वर्तमान का दंश / सुषमा गुप्ता
"और हीरो! क्या चल रहा है लाइफ में?"
कईं सालों बाद मुम्बई से दिल्ली अपने छोटे भाई के घर आए रामनाथ जी ने अपने सत्रह साल के भतीजे से पूछा।
"कुछ खास नहीं ताऊजी, बस आई-आई-टी की तैयारी कर रहा हूँ।"
"अरे पढ़ाई- वढ़ाई तो चलती रहती है। तू तो ये बता तेरी गर्लफ्रैंड्स कितनी है?"
उन्होंने हँसते हुए पूछा
"अरे क्या ताऊजी, आप भी न। मैं नहीं पड़ता इन चक्करों में।"
"हट! ज़िन्दगी खराब है तेरी फिर। अबे जवानी में ये सब नहीं करेगा तो बुढ़ापे में करेगा क्या। पूछ अपने बाप से स्कूल काॅलेज में कैसे लड़कियों की लाइन लगती थी मेरे पीछे। साले घर की इज्जत का तो ख्याल रख।"
रामनाथ जी ज़ोर से हँसते हुए बोले।
"मुझे है न ख्याल घर की इज्जत का ताऊजी।"
बाहर से आती मिताली बोली।
"क्या मतलब?"
"मतलब ये, मेरे है न खूब सारे बाॅय फ्रैंड़स। आप चिंता मत करो। मैं हूँ न खानदान की परम्परा निभाने को।"
मिताली दाँत दिखाती हुई चहकी।
रामनाथ जी की हँसी में ब्रेक लग गया और चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा।