वन हमारा भी है / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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“यह अच्छी बात है कि मनुष्य भोजन पकाकर खाता है। यह हम सभी के लिए अच्छा है। यदि मनुष्य भी हमारी ही तरह कीड़ेमकौड़े खाने वाला होता तो हम कब के मिट गए होते।” टिंकू सारस ने हंसते हुए कहा।

“कैसी बात करते हो। कुछ मनुष्य शाकाहारी भी हैं तो कुछ मांसाहारी भी है। कुछ फलाहारी भी होते हैं। ऐसी बहुत सारी चीजें हैं जिन्हें मनुष्य कच्चा ही खाता है।” सीटू हंस ने कहा।

“ये मैं भी जानता हूं। लेकिन हमारा भोजन तो छोटेमोटे जीव हैं। जलीय पौधे हैं। यदि मनुष्य भी यही भोजन करने लगे तो? सोचो। हमारा क्या होगा।” टिंकू सारस ने कहा।

“हम्म। ये बात तो मैंने सोची ही नहीं। लेकिन टिंकू। तुम्हें आज अचानक ये क्या सूझ रहा है। तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि हम आज रात इस वन को छोड़कर अपने मधुवन की ओर उड़ान भरने वाले हैं। हजारों किलोमीटर की यात्रा करेंगे और अपने मधुवन पहंुच जाएंगे।” सीटू हंस ने तालियां बजाते हुए कहा।

टिंकू सारस ने लंबी सांस लेते हुए कहा-”यार सीटू। हम हर साल इस वन मंे आते हैं। 6 माह से अधिक इस वन की इस झील में रहते हैं। यहां खातेपीते हैं। अपने बच्चों का लालनपालन भी करते हैं। फिर एक दिन हम वापिस अपने मधुवन की ओर लौट जाते हैं।”

सीटू हंस ने बीच में ही टोकते हुए कहा-”तो क्या हुआ? यह हमारी मजबूरी है। यदि हम सर्दियों में चंपकवन नहीं आएंगे तो भूखे मर जाएंगे। हम कर भी क्या कर सकते हैं। सर्दियों में हमारे मधुवन में बर्फ पड़ जाती है। नदीझीलें जम जाती हैं। भोजन की तलाश में ही तो हम चंपकवन आते हैं। अब जब हमारे मधुवन का मौसम अच्छा हो गया है तो वापिस लौटने में हर्ज ही क्या है?”

टीकू सारस मुस्करा दिया। धीरे से बोला-”यही बात तो मुझे परेशान कर रही है।

“कौन सी बात? मैं समझा नहीं।” सीटू हंस ने पूछा। टीकू सारस ने जवाब दिया-”हमें वन का धन्यवाद देना चाहिए। सोचो। चंपकवन जैसे वन न हों तो हम कहां जाएंगे? हम यहां तभी तो आ पाते हैं जब चंपकवन के पशुपक्षी शांतिप्रिय हैं। चंपकवन की हवा, झील, यहां का मौसम ही नहीं सब कुछ हमारे अनुकूल है।”

युवी किंगफिशर ने चोंच उठाते हुए कहा-”हम्म यार। ये तो मैंने भी कभी नहीं सोचा। बात तो तुम्हारी सोचने वाली है। तुम ठीक कहते हो। हम तो लाखों की संख्या में चंपकवन आते हैं। वो भी हर साल। यदि चंपकवन के पशुपक्षी हमारा स्वागत करने की बजाए हमसे लड़नेझगड़ने पर उतारू हो जाएं तो हम कर भी क्या सकते हैं? चंपकवन में कभी भी हमसे किसी ने झगड़ा नहीं किया। हमेशा हमारा स्वागत ही किया।”

सीटू हंस भी सोच में पड़ गया। फिर बोला-”ये तो है। लेकिन टिंकू के सोचने भर से क्या हो जाता है। हम कर भी क्या कर सकते हैं। यदि मनुष्य भी हमारे जैसा भोजन करने लगे तो क्या हम उन्हें रोक सकेंगे? नहीं न? जो बात हमारे वश में ही नहीं उस पर विचार क्यों करें?”

टिंकू सारस ने कहा-”सीटू भाई। मैं हर साल चंपकवन आता हूं। मेरी तरह सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी यहां आते हैं। लेकिन हर साल झील का पानी कम होता जा रहा है। पानी हर साल मैला होता जा रहा है। यही नहीं हमारे भोजन में जो विविधता थी, वो भी धीरे धीरे लुप्त हो रही है। हरेभरे वृक्षों में कमी आ रही है। चंपकवन भी सिमटता जा रहा है। तुमने कभी गौर किया?”

युवी किंगफिशर बीच में ही बोल पड़ी-”अरे हां। मैं भी यही सोच रही हूं। वाकई। यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारा क्या होगा? मैं तो यह भी सोच रही हूं कि क्या हम अगले साल चंपकवन को खुशहाल देख भी पाएंगे या नहीं।”

टिंकू सारस लंबी सांस लेते हुए बोला-”दोस्तों। बस यही चिंता मुझे सता रही है। काश ! मनुष्य हमारी भाषा समझ पाते तो मैं जरूर उनसे कहता कि वनों को कंकरीट का जंगल बनाने से हम जीवजन्तुओं का जीवन खतरे में पड़ता जा रहा है। हम नहीं रहेंगे तो मनुष्य भी नहीं रहेगा। हम पारिस्थितिकी की एक कड़ी है। यह बात मनुष्य भलीभांति जानता तो है पर न जाने क्यों वह अपनी आंखों में काली पट्टी क्यों बंाध रहा है?”

सीटू हंस ने उदास होते हुए कहा-”हां दोस्तों। आप सही कह रहे हैं। देखा जाए तो चंपकवन भी हमारा है। भले ही हम यहां लगभग 6 महीने ही रह पाते हैं। खैर अब चलने की तैयारी करो और चंपकवन को अलविदा कहो। सब कुछ अच्छा रहा तो अगले साल फिर आएंगे।”

“चलो दोस्तों। तैयारी करो।” टिंकू सारस और युवी किंगफिशर ने अपने दोस्तों को पुकारा और वे खुद चंपकवन के साथियों से मुलाकात करने चल पड़े।