लोप होते वाचनालय और अदृश्य पाठक / जयप्रकाश चौकसे

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लोप होते वाचनालय और अदृश्य पाठक
प्रकाशन तिथि : 01 दिसम्बर 2021


देश के विभाजन के समय डेविड डग्लस डंकन ने सेंट्रल वाचनालय में रखी किताबों के बंटवारे के लिए तत्कालीन वायसराय से समय मांगा था। बीएस केशवन की नियुक्ति किताबों के बंटवारे के लिए की गई थी। ज्ञातव्य है कि 1891 में कोलकाता में इस वाचनालय की स्थापना की गई थी और कुछ वर्ष पश्चात इसे दिल्ली भेज दिया गया था।

शिमला में अंग्रेजों ने एक वाचनालय में रजिस्टर रखे थे जिनमें उनके लिए काम करने वाले भारतीय लोगों के नाम पते लिखे थे। अंग्रेजों ने भारत छोड़ने से पहले यह रजिस्टर जला दिए थे। इसलिए अनेक जयचंद अपनी पहचान छुपाने में सफल रहे।

क्या यह संभव है कि किताबों के बंटवारे में पाकिस्तान के अधिकारी औरंगजेब की किताबों और उन पर लिखी किताबें पाकिस्तान ले गए और उदारवादी अकबर हमारे हिस्से में आए। सआदत हसन मंटो जैसे जलते हुए कोयले को कोई अपनाना नहीं चाहता था। वह कुछ समय पाकिस्तान में रहे जहां उन पर अश्लील साहित्य लिखने का मुकदमा कायम किया गया। अदालत का फैसला उनके पक्ष में आने के बाद में वे भारत आ गए। कुछ समय के लिए मंटो फिल्मों से जुड़े और उनकी पटकथा ‘किसान कन्या’ पर फिल्म भी बनी। यह महबूब खान की ‘औरत’ से अलग कथा थी। ‘औरत’ का ही नया संस्करण ‘मदर इंडिया’ के नाम से बरसों बाद बनाया गया।

विभाजन के समय किताबों के बंटवारे के बारे में अधिक जानकारी कहीं नहीं मिलती। किताबें बंट सकती हैं परंतु ज्ञान नहीं बांटा जा सकता। ज्ञान बहती हुई नदी के समान है। जहां पानी को थामने का प्रयास किया जाता है, वहां काई जम जाती है। किताबों के उस बंटवारे में भाषा को लेकर कोई विवाद नहीं था। सभी भाषाओं में लिखी हुई किताबें बांटी गई। तमिल और तेलुगु की किताबें नहीं बांटी गई। द्रविड संस्कृति अक्षुण रही है। वह आज भी बिना कांट-छांट के कायम है।

पाकिस्तान के हिस्से में मात्र 44 सिनेमाघर आए और वह भी बंद हो गए। वहां के लेखकों ने टेलीविजन के लिए लिखा। एक दौर में हसीना मोइन के लिखे सीरियल जिन्हें पाकिस्तान में ड्रामा कहते हैं, अत्यंत लोकप्रिय हुए। एक दौर में राज कपूर ने हसीना मोइन को ‘हिना’ के संवाद लिखने के लिए आमंत्रित किया था। वे आई थीं परंतु पाकिस्तान से उन्हें इतने समय तक भारत में रहने की इजाजत नहीं मिली। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। खाकसार इस संस्था के वाचनालय गया था। वहां दुर्लभ किताबें उपलब्ध हैं और अपनी मनचाही किताब की फोटोकॉपी भी की जा सकती है।

एक दौर में छोटे शहरों के म्यूनिसिपल विभाग के द्वारा बनाए गए वाचनालय भी होते थे। खाकसार में बुरहानपुर के वाचनालय में सर रिचर्ड बर्टन की किताब ‘बॉडी एंड सोल’ पढ़ी थी। इस तरह के वाचनालय अब शायद ही कहीं हों। आज पुस्तक प्रकाशन उद्योग आर्थिक कष्ट में है। इसे उद्योग का सूर्यास्त भी कहा जा सकता है। दोष आम पाठक का है जो किताब खरीदना जरूरी नहीं समझता। मराठी भाषा में पाठक हैं और किताब प्रकाशन जारी है। मराठी के दीपावली विशेषांक की अग्रिम बुकिंग की जाती है। कन्नड़ में भी प्रकाशन जारी है।

एक अंग्रेज़ी उपन्यास का कथासार यह है कि वाचनालय के अधिकारी का 15 वर्षीय बेटा एक किताब से इतना प्रभावित है कि उसने उसके लेखक की खोज में वर्षों लगा दिए। वह लेखक एक छोटे शहर में गुमनामी का जीवन जी रहा था, क्योंकि उसकी किताब के प्रकाशन के बाद उसकी अंतरंग मित्र को बहुत बदनामी सहनी पड़ी। किताबें कभी मरती नहीं, लेखक मारे जाते हैं यह घोर दुख की बात है कि हुड़दंगियों ने पुणे स्थित वाचनालय जला दिया। उसमें रामायण और महाभारत के प्रारंभिक संस्करण उपलब्ध थे।