लोग क्या कहेंगे / दीपक मशाल
'अ' एक लड़की थी और 'ब' एक लड़का। बचपन से ही दोनों के बीच एक स्वाभाविक आकर्षण था, जिसे बढ़ती उम्र और मेलजोल ने प्रेम के रूप में निखार दिया। दोनों साथ में पढ़ते, घूमते-फिरते, कॉलेज जाते और कला-संगीत के कार्यक्रमों में रुचियाँ लेते। एक दूसरे की रुचियों में समानताएं होने से प्यार सघन होता गया। उनके अटूट से दिखते प्रेम को देख लोगों के दिलों से निकली ईर्ष्या के उबलते ज़हर की गर्मी उनके आसपास के वातावरण को जितना उष्ण करती उनके प्रेम की शीतलता उन्हें उतना ही करीब ले आती।
पढ़ाई ख़त्म होते-होते दोनों के परिवारवालों को अपने-अपने बच्चों की शादी की चिंता सताने लगी। ये तो याद नहीं पड़ता कि कौन, किससे, कैसे और कितना ज्यादा अमीर था लेकिन दोनों के परिवारों के बीच के पद-प्रतिष्ठा, धन और शोहरत के इसी अंतर ने उनके प्रेम के पिटारे में झाँकने की ज़हमत ना उठाई, चारों तरफ सवाल उठे- “लोग क्या कहेंगे?” और अ या ब किसी एक के घरवालों ने उनके प्रेम को परिवार की इज्ज़त को डंस सकने वाले ज़हरीले नाग का खिताब दे उस पिटारे को वहीँ दफ़नाने का हुक्म सुना दिया। दोनों के रिश्ते अलग-अलग परिवारों में अपनी-अपनी हैसियत के मुताबिक कर दिए गए। किसी से कहे बगैर मन ही मन दोनों ने अपने-अपने बच्चों के साथ ऐसा ज़ुल्म ना करने की ठान नियति के आगे सर झुका दिया।
सालों बीत गए। अ और ब दोनों ने अपनी मेहनत और लगन से समाज में अच्छा रुतबा, धन-दौलत और वो सब जिसके लिए लोग खपते हैं, कमा लिया। दोनों अलग-अलग शहर में थे एक दूसरे से अन्जान, अलबत्ता यादों में दोनों अभी भी एक-दूसरों को याद थे। अ का बेटा अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका था और अ उसकी शादी के लिए सुयोग्य लड़कियां ढूँढने लगी थी और उधर ब अपनी खूबसूरत और खूबसीरत बेटी के लिए भी यही सब उपक्रम करने लगा था। दोनों ने सोचा क्यों ना एक बार अपने-अपने बच्चों से जान लिया जाए कि कहीं उन्हें तो कोई पसंद नहीं। दोनों का सोचना सही निकला। इधर अ का बेटा एक लड़की से बेइन्तेहाँ मोहब्बत करता था और वो लड़की भी तो उधर दूसरी तरफ ब की बेटी को भी एक लड़के से प्रेम था। कहीं ना कहीं अ और ब की सी कहानी दोनों तरफ पनप रही थी।
अ ने अपने बेटे की प्रेमिका के बारे में कहीं से जानकारी जुटाई तो पता चला वो एक मॉडल थी। लोगों ने बीच में मिर्च-मसाला लगा इस पेशे की बुराइयां गिनानी शुरू कर दीं- “मैडम, आप तो जानती ही हैं इस पेशे में क्या-क्या उघाड़ना पड़ता है और क्या-क्या छुपाना पड़ता है। अपनी इज्ज़त का कुछ तो ख्याल कीजिए। लोग क्या कहेंगे?”
उधर ब की बेटी को जो लड़का पसंद था उसके ना माँ का पता था ना बाप का। अनाथालय में पला-बढ़ा था। लोगों ने यहाँ भी कहना शुरू किया, “इंटेलिजेंट है तो उससे क्या? खानदान भी तो देखना पड़ता है कि नहीं? अगर इकलौती बेटी के लिए भी ढंग का खानदानी लड़का ना ढूंढ पाए तो लोग क्या कहेंगे?”
एक बार फिर दो अलग-अलग शहरों में दो प्रेम कहानियों का “लोग क्या कहेंगे?” के शोर के बीच क़त्ल कर दिया गया। अब अ और ब की मर्जी के मुताबिक उनके बेटे-बेटियों की कहीं शादियाँ हो रही थीं। फिर शहनाइयों के बीच २५ साल पुराने 'अपने बच्चों के साथ ये ज़ुल्म ना होने देंगे' जैसे संकल्प दोहराए जा रहे थे।