वंश बेल / ज्योत्स्ना शर्मा
Gadya Kosh से
'गुलाबो देवी कन्या इंटर कॉलेज' के भव्य द्वार पर लाल रिबन कटते ही तालियाँ बज उठीं। मंच की ओर बढ़ते-बढ़ते डीएम साहेबा ने पूछा, "सरपंच जी! जिनकी स्मृति में यह विद्यालय बना उनके परिवार से कौन-कौन है।"
"अब आपसे क्या छुपाना मैडम जी, चौधरी साहब की यही एक बहू थी, जिसे तीसरी बेटी के जन्म पर घर से निकाल दिया गया था। मैके में ही ख़त्म हो गई बिचारी। कुछ दिन बाद बेटे ने भी पी-पीकर जान दे दी। मामा-नाना ने बच्चियों की कोई खबर न दी। वंश ख़त्म जी, खूब पछताए चौधरी साहब। सारी ज़मीन लड़कियों का स्कूल बनाने के लिए दान में देकर चल बसे, अब कोई नाम लेवा नहीं।"
"कैसे नहीं है ...वही तो मैं हूँ ...तीसरी लड़की ...ताया जी." ...कहते हुए डीएम साहेबा ने ताज़े फूलों का हार गुलाबो देवी जी के चित्र पर गर्व से चढ़ाकर आदर से हाथ जोड़ दिए.