वर्चस्व / सुधा अरोड़ा
घर में कुतिया और कम्प्यूटर एक साथ लाए थे । इसलिए सब ने लकदक, भूरे रोएँदार, बिलौटे-सी चमकती आँखों वाली कुतिया का नाम एकमत से फ्लॉपी रख दिया था। आज करवा-चौथ का व्रत था और फ्लॉपी सो रही थी। अक्सर वह सुबह पाँच बजे ही सविता को उठा देती है पर आज उसने छह बजे उठाया, जब सूरज की रोशनी आसमान पर फैल चुकी थी। सरगी का वक्त निकल चुका था। हर साल की तरह इस बार भी सुबह सरगी खाने के लिए सविता की नींद नहीं टूटी थी। वैसे अक्सर वह उठ भी जाती थी तो सिर्फ़ एक प्याला चाय पी लेती थीं । करवाचौथ का व्रत रखने वाली दूसरी सुहागिनों की तरह पति की लम्बी उम्र की कामना करते हुए सारे दिन के निर्जला उपवास की तैयारी में सुबह सूरज उगने से पहले कमर कसकर पूरी–सब्जी या भरवाँ पराँठे का भर पेट नाश्ता उसके लिए असंभव था। इधर फ्लॉपी ने अपने अलसाए हुए भूरे रोओं को स्पैनिश नृत्य की लय में झटकार कर सुबह होने का एलान किया, उधर सविता ने खीझ मे अपना सिर झटक दिया। अब सारा दिन चाय की तलब सताएगी।
‘‘चल फ्लॉपी, आजा’’ --वह होंठो में बुदबुदायी तो फ्लॉपी चौकन्नी होकर उचकी।
दोनों सड़क पर थे। फ्लॉपी गले में पट्टा पहनने की आदी नहीं थी। दूसरे पालतू कुत्तों की तरह वह लीश में बंधी–बंधी मालिक के पीछे–पीछे दुम हिलाती नहीं चलती थी। उसके क़दम आज़ाद थे और वह सविता के आगे–आगे, मनचाही राह पर इतराती हुई चलती थी। बीच–बीच में सिर घुमाकर देख लेती कि सविता पीछे आ रही है या नहीं। यह गली, यह इलाका उसकी बपौती था। अपने क्षेत्र में किसी दूसरे कुत्ते का आना उसे बर्दाश्त नहीं था। यहाँ तक कि सड़क पर एक कौआ देखकर भी वह शेरनी की तरह दहाड़ती, हिरनी की तरह कुलाँचे भरकर दौड़ती और कौए को खदेड़कर ही दम लेती। उसके बाद वह शान से सविता की ओर विजेता की मुस्कान फेंकती। फ्लॉपी ने सुबह का अपना क्रिया-कलाप समाप्त किया तो सविता ने लौट चलने का सिग्नल दिया।
फ्लॉपी ने आनाकानी की, फिर एहसान जताती सविता के ढीले क़दमों से बेपरवाह फलांगती घर पहुँच गई। निर्जला व्रत शाम तक निढाल कर देता है इसलिए सविता ने दोपहर बारह बजे ही रात का खाना भी तैयार कर ढाँप–ढूँपकर रख दिया। फ्लॉपी को भी आज शाकाहारी भोजन मिलेगा। सविता ने चावल में सब्जियाँ उबालकर उसका खाना तैयार कर लिया। फ्लॉपी इठलाती हुई आई और दही–पुलाव के सात्विक भोजन को शूँ-शूँ कर सूँघती हुई अकड़ी हुई पूँछ के साथ कोप-भवन में जाकर बैठ गई। सविता की दो बेटियों की पंक्ति में यह तीसरी नकचढ़ी बेटी थी।
‘‘नखरे मत कर, आज तुझे यही खाना मिलेगा’’--सविता ने उससे कहा-- ‘‘नहीं खाना? ठीक है, बैठी रह, जब भूख लगेगी न, अपने–आप आएगी खाने।’’
फ्लॉपी ने तिरछी नज़र से सविता की ओर देखा और कैटरपिल की तरह हाथ–पैर समेटकर ज़मीन पर मुँह टिकाकर पसर गई।
शाम को दोनों बेटियाँ स्कूल से लौट आईं। दोनों ने उसे पुचकारा–‘‘हाय स्वीटी , व्हाय डिडण्ट यू ईट?’’ छोटी ने खाना देखा तो नाक–भौं सिकोड़ी–- ’’ममा, आप इसे घास–फूस खाने को क्यों देते हो? हाउ कैन शी ईट दिस रॉटन फूड?’’ फिर फ्लॉपी को गोद में लेकर पुचकारा–- ‘‘ओह माय डार्लिग, यू आर सो हंग्री। व्हॉट आ पिटी।’’
अपने पापा के लौटते ही बेटियाँ शिकायत का पुलिन्दा लेकर हाज़िर हो गईं–‘‘पापा, देखो न, मॉम इज टॉर्चरिंग पुअर लिट्ल सोल।’’
सविता ने हँसकर कहा–‘‘आज फ्लॉपी ने भी मेरे साथ करवा-चौथ का व्रत रखा है।’’
‘‘व्हॉट रबिश, यू कान्ट बी सो क्रुएल’’ --बौखलाते हुए साहब मज़बूत क़दमों के साथ रसोई में दाखिल हुए, डीप फीजर से फ्लॉपी का मनपसंद पोर्क मिन्स्ड निकाला, डिफ्रॉस्ट किया और गैस पर चढ़ा दिया।
फ्लॉपी ने सविता को चिढ़ा–चिढ़ाकर, चटखारे ले–लेकर खाना साफ़ किया और हमेशा की तरह सविता की साड़ी से मुँह रगड़कर पोंछ लिया। छोटी बेटी ने फ्लॉपी को शाबाशी दी–‘‘गुड गर्ल, दैट्स द पनिशमेंट। ममी की करवाचौथ–स्पेशल लाल साड़ी खराब कर दी। ’’ बड़ी बेटी ने पापा की ओर से फरमाइश की–- ‘‘फ्लॉपी को तो पापा ने खिला दिया, अब पापा के लिए थोड़े से चिप्स फ्राय कर दो। प्लीज ममा, हमें भी भूख लगी है।’’
सविता उठी और सूखते गले को थूक निगलकर तर करते हुए आलू के चिप्स तल दिए और सिर पकड़कर लेट गई। यह सरगी में चाय न पीने की सज़ा थी। सूरज जब शाम को ऊब–डूब हो रहा था, सविता ने सब लाल–गुलाबी साड़ीवालियों के साथ बैठकर पूजा की। जब सब हाथ जोड़कर बैठी थी, फ्लॉपी ने धीरे से दायाँ पंजा बढ़ाकर पूजा की थाली का लाल कपड़ा सरकाया और कागजी बादाम के दो दाने मुँह में सटक लिए। सविता सूखे गले से कुँकँआई तो छोटी बेटी फ्लॉपी को नवजात बच्चे की तरह दोनों बाँहों में समेटकर भीतर ले गई। फ्लॉपी पर हैण्डल विथ केअर का लेबल लगा था।
कुछ भी कहना बेकार था। घर में फ्लॉपी के सात ख़ून माफ़ थे।
इस बार पक्की चौथ थी। चांद देर से निकलने वाला था। मेज पर ढका हुआ खाना सबने गर्म किया, स्वाद ले–लेकर खाया और खाते–खाते चांद के न निकलने को लेकर परेशान हो रहे थे। आखिर चांद निकला। सविता ने जाली की ओट से चांद देखा, अर्घ्य दिया और हाथ जोड़कर मन ही मन कहा–-‘‘हे गौरजा माता, अगले जनम में अगर मुझे मनुष्य योनि में जन्म न मिले तो पशुयोनि में मुझे किसी पालतू घर की कुतिया बना देना ताकि मैं करवा-चौथ के दिन अपना झूठा मुँह किसी सुहागन की लाल साड़ी से पोंछ सकूँ।’
दरवाज़े पर बैठी फ्लॉपी ने अघायी नज़रों से सविता की ओर देखा और जीभ बाहर निकालकर लार टपकाती हुई अधमुंदी आँखों से ऊंघने लगी।