लौह-द्वार / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
रात का अन्तिम प्रहर। नगर के प्रवेश-द्वार पर थपथपाहट का स्वर उभरा। द्वारपाल अर्धनिद्रा से हड़ाबड़ाकर जागा। फिर जोर की थपथपाहट।
‘‘अबे कौन आ मरा इस समय!’’
‘‘मैं हूँ हुजूर आम आदमी!’’
‘‘यह कौन -सा समय है फ़रियाद करने का’’-लौहद्वार को बाहर की ओर धकेलकर खोलते हुए द्वारपाल झुँझलाया।
‘‘हुजूर सत्यप्रकाश को शन्तिप्रिय ने मार दिया।’’ आम आदमी भयभीत स्वर में बोला।
‘‘क्यों मार दिया। सत्यप्रकाश ने कुछ ग़लत किया होगा। जो मर गया, उसको भगवान भी जीवित नहीं कर सकता। यहाँ क्यों आए हो?”
“न्याय मंत्री जी को सूचित करना था, ताकि वे शान्तिप्रिय के पागलपन पर रोक लगा सकें।’’ ‘‘वे अभी सो रहे होंगे। तुम्हें इतनी जल्दी नहीं आना था।’’
‘‘शान्तिप्रिय पर शैतान सवार हो गया है। वह भीड़ लेकर उसके परिवार तक को मारने पर तुला है। उसको न रोका गया, तो अनर्थ हो जाएगा।’’-आम आदमी गिड़गिड़ाया।
‘‘इसमें मंत्री जी क्या कर सकते हैं। इस तरह कोई सीधे माननीय मंत्री जी के पास आता है क्या। क्यों मार दिया। सत्यप्रकाश ने कुछ ग़लत किया होगा।’’ द्वारपाल ने उपेक्षा से कहा।
‘‘धरती गोल है, इतना ही तो बोला था।’’
‘‘क्या ज़रूरत थी यह सब बोलने की। इस तरह के बयान से शान्ति भंग होती है।”
‘‘आप मंत्री महोदय को खबर कर दीजिए।’’
‘‘इस समय वे फ़रियाद नहीं सुनते।’’ द्वारपाल ने टोका।
‘‘विशेष परिस्थितियों में सुनते हैं, अभी हाल ही में भोर में उन्होंने फ़रियाद सुनी थी।’’
‘‘आप ठहरे आम आदमी। आपकी पहुँच आपके मुहल्ले में भी नहीं। अगर होती, तो यह हादसा नहीं होता। आपको कोई क्यों सुनेगा। आपकी पहुँच किसी ऊपरवाले तक है, जो मंत्री जी से आपकी सिफ़ारिश कर दे।’’
‘‘मेरी पहुँच किसी ऊपरवाले तक नहीं है। मंत्री जी स्वतः संज्ञान भी तो ले ले सकते हैं।’’
‘‘ठीक है, घर में जाकर बैठो। स्वतः संज्ञान लेने की प्रतीक्षा करो।’’
द्वारपाल ने चीखते हुए लौह- द्वार को बलपूर्वक बन्द कर दिया।
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8/10/2023- कथादेश-मई-2024