लोकनाट्य आरो लोकनृत्य / रंजन
लोकनाट्य आरो लोकनृत्य
अंगिकांचल के लोक-जीवन में लोकनाट्य आरो नृत्य बसलोॅ छै। परब-त्यौहार आरो मांगलिक उत्सवो पर रातभर चलै बाला नाटक आरो नाच में वात्र्तालाप के साथें, नृत्य आरो गीत चलथैं रहै छै। हेकरोॅ भाषा ऐन्होॅ सरल होय छै, जेकरा गाँव के अनपढ़ो समझी जाय छै। जेना जात्रा में, कोय मंच के दरकार नै होय छै, वैन्हें एकरहौ में मंच नै बनै छै। खुल्ला-आकाश में लोगें रातभर बैठी केॅ देखतें रहै छै। अंग क्षेत्रा के पारंपरिक लोकनाट्य आरो नृत्य के पृथक-पृथक अपनोॅ विशेषता होय छै।
अंगिकांचल में सर्वाधिक प्रचलित लोकनाट्य आरो नृत्य छै-जट-जटिन, भकूली बंका, डोमकछ, जातर आरो सामा-चकेवा।
जट-जटिन
एकरोॅ खास बात इ छेकै कि जट-जटिन के अभिनय हमेशा कुंवारी लड़की ही करै छै, आरो शेष पात्रा में भी महिला ही रहै छै। स्त्राी-समाज के इ कार्यक्रम, सावन महीना सें कातिक तक, चांदनी रात में होय छै।
जट दुल्हा के धरान में आरो जटिन दुल्हन के भेस में सजी केॅ तैयार होय छै। दुल्हा-आरो दुल्हिन के अलावा-अलग दल, पंक्तिबद्ध होय के एक-दूसरा के आमने-सामने पाँच-छह हाथ के दूरी पर खड़ी रहै छै। अभिनय के समय एक दल गैतें होलोॅ आबै छै, फेनू उल्टे-पांव लौटी जाय छै। जट के दल खड़ा रही केॅ आरो जटिन के दल पहने होय के फेनू माथा झुकाय क गावै छै। जट आरो जटिन के दोनों दल आपनोॅ पीछे छुपैलोॅ रहै छै। गद्य-पद्य मिश्रित जट-जटिन में सबसें पहने सहगान होय छै फेनू अभिनय शुरू होय छै।
एकरोॅ कथा जट-जटिन के विवाहित जीवन पर आधारित छै। बीहा के बाद जब अपनोॅ पत्नी के चरित्रा पर शंका करै छै तेॅ जटिन अपनोॅ प्रेम प्रदर्शित करी केॅ एकरोॅ निवारण के प्रयत्न करै छै मतर जट के शंका समाप्त नै होय छै आरो जटिन दुखी होय जाय छै।
लाख समझैला के बादो जटिन के छोड़ी केॅ होकरोॅ जट चुप्पे-चाप विदेश चल्लोॅ जाय छै। पति-वियोग में वियोगिनी जटिन आपनोॅ पति केॅ ढूँढै-लेॅ निकली पड़ै छै तेॅ रास्ता में होकरा जमींदार, सिपाही, दरोगा, सुनार आरिन एक-एक करी केॅ मिलै छै। सब्भे होकरा फुसलाबै केॅ प्रयत्न करी के आपनो साथें लेॅ जाय लेॅ चाहै छै मतर जटिन केकरो बहलावा में नै पड़ै छै।
आरो एक दिन जट लौटी केॅ आबै छै मतर मामूली कहा-सुनी में आपनोॅ जटिन पर हाथ उठाय दै छै।
रूठी केॅ जटिन छिपी जाय छै आरो जट होकरा खोजै-ली निकलै छै। खौजै के क्रम में वें एक-एक करी केॅ कभी ग्वालिन कभी गोढ़िन आरो कभी चूड़िहार के रूप धरै छै। एकरोॅ बादे जटिन प्रकट होय केॅ आगू आबी जाय छै आरो दोनों गोटा हँसी-खुशी घर लौटी जाय छै।
भकुली-बंका
'भकुली-बंका' के समय अभिनय आरो साज-सज्जा 'जट-जटिन' के ही समान होय छै। एकरोॅ मुख्य पात्रा के नाम छै-अंका, बंका दीदी, टिहुली आरो भकुली।
तीनों बहिन में सबसें छोटी छै भकुली। भकुली के बीहा बंका सें होलोॅ छै। बीहा के बाद भकुली आपनो ससुराल में घुली-मिली जाय छै। बादोॅ में बंका के मोन में अपनोॅ कनियांय के चरित्रा पर शंका होय छै। यै कारण भकुली रूठी केॅ आपनोॅ नैहियर लौटी जाय छै।
नैहियर गेला के बाद जब ससुराल वालां होकरा मनाय केॅ, वापस बुलाय ली जायछै तेॅ भकुली नै मानै छै, मतर बादोॅ में आपनोॅ यार संगे वापस लौटी आबै छै। इ कारण ससुराल में सब्भै के उपेक्षा झेलै छै आरो हारी क अंत में वापस नहियर लौटी जाय छै।
दीदी-' ससुर आबय छौ अंगना, अंग मोयड़ के चल रे भकुली।
भकुली-की करबय दीदियो, मौगमेहरा छय गे दीदियो।
दीदी-अगे भकुली, भैंसुरा आबय छौ अंगना, घोघ तानी केॅ चल गे भकुली।
भकुली-की करबय दीदियो, घर घुसका छय गे दीजियो।
डोमकछ
एकरोॅ अभिनय बेटा के बीहा के समय होय छै। बारात में सब्भे पुरूष के गेला के बाद घोर में खाली जनानिये रही जाय छै, ऐ लेली चोरोॅ के भय सें जनानी सिनी रातभर जगी केॅ 'डोमकछ' के अभिनय करै छै।
पुरूष के कपड़ा पिन्ही के मरद-भेष में जनानी सिनी एकरोॅ अभिनय करै छै। एकरोॅ मुख्य पात्रा के नाम छै-जलुआ, सिपाही, दारोगा, आरो डोमन। एकरोॅ कहानी में कभी-कभी सामयिक प्रसंग भी जोड़ी देलोॅ जाय छै।
सामा-चकेवा
'सामा-चकेबा' अभिनय, गीत आरो नृत्य के त्रिवेणी छेकै। श्यामा आरो चकेबा, दोनों भाय-बहिन छेकै। एकरोॅ अलावे सतभइया, चुंगला, खिड़रिच, बनतीतर, झांझी कुत्ता, वंृदावन ऐंठला-' ऐंठली, मुँहटेढ़ी, बटदेखनी, ग्वालिन, हाथी आरिन मुख्य पात्रा होय छै। एकरोॅ अभिनय कार्तिक शुक्ल सप्तमी सें पूर्णिमा तक होय छै। एकरोॅ विशेषता छै गीत के माध्यम सें प्रश्नोत्तरी। एकरा में लड़की सिनी रास रचावै छै। कृष्ण के बीचोॅ में रखी केॅ सभ्भें गोलाकार होय केॅ नाच-गान करै छै।
नृत्य के समावेश सब्भे लोकनाट्य में होय छै। एकरोॅ अलावे नेटुआ नाच भी यहाँ प्रचलित छै। एकरो पेशेवर मंडली होय छै जे कोय भी गाथा गाय वक्तीं नृत्य भी करतें रहै छै।
'गोंढ़ऊ' आरो 'हुरूकवा' के नाच में भी नृत्य के प्रचलन छै। कुछ नाच जति-विशेष के भी छै, जेकरोॅ प्रदर्शन शादी-बीहा के अवसरोॅ पर कभी-कभी होय छै। 'झिझिया' आरो 'झुमरा' भी एक तरह के नृत्य छै जेकरा 'खलनी के नाच' कहलोॅ जाय छै।
कौआ हकनी
'कौआ हकनी' जे एक राजा के दूसरोॅ पत्नी के नाम छेकै, ओकरा कोय सन्तान नै छै, जे कारण राजा आरो रानी दोनों बहुत दुखित रहै छै। ई लोकनाट्य मुख्य रूप संे सामाज में सन्तानहीन स्त्राी के की सामाजिक स्थीति होय छै, ओकरहै पर आधारित एक मार्मिक लोकनाट्य छेकै। ई लोकनाट्य के कुछु पंति नीचे छै-
घर मोरा लागै हो पंचन सोनापुर सहरिया ना लागै हो
नाम लागै रे सोना बाबू सिंघवे रे की
हमरा छै हो पंचन जी बावन सुआ के राजबे ना लागै
आरो छै हो घोड़ा-हाथी घोड़सरियो ना रे।
रमखेलिया
रमखेलिया, राम के जीवन पर आधारित लोकनाट्य छेकै, जेकरोॅ रंगमंचीय रूप भी वहे छेकै, जे अंग जनपद के आरो-आरो लोकनाट्य के छेकै। हाल तक भागलपुर जिला के दियारा क्षेत्रा में बड़ी लोकप्रिय रहलो छै। लेकिन रोजी-रोटी के तलाश में एकरो कलाकार परदेशी होय चुकलो छै।
नारदी
नारदी पूरा-पूरा लोकनाट्य छेकै, लेकिन गीत नाद के बीच अभिनय के भी भूमिका ज़रूरे चलतें रहै छै, जेकरे कारण ई लोकनाट्य के रूप लै ले छै। रमखेलिया, राम के जीवन पर आधारित नाटक छेकै आरो नारदी, कृष्ण-राधा पर आधारित। नारदी में लोक मंच के एक दम अभाव होय छै।