूता उदमैत देलके रे
भैया कियो रे मीरा नूजागढ़ के जतरा बना न देलके रे
भैया मन में मामा मौसी सोचे रे
भैया मीरा नूजागढ़ लड़ाई में जैते रे
भैया वैरीन के द्वार जैते रे
अबकी मीरा सिर जब कटा न लेते रे
भैया कौनो विध से जतरा जब भगन न करते हो
भैया डोलरी जब राज तिरिया के होते रे
भैया जब बड़ा चतुर सयान मामा मौसी छेले रे
भैया पाँच सेर लड्डू मिठाई जब ने किनलक रे..."।
लाला महाराज
सोनामनी के कहला पर देवी गहिली द्वारा भेजलो बाघ के द्वारा लाला महाराज के मृत्यु आरो मरला के बाद भूत बनी केॅ सेनामनी के परिवार के तंग करना, फेनू गाँव वाला के पूजा सें संतुष्ट होय केॅ उत्पात बंद करला के कथा इ गाथा में छै। इ गाथा के कहानी बाबा बिसू राउत से मिलतोॅ-जुलतोॅ छै।
कालीदास
अंगिका क्षेत्रा के ग्वाला सनी में इ लोकगाथा विशेष रूप से प्रचलित छै। इ गाथा में सीरी कमलदह के पत्ता पर खेलतें एक बच्चा अमरीता के मिलै छै। बच्चा बड़ा अबोध आरो सिद्धा छेलै। बड़ा होला पर एकरोॅ बीहा राजा के बेटी बहुरा सें होय छै। बुड़बक दुल्हा के पैला सें दुखी बहुरा जबेॅ कालिदास के तिरस्कार करी देलकै तेॅ वें पढ़ै लेॅ गुरु के पास जाय छै, जहाँ देवी के पूजा करला के कारण ओकरा पंडित होय के वरदान मिली जाय छै।
पंडित कालिदास इंद्रलोक पहुंचै छै जहाँ देवतासिनी के खातिर जखनी सौरादह सें कमल के फूल लानै वास्तें जाय छै, तखनिये साँप के डसला सें होकरोॅ मृत्यु होय जाय छै। देवता सिनी होकरा दुबारा जीवित करी केॅ धर्म-प्रचार लेली संसार में भेजै छै।
एकरोॅ शिष्य के नाम छलै जोती, जे पुहपी नगर के कितरी के जोतला खेतों मेें मिललोॅ रहै। एक दिन जोती के नाच सें इंद्रलोक हिलेॅ लागलै तेॅ देवता सिनी ने आबी केॅ होकरा वरदान देलकै-
जिएँ-जिएँ निरबुधी बालक जोति हो,
जग में तू अमर नित दिन करिहै बलकवा रे,
आहो धरम के हो बेहवार।
जहिं ठिन जे चीज चहबे बलकवा रे,
पुरैतौ दाता हो धरमराज।
वरदान देला के बाद होकरा कालिदास के पास भेजी देलकै। जोति के यश फैलेॅ लागलै। एक दिन जबेॅ भेष बदली केॅ कालिदास ओकरा पास ऐलै, तेॅ वें मिलै-लेॅ नै गेलै। कालिदास गोस्साय गेलै। गुरु के शाप सें जोति कोढ़ी होय गेलै, आरो कालिदास के आज्ञा सें बारह बरस के तपस्या वास्ती जंगल में चल्लो गेलै।
राजा हरिचन
इ गाथा भी नेटुआ लोग गावै छै।
कथा छै कि राजा हरिचन के यज्ञ सें भयभीत होय केॅ इंद्रलोक के देवता नें राजा केॅ पथभ्रष्ट करै ली विश्वामित्रा केॅ भेजलकै। विश्वामित्रा राजा के पास पहुंची केॅ, होकरोॅ एकलौता बेटा रोहित केॅ, दाहिना अंगों के मांस खाय के इच्छा जतैलकै।
राजा आरो रानी, विश्वामित्रा के इच्छा पूरा करै के खातिर जखनी आपनोॅ एकलौता बेटा के शरीर चीरेॅ लागलै तेॅ बेटा के आँखी में यही खातिर लोर भरी गेलै कि विश्वामित्रा नें होकरोॅ बायां अंग के अपवित्रा कैन्हें समझी लेलकै।
एकरोॅ आगू बड़ा लम्बा कथा छै। रोहित के दुख सें दुखी विश्वामित्रा लौटी जाय छै। वाराह रूप में भगवान विष्णु राजा के बगीचा नष्ट करी दै छै। फेनू ब्राह्मण के रूप धरी केॅ राजा केॅ सपरिवार बेचवाय दै छै आरो अंत में राजा केॅ सपरिवार स्वर्ग लै जाय छै।
अमर सिंह बरिया
अमरसिंह मइया के उपासक छलै। अत्याचारी राजा के अत्याचार खतम करै के कथा पूरा विस्तार सें इ लोकगाथा में देलोॅ गेलोॅ छै। वीर अमर सिंह के मुसीबत के घड़ी, कमला मइया केना मदद करै छै एकरोॅ वर्णन छै।
सोरठी वृजभार
सात रानी के रहतें भी राजा निःसंतान छलै। कथा छै कि बादोॅ में जबेॅ राजा केॅ बेटी उत्पन्न होय छै तेॅ इष्र्या में सब्भे होकरा पितृधातिनी कही केॅ राजा के भ्रमित करी दै छै। नतीजा में कन्या केॅ मंजूषा में रखी केॅ, नदी में बहाय देलोॅ जाए छै। नदी में बहलोॅ कन्या बादो में दूसरोॅ राज में पली केॅ, बड़ी विख्यात सुन्दरी बनै छै। राजा सें ज्योतिषी कहै छै कि होकरा से हीं राजा के पुत्रा प्राप्त होय पारै छै। राजा अपनोॅ नव विवाहित भांजा कुंवर वृजभार केॅ भेजी दै छै। अपनोॅ नैकी कनियांय के छोड़ी के विरीजभार चल्लो जाय छै आरो आपनोॅ बुद्धि सें होकरा साथें लै केॅ आबी जाय छै। मतर राजा केॅ आपनोॅ भांजा के आचरण पर शंका होला पर सोरठी के साथें विरीजभार मोर-मोरनी बनी केॅ उड़ी जाय छै आरो तबे राजा के पता चलै छै कि उ कन्या सोरठी होकरे पुत्राी छेलै।
हिरनी-बिरनी
हिरनी आरो बिरनी नट जाति के दूर के बहिन छलै। पोसनसिंह नाम के वीर, चरित्रावान आरो विवाहित युवक पर दोनों आसक्त होय जाय छै। दोनों सें परेशान होला के बाद हिरनी-बिरनी के खूंखार भैंस के नाथला के बाद पोसनसिंह दोनों केॅ आपनोॅ दासी बनाय लै छै।
रामा साहबपुर एक नगरिय रे ना
रामा जहाँ जनमली हिरनी-बिरनी दोनों बहिनियाँ रे ना
राहा हिरनी-बिरनी जाति के नठनियाँ रे ना
रामा सुरती में छेलै खुबसुरतियाँ रे ना
रामा नहियें होलो छेलै हुनको विहैयो रे ना
रामा दोनों बहिन छेलै कुमारियो रे ना
राजा बिकरमादित
वात्सल्य आरो करूण रसोॅ संे भरलो इ गाथा नाच के साथ गैलोॅ जाय छै। छः रानी के रहतें भी राजा निःसंतान छै। सातवीं रानी सें विवाह के बाद राजा के दू बेटा पैदा होय छै। छहो रानी ईष्र्या सें भरी केॅ दोनों बच्चा के गायब करी दै छै। कथा के अंत में राजा के दोनों बेटा मिली जाय छै और भेद खुलला पर राजा छहो रानी के दण्ड दै छै।
लुकेसरी देवी
लुकेसरी मोची कन्या छलै, जे आपनोॅ प्रेमी केॅ प्राप्त करै-लेॅ व्रत करी रहलोॅ छलै। जबे ओकरा पता-चललै कि होकरोॅ प्रेमी, योगी बनी गेलो छै, तबेॅ होकरा ढूंढै़-लेॅ उ निकली जाय छै। खूब भटकला के
बाद आखिर प्रेमी जब मिलै छै, तेॅ लुकेसरी केॅ पूजनीय देवी मानी केॅ स्वीकार करी लै छै। आइयो उ देविए के रूप में मानली आरो पूजली जाय छै।
नटुआ दयाल
'नटुआ दयाल' अंग के बड़ी महत्त्वपूर्ण गाथा छेकै। अंग प्रदेश के जिला बेगुसराय के 'बखरी' में अभियो बहुरा-गोढ़िन के स्मारक सुरक्षित छै। बहुरा गोढ़िन बड़ी नामी डायन छलै जे आपनोॅ इलाका के सात सौ दमाद केॅ खाय चुकलोॅ रहै। एकरोॅ बेटी अमरूतिया के बीहा भरोड़ा के नटुआ दयाल सें होला के बाद, नटुआ दयाल केना भागै छै आरो फेनू केना, जादू-मंतर में पारंगत होला के बाद बहुरा केॅ परास्त करी केॅ अपनोॅ कनियांय के वापस लानै छै-एकरे कथा छेकै नटुआ दयाल। इ लोक गाथा के आरो कै नाम छै, जेना-कमला मइया, बहुरा गोढ़िन आरो गरीब दयाल सिंह आरिन।
श्री सच्चिदानंद स्नेही द्वारा इ लोकगाथा के एक अंश प्रकाशित करलोॅ गेलोॅ छै साथें हमरोॅ एक वृहत उपन्यास 'नटुआ दयाल' के नाम सें भी प्रकाशित होय चुकलो छै।
कत जल वास करथिन हे कमला मैया,
कत जल कमले के आसन, कमले के हार हे
कमल मुखी कमले के षोभनि सिंगार हे कमला मैया
कत जल वास करथिन हे।
'धांग-धांग' थाप पड़ा मांदर पर।
बाबा बिसू राउत
अंग प्रदेश के मधेपुरा में बाबा बिसु राउत के भव्य मंदिर छै, जहाँ लाखों लोगोॅ के मेला लगै छै, आरो बिसू बाबा थान पर दूध चढ़ैलोॅ जाय छै। डाॅ। आत्मविश्वास द्वारा प्रकाशित 'लोकगाथा' के आधार पर अंगिका के लोकप्रिय कवि अंजनी कुमार शर्मा नें 'बाबा बिसू राउत' पर खड़ी बोली हिन्दी में आपनोॅ उपन्यास लिखले छै, जेकरा में बाबा के बचपन सें मृत्यु तक आरो ओकरो बादो के कथा वर्णित छै।
राजा हरिमल
अंगिका में ई सबसें छोटोॅ गाथाकाव्य छेकै, जे कथात्मक लघुप्रबन्ध नांखि छेकै। यै में राजा हरिमल के भांजा द्वारा हरिमल के हत्या के वर्णन छै। यै लेॅ कि भांजा-मामी पर मोहित छै। जबेॅ हरिमल के हत्या के पता रानी केॅ चलै छै, तबेॅ भांजा केॅ धोखा देतें हुए रानी आपनोॅ मृत पति के साथें सती होय जाय छै।
मामा भैगना मिली मतिया मिलैलकै न हो राजा हरिमाल
चलोॅ हो मामू हरिण षिकरबा न हो राजा हरिमाल
जोड़ोॅ ही मामू लीलीदार घोरिया न हो राजा हरिमाल
बान्होॅ हो मामू लटी.पटी पगड़िया न हो राजा हरिमाल
बिहुला विषहरी
ई लोकगथा में चम्पानगर के सौदगार चाँदो के कथा छै, जेकरोॅ छोटोॅ बेटा बाला के शादी उजानी (भागलपुर के गंगापार के स्थान) के कन्या से होय छै। ई लोकगाथा में बिसहरी के क्रोध आरो धरती पर ओकरोॅ पूजा के कहानी, साथें-साथें बिहुला के साहसी यात्रा के कथा छेकै। जेकरोॅ करने वंे आपनोॅ मृत पति के पुनरजीवन दिलबाबै में सफल होय छै।
बिहुला के बचन सुनी रे दैबा दइछै चाँदां जवाब रे।
हम्मेें नै पूजबौगे पुतोहिया, ढोढ़ा-बेंगा खौकी गे
हम्में नै पूजबौगे बिहुला। नागा देवी विषहरी हे।
हम्में तेॅ पूजबौगे गे बेटी एक्के शिव महादेव हे।
लचिका रानी
लचिका रानी में रानी लचिका के सूझ-बूझ के वर्णन छै कि केना ऊ बारह साल में बारह कोस चलै छै, जे अवधि में रानी के बच्चा किशोर होय जाय छै आरोॅ अपनोॅ पिता के हत्यारा सें बदला लै छै आरो जाय के अत्याचारी राजा के राज्य सें मुक्त करै छै। लोकगाथा दक्षिण अंगजनपद से जुड़लो होलोॅ छै।
रम्मा सुनो कथा लचिका के धरि के धियानमा रे ना।
रम्मा बरप्पा (वारकोप) छेले एक नगररिया रे ना।
रम्मा वहाँ के राजा बड़ा शक्तिशलियाँ रे ना।
रम्मा इनकर लड़का छेलै प्रीतम सिंह घबा रे ना।