वसंत बीतने से पहले / ख़लील जिब्रान / बलराम अग्रवाल

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वसंत में एक शाख ने दूसरी से कहा, "बड़ा ही बरबाद किस्म का दिन है।"

दूसरी ने कहा, "वाकई, बहुत बरबाद दिन है।"

उसी पल, एक चिड़िया पहली शाख पर आ चहकी और एक दूसरी शाख पर।

पहली चिड़िया ने चहककर कहा, "मेरा साथी मुझे छोड़ गया है।"

दूसरी चिड़िया चिल्लाई, "मेरी भी साथिन भाग गई है; और वह लौटेगी भी नहीं। मेरी बला से।"

दोनों ने चहकना और दोष मढ़ना शुरू कर दिया। फिर वे परस्पर मारपीट करने लगीं। उनके शोर से जंगल भर गया।

उसी समय दो अन्य चिड़ियाँ आकाश में उड़ती आईं। वे आराम से इन झगड़ती चिड़ियों के पास बैठ गईं। उनके आने से शान्ति छा गई। झगड़ा रुक गया।

फिर चारों दो जोड़ों के रूप में वहाँ से उड़ गईं।

तब पहली शाख ने दूसरी से कहा, "आवाजों का कैसा जादूभरा मेल था।"

दूसरी ने कहा, "इसे तुम जो चाहो कहो। यह शान्तिपूर्ण और व्यापक दोनों है। अगर ऊपर वाला चाहे तो मुझे लगता है कि नीचे की दुनिया के लोग भी शान्ति चाहने लगते हैं। क्या तुम लहराकर मेरे नजदीक नहीं आ सकती?"

पहली शाख ने कहा, "हाँ-हाँ, शान्ति के लिए, इससे पहले कि वसंत बीत जाए।"

और हवा का एक तेज झौंका आते ही वह दूसरी शाख से जा मिली।