वर्जिनिटी / नीना अंदौत्रा पठानिया
अगस्त की शाम बरसात लिए ढल रही थी। शाम के चार बजे रहे थे। विमला अपने पति प्रमोद लाल के साथ अभी भी घर की सफ़ाई में व्यस्त थी। चेहरे पर तनाव साफ़ झलक रहा था। बतीस वर्षीय बेटी श्यामली की शादी की चिंता आजकल वक़्त - बेवक़्त विमला को घेरे रखती थी।
“माँ, पहले चाय पी लें, बाक़ी काम मिलकर कर लेते हैं।” चाय के चार कप की ट्रे मेज़ पर रखते हुए रोमा के हाथ की लाल चूड़ियां खनक रही थी। रोमा विमला की बहू, जो कुछ महीने पहले शादी कर इस घर में आई थी।
रोमा की आवाज़ सुनते ही प्रमोद लाल हाल में लगी कुर्सी पर आकर बैठ गये। “श्यामली की माँ आ जाओ अब, पहले चाय पी लो। रोमा ने चाय बहुत अच्छी बनाई है।” बिस्किट को चाय में डीप करते हुए प्रमोद लाल ने कहा। शाम की चाय विमला, प्रमोद, बेटा मोक्ष और बहू रोमा एक साथ पीते थे।
“मां, श्यामली नहीं आई अभी तक?” मोक्ष ने चाय का कप हाथ में लेते हुए विमला से पूछा।
इस लड़की का कौन सा टाइम है। स्कूल से निकलकर साईमा के घर चली गई होगी।” विमला ने परेशान होते हुए कहा। “अरे आ जायेगी क्यों परेशान होती हो।”
“परसों लड़के वाले देखने आ रहे हैं और इस लड़की को घूमने से फ़ुर्सत नहीं है, शादी की उम्र निकल रही है, पर हरकतें बचकानी ही है अभी तक।”
“सब सीख जाएगी वक़्त के साथ, तुमने भी तो शादी के बाद ही सब सीखा था।” प्रमोद लाल ने शरारती हँसी के साथ विमला को छेड़ते हुए कहा और जेब से मोबाइल निकाल बेटी श्यामली को फ़ोन करने लगे।
“मोबाइल पर रिंग तो जा रही है पर…।” अभी प्रमोद लाल बोल ही रहे थे कि श्यामली के स्कूटर की आवाज़ से सभी एक-दूसरे को आंखों से कहने लगे कि श्यामली आ गई है।
बारिश तेज़ हो गई थी। दिन अभी डूबा नहीं था, पर काले बादलों ने सूरज को छिपा लिया था और हल्का-हल्का अंधेरा भी दस्तक देने लगा था।
“दो बजे तुझे छुट्टी हो जाती है और तू अब पहुंच रही है।”
अंदर आते ही विमला ने अपना गुस्सा दिखाते हुए कहा। “अरे मां साईंमा के अब्बू की तबीयत ख़राब हो गई थी वही देखने चली गई थी।” प्लेट से बिस्किट उठाते हुए श्यामली बोली।
“कितनी बार कहा है रेनकोट लेकर जाया कर। बरसात का मौसम है पर इस लड़की को तो…।” भीगे कपड़ों से निचुड़ता पानी फ़र्श पर फ़ैलता देख विमला ने बेटी को टोकते हुए कहा।
“अरे मां…, लगाती हूँ पोछा।” श्यामली बोलते हुए अपने कमरे की ओर चली गई। उसके सैंडल की टक-टक की आवाज़ तेज़ थी, जिससे साफ़ पता चल रहा था कि मां का ऐसे टोकना उसको कितना बुरा लगा था।
बाक़ी सब लोगो के चेहरे पर हमेशा की तरह हँसी थी। जब भी मां-बेटी की आपस में हल्की-फुल्की बहस होती तो सब शांत रहते। सब जानते थे दोनों कुछ देर तक़रार के बाद एक-दूसरे की चहेती हो जाएंगी।
कुछ ही देर में श्यामली आसमानी नीले रंग की सलवार- कमीज के साथ सफ़ेद दुपट्टा ओढ़े हाथ मे पोछा लेकर आ गई।
“आज घर की सफ़ाई कुछ ज़्यादा ही हुई है।” श्यामली ने पोछा लगाते हुए, घर के बदले हुए पर्दों और बेडशीट की ओर इशारा करते हुए कहा।
“परसों मेरे जीजा जी आ रहें हैं, इस बार कहीं तेरी बात बन जाये तो हम तुझे इस घर से निकालें।” मोक्ष अक़्सर शादी के नाम से श्यामली को चिढ़ाता था, इसलिए उसने आज भी अपने हाथ से मौक़ा जाने न दिया।
“अरे वाह… कौन ख़ुशनसीब है वो जो तेरा जीजा बनने के सपने देख रहा है।”
“आ रहा है परसों मिल लेना, सबसे बड़ी बात आपकी कुंडली मैच हो गई है ब्रह्म्वर्ण जी।”
“कुंडली का ही मैच होना ज़रूरी है। वो मुझसे मैच हो या न हो।” मुँह में बोलती हुई श्यामली रसोई में चली गई।
बेटी के पीछे विमला देवी भी चली गई।
चार साल से सेकेंडरी स्कूल में अध्यापिका चली आ रही श्यामली मोक्ष से दो साल बड़ी थीं, पर कहीं भी उसकी कुंडली नहीं मिलती थी, इसलिए हमेशा शादी की बात बनते-बनते रह जाती। मोक्ष की शादी श्यामली ने ही माता-पिता पर ज़ोर देकर इसी साल करवाई थी।
मोक्ष रोमा को पसन्द करता है और रोमा के घर के लोग कहीं और रोमा के लिए लड़का देख रहे हैं। ये बात जब श्यामली को पता चली थी तो श्यामली ख़ुद ही रोमा के माता-पिता से शादी की बात करने चली गई थी।
“मोक्ष अच्छा लड़का है पर शादी के लिए हम लोग इतना इंतज़ार नहीं कर सकते।” रोमा की मां ने श्यामली को हिचकिचाते हुए कहा था। श्यामली उनके इशारे को समझ गई थी। वह कभी नहीं चाहती थी कि वह अपने भाई के प्रेम के असफ़ल होने का एक कारण बनें, इसलिए उसने अपने माता-पिता को दुनिया भर के तर्क देकर भाई की शादी करवा दी थी। इस शादी से मोक्ष और रोमा जितने ख़ुश थे उससे ज़्यादा श्यामली ख़ुश थी। कई बार ख़ुशी अकारण होती है और बहुत ज़्यादा होती है जब दो लोगों को मिलाया जाता है उम्र भर के लिए। श्यामली भी ख़ुश थी प्रेम भरे दो सिर जोड़कर।
“श्यामली परसों लड़के वाले आ रहें हैं। अच्छा परिवार है और तेरी कुंडली भी मिल गई है वहाँ।”
“ठीक है माँ, जैसा आप सबको ठीक लगे।”
“लड़के की तस्वीर भी व्हाट्सएप पर मंगवा ली थी मैंने,” पास खड़ी रोमा के फ़ोन की ओर विमला देवी ने इशारा करते हुए कहा। रोमा ने फ़ोन की गैलरी ओपन की और फ़ोन श्यामली को देते हुए पास खड़ी हो गई।
“रोमा मैं ज़्यादा सुंदर हूँ न इस कद्दू से।” श्यामली के इस वाक्य को सुनते ही रोमा की हँसी फूट पड़ी। पास में खड़ी माँ भी अपनी हँसी न रोक सकी। समझ गई थी बेटी मज़ाक के मूड में है।
“दीदी इसको कद्दू नहीं कहते, हेल्दी कहते हैं।”
“अच्छा इसको हेल्दी कहते हैं तो फ़िर हेल्दी को क्या कहते होंगे।” इस बार दोनों की हँसी के ठहाकों से रसोईघर गूँजने लगा था।
“परसों इसको याद से पूछना है कि कौनसी चक्की का आटा खाता है।” हँसते हुए श्यामली से बात नहीं की जा रही थी। रोमा की आँखों में पानी आ गया था। माँ कभी दोनों को टोकती तो कभी दोनों के साथ हँस देती। बातों-बातों में रात का खाना तैयार हो गया था।ननद – भाभी ने मिलकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया। बारिश तेज़ थी और रात के आठ बजे का बिजली का कट अपने समय पर लग चुका था। बिजली का कट होना जम्मू में एक सामान्य समस्या थी।
“हम लोग अपने समय से चूक सकते हैं, पर ये बिजली का कट बिना समय गँवाए, पूरे समय पर लगता है।” प्रमोद लाल ने डाइनिंग टेबल की चेयर को सीधे करते हुए कहा। सारा परिवार एक साथ खाना खाते हुए श्यामली की शादी पर अपनी – अपनी राय दे रहे थे। मोक्ष खाना खाने के बाद अपने माता-पिता के साथ डाइनिंग टेबल की चेयर पर बैठ कर बातें कर रहा था। श्यामली औऱ रोमा भी रसोई का काम ख़त्म कर सब के साथ बातें करने लगीं। रात के खाने के बाद पूरा परिवार कुछ देर साथ ज़रूर बैठता। दिनचर्या पर बात होती।
“चलो अब सभी लोग सो जाओ रात बहुत हो गई है।” रोमा की आंखों में नींद को तैरते हुए देख विमला देवी ने कहा।
माँ की बात सुनते ही सब ने अपनी-अपनी कुर्सियां छोड़ दी औऱ अपने-अपने कमरे में जाने लगे।
आसमान साफ़ हो चुका था। तारों भरा आसमान चमक रहा था। भारी बारिश के बाद मौसम में ठंडक थी। जम्मू की छोटी-छोटी पहाड़ियों की हवा ने गर्मी को दूर भगा दिया था।
श्यामली रोज़ की तरह कुछ देर क़िताबों से मुलाक़ात कर रही थी। अकेलेपन को बांटने के लिए सबको कोई न कोई चाहिए। श्यामली ने अपना अकेलापन किताबों के साथ बांट लिया था। अक़्सर क़िताबें पढ़ते हुए वह सो जाती और माँ उसके सोने के बाद कमरे की लाइट बन्द करती। माँ को कहाँ नींद आती है अपने बच्चों को जागते देख। विमला देवी भी तो माँ थी। ऐसी माँ जिसको बेटी की शादी की चिंता थी।
सुबह हर घर की बहुत व्यस्त होती है। प्रमोद लाल के घर की सुबह भी भागदौड़ भरी थी। मोक्ष और श्यामली के जाने के बाद ही भागदौड़ थोड़ी थमती । प्रमोद लाल सेना से सेवानिवृत्त सूबेदार थे, इसलिए विमला के साथ घर के कामों में ही व्यस्त रहते। रोमा अपने लिए नौकरी ढूंढ रही थी। मध्यवर्गीय ये परिवार अपनी खुली सोच से ख़ुश था। दिन बीत गया था। रात का खाना खाने के बाद कुछ देर साथ बैठने के बाद सब अपने-अपने कमरों में चले गए । विमला देवी की आंखों में नींद नहीं थी। सारी रात कभी मंत्र जाप करती रही तो कभी कमरे से रसोई का सफ़र । “बिना किसी रुकावट के बेटी का रिश्ता हो जाये बस और कुछ नहीं मांगती।” कितनी बार मुँह में बुदबुदा दिया था उसने।
सुबह भारी बारिश में भीगती हुई आयी थी। तवी का पानी पूरे शबाब पर था। मेहमानों के स्वागत की तैयारियां हो रही थी। श्यामली ने अपने कमरे में रंग-बिरंगे कपड़े फैला रखे थे। कोई उसे पसन्द करे या न करे, पहली पसंद श्यामली स्वयं थी। रोमा बार-बार श्यामली के पास आकर कद्दू बोल जाती और माहौल ख़ुशनुमा हो जाता।
लड़का अपने माता-पिता के साथ आ गया था। अगस्त की हरी घास बारिश में नहा कर नवयौवना की तरह चमक रही थी। गुड़हल, मोगरे और मौसमी फूल आँगन की शोभा बढ़ा रहे थे।
दोनों परिवार आपस में बैठ कर बातचीत कर रहे थे। जैसे ही श्यामली रोमा के साथ ड्रॉइंग रूम में आई, सब चुप हो गए। लड़के की नज़र श्यामली पर ठहर गई। श्यामली ने सफ़ेद रंग का चूड़ीदार सूट के साथ सिल्क का लाल बांधनी दुप्पटा दोनों कंधों पर फैलाया हुआ था। कानों में सिल्वर लाल मोती के डोगरी झुमके उस का रूप बढ़ा रहे थे। लड़के के माता-पिता ने श्यामली से बातें की और दोनों परिवार के लोग धीरे-धीरे ड्रॉइंग रूम से बाहर चले गए।
अब ड्रॉइंग रूम में दो अजनबी थे। जिनको कुछ समय में एक-दूसरे से बात कर, जिंदगी भर के लिए एक-दूसरे के होने का फ़ैसला करना था।
“मेरा नाम आदि है और बैंक में पी.ओ. हूँ।” श्यामली चुप थी, बिल्कुल शांत।
“आप बहुत सुंदर लग रही हैं।”
“थैंक यू।”
“थैंक गॉड, कुछ तो बोली आप, मुझसे कुछ पूछना है तो पूछ सकती हैं।”
“क्या पूछूं, मैंनें तो कुछ भी नहीं सोचा।”
“अपनी होबिज़ के बारे में बता दें, क्या करना अच्छा लगता है।”
“मुझे घूमना बहुत पसंद हैं, किताबें पढ़ना और फ़ुर्सत में बाग़वानी कर लेती हूँ।” धीरे-धीरे आदि और श्यामली की बातें बढ़ रही थी। श्यामली भी अब आदि को उसकी पसंद-नापसंद पूछ रही थी।
आधे घण्टे बाद आदि के माता-पिता कमरे में आ गए। उसने अपने पेरेंट्स को इशारे से हाँ कह दी थी।
आदि दरमियानी कद-काठी, भरे हुए शरीर का मालिक था, जबकि श्यामली दुबली-पतली सी आकर्षक व्यक्तित्व की धनी थी। एक ही नज़र में वो सबको पसन्द आ गई थी। आदि की भी कुंडली मैच नहीं होती थी। अग़र कहीं हो जाती थी तो लड़की पसन्द नहीं आती। श्यामली को देख ऐसा लगा जैसी लड़की उसकी हमसफ़र बनने के लिए चाहिए थी, वो बिल्कुल वैसी ही है।
दोनों परिवार ख़ुश थे। श्यामली ने भी कद्दू के लिए हाँ कह दी थी। हमारे समाज में उम्र रहते लड़कियों की हाँ को कोई नहीं पूछता और जब बात बत्तीस साल की लड़की की हो रही हो तब कौन पूछेगा। बेशक़ वह कामकाजी ही क्यों न हो। लड़के की हाँ को ही लड़की की हाँ समझ लिया जाता है और ज़्यादातर लड़कियां भी इस हाँ को स्वीकार कर ख़ुश हो जाती हैं।
दिन की व्यस्तता से सभी लोग थक चुके थे। रात का खाना ख़ाकर सभी अपने-अपने कमरे में सोने के लिए जा चुके थे। विमला श्यामली के कमरे में थी।
“श्यामली तू खुश तो हैं न।”
“हाँ , माँ मैं खुश हूँ, मुझे क्या होना है।”
“मेरे कहने का मतलब था लड़का कैसा लगा तुझे।”
“ठीक था, जैसे हर कोई पहली मुलाक़ात पर होता है।”
“उम्र भर का सबंध है बेटा, तेरी ख़ुशी भी ज़रूरी है।” विमला ने श्यामली का सिर सहलाते हुए कहा।
“हमारे समाज में शादी ज़रूरी है माँ, ख़ुश रहना इतना ज़रूरी नहीं है।” श्यामली माँ की गोद में सिर रखकर लेट गई थी। इस उम्र तक पहुंचते श्यामली भी रोज़ के देखने- दिखाने से थक चुकी थी । कुंडली न मिलने से पूरे घर में तनाव का वातावरण हो जाता था। आज सब ख़ुश थे और हर मध्यवर्गीय घर की बेटी की तरह श्यामली भी अपने परिवार की ख़ुशी में ख़ुश थी। बातें करते हुए माँ बेटी गहरी नींद में थी। विमला देवी तो जैसे कितने दिनों बाद सुकून की नींद सोयी हो। रविवार की सुबह खिल रही थी पर सब लोग सोये हुए थे। प्रमोद लाल अपने समयानुसार उठ गए थे । हर रविवार को चाय औऱ ब्रेकफस्ट बनाने का काम प्रमोद लाल और मोक्ष का होता।
“उठो श्रीमती जी, चाय पीओ।” प्रमोद लाल ने श्यामली के कमरे में आते ही कहा। विमला देवी पति की आवाज़ से उठकर बैठ गई। श्यामली लेटी हुई आंखे कभी खोलती तो कभी बन्द करती, पर सुबह की चाय का लालच सोने भी नहीं दे रहा था। आख़िरकार उठकर बैठ गई और चाय पीने लगी। मोक्ष और रोमा भी श्यामली के कमरे में ही चाय लेकर आ गए । मोक्ष कभी श्यामली को आदि के नाम से चिढ़ाता तो कभी श्यामली के मन की जानने की कोशिश करता। कमरे में परिवार की हँसी गूंज रही थी। प्रमोद लाल के मोबाइल ने सब शांत कर दिया। जेब से फ़ोन निकाल कर देखा तो श्यामली के ससुराल वालों का फ़ोन था। प्रमोद लाल फ़ोन पर बात कर रहे थे और सारा परिवार पास बैठा सुन रहा था। बातों से अंदाज़ा तो लग गया था कि मिलने की बात हो रही है। “लड़का मिलना चाहता है श्यामली को,” प्रमोद लाल ने फ़ोन रखते हुए कहा। सारा परिवार चुप था। मिलने के लिए बाग-ए-बाहू को चुना गया था। श्यामली को भी इस जगह जाना बहुत पसन्द था।
बाहू का किला जम्मू की सबसे पुरानी इमारत है। यह शहर के मध्य भाग से पांच किलोमीटर दूर तवी नदी के बांये किनारे स्थित है। ख़ूबसूरत झरनों, हरे-भरे बाग तथा फूलों से भरे हुए इस किले की शोभा देखते ही बनती है। इस किले को महाकाली के मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर किले के अंदर है तथा भावे वाली माता के नाम से प्रसिद्ध है।
“अच्छा है न मिलने को बोल रहा है। एक-दूसरे को जानने का मौक़ा मिलेगा,” सबको चुप देख मोक्ष ने माहौल को सामान्य करते हुए कहा। सब मोक्ष की हाँ में हाँ मिलाते हुए अपने – अपने काम में व्यस्त होने लगे। दो बज रहे थे श्यामली तैयार हो रही थी। दोनों परिवारों की रजामंदी से श्यामली को आदि का नंबर और आदि को श्यामली का मोबाइल नंबर दे दिया गया था।
पूरे चार बजकर पंद्रह मिनट पर श्यामली बाहू फ़ोर्ट के बाहर पहुंच गयी। आदि बाहर ही उसका इंतज़ार कर रहा था। आदि की नज़र बार-बार उस पर ठहर रही थी। पीले रंग के सलवार सूट के साथ खुले बालों में श्यामली ख़ूबसूरत लग रही थी। कुछ पल के लिए आदि को श्यामली के आगे बाहू फ़ोर्ट की ख़ूबसूरती फ़ीकी लगी। दोनों बाग़ के बीच में लगी बेंच पर बैठ गए। कितने लोग बाग़ की ख़ूबसूरती का आनंद ले रहे थे। कितने प्रेमी युगल सिर जोड़कर बैठे हुए थे। श्यामली रंग-बिरंगे फूलों में खोई हुई थी।
“मैं आपको पसन्द तो हूँ न।” आदि ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा। श्यामली ने ‘हाँ’ में सिर को हिला दिया और फ़िर से फूलों की कतारों में खो गई।
“कुछ बोलेंगी नहीं आप?”
“ये जगह मुझे बहुत पसंद है।”
“जानता हूँ, ख़ूबसूरत लोगों को ख़ूबसूरत जगह ही पसन्द होती है।”
“कभी जम्मू के बाहर गई हैं आप।”
“नहीं।”
“शादी के बाद कहाँ घूमने जाना चाहेंगी।” श्यामली ने सुनकर अनसुना कर दिया। बिल्कुल उन लड़कियों की तरह जो ऐसे सवालों के जवाब देने में संकोच करती हैं।
“आप बहुत आकर्षक है। कॉलेज में कोई…।” बोलते-बोलते आदि चुप हो गया।
“आप पूछिए जो भी पूछना हैं। संकोच न करें।” श्यामली ने आदि को चुप होते देख कहा।
“क्या आप अभी तक वर्जिन हैं।” आदि के मुँह से एकदम निकल गया। जैसे इसी सवाल के लिए वह श्यामली से मिलने को व्याकुल था।
“सॉरी, मेरे कहने का मतलब आप ग़लत न समझे।”
“नहीं, आपको हक़ है पूछने का।” श्यामली ने शर्म, हया, संकोच, असहजता को एक किनारे पर रख कर आदि की आंखों में आंखें डाल कर कहा।
“नहीं श्यामली मेरा ऐसा मतलब नहीं था।”
“आपको क्या लगता है? मैं वर्जिन हूँ या नहीं?” श्यामली ने आदि को टोकते हुए पूछा।
“हम दोनों जिंदगी शुरू कर रहे हैं, इसलिए एक-दूसरे के बारे में सब पता होना चाहिए।”
“और जिंदगी शुरू करने से पहले मुझे मेरी वर्जनिटी का सर्टिफिकेट भी आपको देना चाहिए, क्योंकि मैं एक लड़की हूँ?” श्यामली ने सहजता से कटाक्ष करते हुए कहा।
“श्यामली मूड मत ऑफ़ करो। मैं तुम्हारा मन नहीं दुखाना चाहता था। सिर्फ़ पास्ट को जानना चाहता था।”
“पास्ट तो पास्ट है और अग़र मेरा कोई पास्ट होगा भी तो मैं क्यों बताऊं किसी को भी। आपके बारे में मैं कितना जानती हूँ अभी।”
“मतलब तुम्हारा कोई पास्ट था।”
“मुझे इस टॉपिक पर कोई बात नहीं करनी।” बोलते हुए श्यामली खड़ी हो गई।
बाहू के सब फूल मुरझा गये, हरी घास मानो गर्मी की लू से जल गई हो।
“श्यामली…।” श्यामली ने कानों में पड़ती आवाज़ को पलट कर देखा तो साईमा थी। साईमा अपने दोस्त के परिवार को बाहू फ़ोर्ट दिखाने आई थी।
“अरे तुम यहाँ पर।”
“हाँ… सोचा आज तुम्हारा पीछा किया जाए।” बात करते हुए दोनों सहेलियां हँस पड़ी।
“ये तेजस और तेजस के माता-पिता।” तेजस ने श्यामली को अपलक देखते ही ‘हेलो’ कहा और श्यामली ने भी सिर को झुकाकर इस नमस्ते का बड़ी नज़ाक़त के साथ उत्तर दिया।
“इनसे मिलो साइमा मिस्टर आदि।” आदि ने अनमने ढंग से हेलो कहा। जब बात किसी व्यक्ति विशेष से करने की चाह हो तो और किसी में कोई रुचि कैसे ले सकता है।
कुछ देर की बातचीत के बाद साईंमा अपने मेहमानों के साथ चली गयी ।
सबके चले जाने के बाद आदि सामान्य था, पर श्यामली के मन में आदि का एक ही सवाल था, “क्या आप वर्जिन हैं?”
दिन ढल चुका था। रंग-बिरंगी लाइटें बाहू फ़ोर्ट को और भी ज़्यादा ख़ूबसूरत बना रही थी। रात की रोशनी में फव्वारें बाग़ की ख़ूबसूरती को चार चांद लगा रहे थे।
“चलो किसी रेस्टोरेंट में कॉफ़ी पीते हैं।” आदि ने श्यामली का हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा।
“नहीं…, बहुत देर हो चुकी है।” मुझे घर जाना है अब। श्यामली अपने हाथ पीछे करते हुए बोली।
“मैं छोड़ देता हूँ घर आपको।”
“सॉरी, मुझसे ऐसा कोई सवाल नहीं पूछना चाहिए था आपको।” श्यामली चुप थी। मन में सिर्फ एक ही सवाल था। वर्जिन होना क्या है और औरत का शादी से पहले वर्जिन होना इतना ज़रूरी क्यों हैं? आदमी हर पक्ष से दूध का धुला क्यों है? कुछ देर में श्यामली का घर आ गया था।
“सॉरी।” श्यामली को घर जाते देख आदि ने फ़िर से माफ़ी मांगी ।
“कुछ बातों के लिए सॉरी शब्द नहीं बना है अग़र आज मैंनें आपकी माफ़ी स्वीकार कर ली तो सारी उम्र मैं आपसे माफ़ी मांगती रहूंगी।”
आदि श्यामली का इशारा समझ गया था। उसने शादी के लिए इनकार कर दिया था । कदमों की गति तीव्र हो गयी थी। सैंडल की टक-टक की आवाज़ आदि के कानों पर प्रहार कर रही थी।
उन कदमों की गति बहुत गतिशील होती है जिनका जिंदगी में लौटना नामुमकिन होता है।
श्यामली जा चुकी थी और आदि एक सवाल में उलझ गया था।
