लोग झूठ क्यों बोलते हैं? / सिद्धार्थ सिंह 'मुक्त'

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


अधिकांश लोग यह कहते हुए मिल जाते हैं कि झूठ नहीं बोलना चाहिए, परन्तु क्या सच को लोग स्वीकार कर पाते हैं ? शायद नहीं| सच कोई सुनना ही नहीं चाहता है| जितनी उपेक्षा सच की है उतनी शायद किसी और की नहीं है| "यह एक विडम्बना ही है कि मानवीय स्वभाव से जुड़े सभी सच अपूर्ण और भद्दे हैं|" दूसरी तरफ झूठ कभी भद्दे नहीं होते हैं| झूठ तो पूर्णरूपेण आदर्श होते हैं| उनके आदर्श होने में जाता ही क्या है, बस कह ही तो देना है, तो चाहे जितनी ऊंचाई दे सकते हैं| इसलिए सच बोलने पर उपेक्षा और अपमान मिलता है और झूठ बोलने पर आदर| उदाहरणस्वरुप-

(१) यदि कोई कहे कि, "मैं झूठ बोलता हूँ|" तो ये एक सत्य है लेकिन इस सत्य का सम्मान करने वाला कौन है ? अब यदि कोई कहे कि, "मैंने आज तक कोई झूठ नहीं बोला|" तो इस झूठ का सब सम्मान करेंगे|

(२) यदि कोई कहे कि, "जब तुम मेरे अनुसार कार्य नहीं करते तो मैं तुम्हें मन ही मन बहुत भला बुरा कहता हूँ|", तो ये यह एक सत्य है किन्तु इसका सम्मान कोई नहीं करेगा| जबकि यदि कोई कहे कि, "मैं हमेशा तुम्हारे बारे में अच्छा सोचता हूँ चाहे तुम्हारे कार्य मेरे विचारों से मेल खाएं या नहीं|", तो ये एक झूठ है किन्तु इसका बहुत स्वागत होगा|

(३) यदि कोई कहे कि, "रास्ते चलते मैं किसी लड़की की और आँख उठाकर नहीं देखता, सबको अपनी बहन समझता हूँ|", तो ये एक झूठ है, लेकिन इस झूठ का सब सम्मान करेंगे| दूसरी ओर यदि कोई कहे कि, "मुझे तो कोई भी सुन्दर लड़की दिख जाती है तो बिना उसकी ओर दो-चार बार देखे रह ही नहीं पाता हूँ और मन में बड़े रोमांचक भाव उठते हैं|", तो ये एक सच है लेकिन इसकी सब निंदा करेंगे|

"मानव मन आदर्शों की पूजा करता है, यथार्थ की नहीं|" किन्तु आदर्शो के शिखर का पथ यथार्थ की घाटी से ही आरम्भ होता है| सत्य को भद्दे और अपूर्ण यथार्थ-भूमि से उठाकर सुन्दर और पूर्ण आदर्श के गगन तक पहुंचाने के लिए सबके सहयोग और यथार्थ की स्वीकृति की आवश्यकता है| लेकिन मनुष्य की आँखें आदर्श के आसमान पर टिकी हैं तो पावों को यथार्थ की भूमि पर पथ कौन दिखाए ? "सामान्यतया मनुष्य को विकास के क्रम में बीच की अवस्थाएं स्वीकार नहीं हैं, वो यथार्थ के भद्देपन को नहीं देखना चाहता इसलिए झूठे आदर्श से ढकता है|" इसीलिये मनुष्य मानसिक स्तर पर सदियों से गड्ढों में गिरता रहा है और झूठ हमारी दिनचर्या बन गया है|