वर्षा / गोवर्धन यादव
रात्रि के तीसरे पहर तक घनघोर बारिश होती रही थी और वह अपनी खिडकी में खडी होकर नजारा देखती रही थी,
रोज की तरह उसने अपना बिस्तर छः बजे छोड दिया था और अब घूमने निकल गई थी, घर से थोडी दूर पर एक विशाल पार्क है, जिसके चार चक्कर लगाना उसकी दिनचर्या में आ गया था, पार्क में घुसते ही उसने गहरी शीतलता का अनुभव किया था, चार महिने की भीषण गर्मी से झुलसते पेडॊं और धरती ने जी भर के अपने आपको भिगोया था उस रात, पेडॊ पर ख़ूब फ़ूल खिले थे और रंग-बिरंगी तितलियों के झुण्ड उन पर मंडरा रहे थे, भीगा-भीगा सुहाना मौसम देखकर वह भी कोई सुहाना-सा गीत गुनगुनाने लगी थी,
फ़ुर्ती से अपने क़दम बढ़ाते हुए उसने पार्क के दो चक्कर लगा लिए थे और जैसे ही कुछ थोडा आगे बढी, तभी उसने किसी नन्हे बालक के सिसकने की आवाज़ सुनी, बढते क़दम वहीं रुक गए थे और अब वह एकाग्रचित्त होकर उस स्थान का शुक्ष्मता से निरक्षण करने लगी थी, उसकी नजर, कपडॊं में लिपटॆ, एक नवजात शिशु पर पडी, उसे देखते ही उसने मन ही मन अनुमान लगा लिया था कि किसी कुंवारी लडकी ने बदनामी के डर के चलते उसे यहाँ फ़िंकवा दिया होगा, देर तक खडी वह यह सोचती रही कि उसे उठाए अथवा नहीं? कभी मन होता कि चलकर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा देना चाहिए, तरह-तरह के ख़्याल उसके मन में उमडते-घुमडते रहे, अन्त में उसने निर्णय लिया कि पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट लिखवा दिया जाना चाहिए, उसने अपने क़दम बढ़ाए ही थे कि वह शिशु रुदन करने लगा, मन में बरसों से सोई ममता जाग उठी और उसने अब बिना किसी भय के, लपक कर उस शिशु को उठा लिया, उसे लेकर वह अब सीधे बाल कल्याण केन्द्र की ओर बढ चली थी, शिशु को गोद में लेकर चलते हुए उसने अब यह निर्णय ले लिया था कि वह वहाँ जाकर सारी फ़ार्मेल्टी पूरी करेगी और उसे गोद ले लेगी, ईश्वर की असीम कृपा से उसके पास किसी भौतिक चीजों की कमी नहीं है, अच्छे खासे पद पर वह और उसके पति पदस्थ हैं, कमी केवल इस बात की है कि उनके कोई संतान नहीं है, उसने अपने पति से कई बार कहा भी था कि उन्हें अब किसी को गोद ले लेना चाहिए, लेकिन व्यस्तता के चलते वे ऐसा नहीं कर पाए थे,
सारी औपचारिकताओं को पूरा कर, वह उस नन्ही बालिका को अपने घर ले आयी थी।