वज्रपात / ख़लील जिब्रान / सुकेश साहनी

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(अनुवाद-सुएक्श साहनी)

तूफानी दिन था। एक औरत गिरजाघर में पादरी के सम्मुख आकर बोली, ‘‘मैं ईसाई नहीं हूँ, क्या मेरे लिए जीवन की नारकीय यातनाओं से मुक्ति का कोई मार्ग है?’’

पादरी ने उस औरत की ओर देखते हुए उत्तर दिया,‘‘नहीं, मुक्ति मार्ग के विषय में मैं उन्हीं को बता सकता हूँ, जिन्होंने विधिवत् ईसाई धर्म की दीक्षा ली हो।’’

पादरी के मुँह से यह शब्द निकले ही थे कि तेज गड़गड़ाहट के साथ बिजली वहाँ आ गिरी और पूरा क्षेत्र आग की लपटों से घिर गया।

नगरवासी दौड़े–दौड़े आए और उन्होंने उस औरत को तो बचा लिया, लेकिन तब तक पादरी अग्नि का ग्रास बन चुका था।

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