वफ़ादार नन्दी / रंजना वर्मा
मोहन के माता पिता सरल स्वभाव के थे। मध्यम श्रेणी का परिवार था। घर में मोहन के अतिरिक्त दो बहने और थीं। शीला और मीना। साथ ही उसके बूढ़े दादा दादी भी थे। दादी बच्चों को बहुत प्यार करती थी परंतु दादाजी का स्वभाव रूखा था। वे अपने समय के थानेदार थे सो थानेदारी उनके स्वभाव में घुल मिल गई थी।
परिवार के सभी लोग उन से डरते थे। दादी ने घर में एक बकरी पाल रखी थी क्योंकि बकरी के दूध के साथ उन्हें दवा खानी पड़ती थी। दादा जी को वह एक आँख नहीं सुहाती थी। बकरी काले रंग की थी और उसके माथे पर सफेद बालों की बिंदी थी इसलिए दादी माँ उसे बिंदी कह कर पुकारती थी। आँगन के एक कोने में उस के रहने के लिए व्यवस्था की गई थी।
दिन भर बिंदी चरने चली जाती थी। उस के लिए एक छोटा-सा लड़का नियुक्त किया गया था। वह शाम को बिंदी को वापस घर छोड़ जाता। तब मोहन की माँ उसका दूध दुहती और दादी को पीने के लिए दे देती।
एक दिन सुबह मोहन ने आँगन में बिल्ली के पास दो नन्हे-नन्हे बच्चे देखे। पूछने पर माँ ने बताया कि रात में बिंदी ने दो मेमनों को जन्म दिया था जिनमें से एक नर था और दूसरा मादा। उसी दिन दोपहर मादा मेमने ने प्राण त्याग दिये। दूसरा मेमना स्वस्थ था। मोहन ने उसका नाम रखा-नंदी।
मोहन को नंदी के साथ खेलना बहुत प्रिय था। वह उसके कोमल बालों को सहला कर बहुत प्रसन्न होता। अपने हाथ से उसे पत्तियाँ खिलाता। पानी पिलाता और माँ की आँख बचा कर उसे बिंदी के पास छोड़ देता। नटखट मेमना उसका सारा दूध पी जाता। कभी मोहन उसे लेकर रसोई में घुस जाता और कभी कटी हुई सब्जियों को मुट्ठी भर-भर कर नन्दी को चुपके से खिला देता। माता पिता के डाँटते ही वह बाहर भाग जाता। नन्दी भी उसके पीछे उछल कर बाहर निकल जाता।
जैसे-जैसे नन्दी बड़ा होता जा रहा था उसकी शैतानियाँ बढ़ती ही जाती थी। वह हमेशा मोहन के इर्द गिर्द ही मंडराता रहता। मोहन पढ़ने बैठता तो वह पीछे से आकर उसे धकेल देता। जब वह मारने के लिये उठता तो बिंदी के पास जाकर खड़ा हो जाता था।
दादा जी नन्दी से बहुत चिढ़ते थे। उसकी शैतानियाँ उन्हें और भी क्रोधित कर देतीं। दादा जी रोज सुबह टहलने जाते थे। उनकी छड़ी की ठक-ठक सुनते ही नन्दी आँखें बंद कर लेता और जब वे घर से बाहर निकल जाते तो उनके कमरे में घुस कर उनका सारा सामान फैला देता। कभी पानी का जग गिरा देता तो कभी ऐनक का केस तोड़ देता।
मस्ती करते रहने और मोहन की देख रेख में वह कुछ ही दिनों में खूब मोटा और बलवान हो गया। एक दिन दादाजी ने मोहन के पिता को बुला कर कहा-
"सुरेश! यह बकरा पाल कर क्या करेगा तू?"
वह चुप रहे तो दादाजी ने फिर कहा-
"बहुत मोटा और बदमाश हो गया है यह। बकरी होती तो पाल लिया जाता। अब इसे बेच दे। अच्छा पैसा मिल जायेगा।"
"दादा जी! नंदी को कौन खरीदेगा?" मोहन की बहन शीला ने पूछा।
"कसाई ले जायेगा बेटी! बकरा तो कसाई के ही घर बिकता है।" दादा जी बोले।
"कसाई उसे क्या करेगा? पालेगा क्या?" शीला ने भोलेपन से पूछा।
"जा भाग। जा कर खेल।" दादाजी ने कहा तो वह सहम गयी और भाग गयी।
दादा जी का मूड बिगड़ता देख कर मोहन के पिताजी ने कहा-
"ठीक है पिताजी! मैं बात करूंगा जल्दी ही।"
जल्दी ही यह बात पूरे घर में फैल गयी। नंदी को कसाई के हाथ बेच दिया जायेगा यह बात जानकर मोहन के प्राण सूख गए. वह जानता था कि कसाई नन्दी को मार डालेगा और उसका मांस बेच देगा।
बहुत सोचने पर भी उसे नंदी को बचाने की कोई राह नहीं दिखाई देती थी। दादा जी के गुस्से से सभी डरते थे इसलिए उनकी बात काटने का साहस किसी में नहीं था। मोहन और उसकी दोनों बहने उस दिन पूरी रात सो नहीं सके.
दूसरे दिन मोहन ने दादी और माँ से बात की कि वे किसी प्रकार नंदी को बचा लें। उसे न बिकने दे। परंतु वे कुछ भी करने में असमर्थ थी। मोहन के सामने कोई रास्ता नहीं था नदी को बचाने का।
अब वह हर समय नंदी को अपनी आंखों के सामने देखना चाहता था। बहुत सोचने के बाद भी जब उसे नंदी की रक्षा का कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने दादाजी से ही प्रार्थना करने का निश्चय किया। यद्यपि ऐसा करना उसे शेर के सामने जाने जैसा लगता था लेकिन इसके अतिरिक्त और कोई चारा नहीं था। नंदी को बचाने के लिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार था।
दूसरे दिन मोहन दादाजी के सैर करके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा। नंदी को उसने आँगन में ही एक और बैठे रहने के लिए समझा दिया था। दादाजी के लौटने पर वह डरते-डरते उनके सामने जा कर बोला-
"दादा जी!"
"कौन? मोहन? आओ, क्या बात है?" दादा जी ने पूछा। उस दिन वह बड़े अच्छे मूड में लग रहे थे।
"दादा जी! आपसे एक प्रार्थना करनी है।" उसने साहस करके कहा।
"हाँ हाँ ...कहो, क्या कहते हो?"
"दादा जी! नंदी को मत बेचिये। मैं उसके साथ ..."
"मोहन!" दादाजी दहाड़े। उसी समय नंदी उनके कमरे में घुस आया और उसने दादाजी की छड़ी गिरा दी।
दादा जी का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया-
"इस नालायक की हिमायत करने आया है तू? नालायक, जीना हराम कर रखा है इसने।"
मोहन घबरा कर अपने कमरे में जा घुसा। नंदी भी उसके पीछे-पीछे वहाँ जा पहुंचा। उससे लिपट कर मोहन रो पड़ा। उसकी अंतिम आशा भी समाप्त हो गई थी। स्कूल जाते समय वह फिर नँदी से लिपट गया लेकिन दादाजी के क्रोध के कारण इसे छोड़ कर चला गया।
उसी दिन दोपहर को एक घटना घट गई. मोहन के पिताजी और बच्चे सब जा चुके थे। घर में दादी माँ और मोहन की माँ थी। बाहर के कमरे में दादाजी लेट कर आराम कर रहे थे। थोड़ी देर पहले ही वे भोजन करके उठे थे। अब दोपहर की नींद लेने का प्रयास कर रहे थे।
उसी समय दो युवक दादाजी के कमरे में घुस गए और उनसे किसी रामनाथ का पता पूछने लगे। दादाजी ने अनभिज्ञता प्रकट की। तब तक उनमें से एक युवक ने छुरा निकाल लिया और उनके चेहरे के सामने लहराते हुए बोला-
"चुपचाप उठ कर घर के सारे रुपए और जेवर निकाल दो वरना..."
"वरना क्या करोगे?" दादाजी चिल्लाए.
वरना चाकू अंदर और दम बाहर। " वह क्रूर स्वर में बोला।
दादाजी के जोर से बोलने पर आंगन में बैठी दादी जी चौंक पड़ी। उन्होंने घबरा कर इधर उधर देखा लेकिन क्या करें कुछ समझ में नहीं आया।
उसी समय आंगन में खड़ा नन्दी दौड़ पड़ा। उसने अचानक धक्का देकर चाकू वाले युवक को गिरा दिया और अकेला ही दोनों बदमाशों से भिड़ गया। इस अचानक आयी विपत्ति से वे घबरा गए. तब तक एक युवक ने मौका पाकर चाकू चला दिया। चाकू नन्दी की कमर में जा घुसा। इस चोट ने उसे और भी खूंखार बना दिया। उसने बुरी तरह मार-मार कर उन दोनों को भागने के लिए विवश कर दिया। वह उन्हें दूर तक खदेड़ कर वापस लौटा और दादा जी के कमरे में आते-आते लड़खड़ाकर गिर पड़ा। दादाजी दौड़ कर उसके पास पहुंचे और चाकू निकाल दिया। वे अपना तौलिया रखकर उसके घाव से बहते खून को रोकने का प्रयत्न करने लगे। अंदर से दादी और माँ भी दौड़ कर बाहर आ गई. उन्होंने नंदी के घाव की मरहम पट्टी कर दी।
उसी समय मोहन स्कूल से मध्यावकाश में घर आया। नंदी को घायल और दादाजी के पास पड़ा देखकर वह चौक गया। दादा जी प्यार से नंदी को सहला रहे थे। मोहन को देखकर वह बोले-
"मोहन बेटा! आज तेरे नंदी ने मेरी जान ही नहीं बचाई बल्कि घर को भी लुटने से बचाया है। अब यह यही रहेगा। तेरे पास। हमारे पास। यह हमारे घर का सदस्य है बेटा! हम इसे कभी नहीं बेचेंगे।" मोहन दादाजी की बात सुनकर खुशी से उछल पड़ा। उसने दादा जी के गले में बाहें डाल दी-
"दादा जी, आप बहुत अच्छे हैं। बहुत अच्छे..."