वर्चुअल / सुरेश सौरभ
आज फिर न मजूरी मिली। वह थका-हारा उदास मुंह लटकाए बैठा था। पापा-पापा वरचुअल रैली क्या होती है, बताओ-बताओे' तभी उसके पास उसका सात साल का बेटा आकर यह पूछने लगा।
'जाओ यार एक तो यह तालाबंदी मारे डाल रही है, ऊपर से तुम जान खाए पड़े हो, उसने बेटे को झिड़क कर कहा, पर चिड़चिड़ाते हुए वह अपनी ज़िद पर अड़ा था-बताओ न, बताओ न पापा...पापा आज सारा दिन टीवी में यही आया है।'
अब तो उसे बहुत गुस्सा आ गया। एक तमाचा खींच कर बोला-चल भाग यहाँ से खामखा दिमाग़ खाए पड़ा है। ऊँ-ऊँ ऊँ...ऽ ऽ...बच्चा जोर-जोर से रोने लगा। तभी उसकी आवाज़ सुन मम्मी वहाँ आ गईं। चटपट बेटे को चिपटाते हुए हैरानी बोलीं-क्या हुआ? क्या हुआ? मेरे लाल बता किसने मारा बता... बता। ...ऊँ ऊँ... पापा ने पापा ने...
'जब काम-धंधा न मिले तो इसका मतलब क्या सारी गुस्सा और खींज बच्चे को मार-पीट कर निकालोगे। शर्म आनी चाहिए।' मम्मी खासे गुस्से में बोलीं।
अब वह खमखमाते हुए उठा और तेज-तेज कदमों से जाते हुए घूम कर बोला-बेटे को नहीं वरचुअल रैली को मारा है। '