वसूली करना अपुन से सीखो / अर्चना चतुर्वेदी

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हमारे देशवासियों की आदतें और सोच सारी दुनिया से निराली है। जैसे पूरे पर्वत पर संजीवनी बूटी चमकती थी ऐसे हम पूरी दुनिया में अलग ही चमकते हैं। भले ही हमारे देश में जाति-पाँति का भेद हो पर आदतों में कोई भेदभाव नहीं है, उनमें राष्ट्रीयता और देशभक्ति खूब टपकती है। यानी किसी भी भारतीय को विश्व के किसी भी कोने पर भेज दो अपनी आदतों की वजह से वो अलग ही पहचाना जाएगा।

मसलन हम भारतीय बड़े ही पैसा वसूल टाइप होते हैं, दस रुपये की वस्तु के दस गुने दाम वसूल लेते हैं। भई हम विदेशियों की तरह फिजूलखर्च तो हैं नहीं जो इस्तेमाल करने के बाद वस्तु फेंक दें। हम पानी की और कोल्डड्रिंक की बोतल फेंकते नहीं, वो तो हमारे फ्रिज की शोभा बनती हैं। अचार की बोतलें, चाय के डब्बे या और कोई ऐसा डब्बा या बोतल जो सामान के साथ आता है वह वर्षों वर्ष हमारी रसोई की शान बनता है।

हम तो टूथपेस्ट और शेविंग क्रीम जैसी ट्यूब को नीचे से काट कर इस्तेमाल कर डालते हैं, क्योंकि एक बूँद भी फेंकना हमे गवारा नहीं और तो और अब तो हमारे यहाँ कुछ कंपनियों ने स्कीजर यानि ट्यूब निचोड़ने वाला तक बना डाला है। ये तो कुछ भी नहीं, हम तो टूथब्रश का इस्तेमाल भी दिल से करते हैं यानि पहले दाँत साफ करते हैं फिर गहने फिर बर्तन और उसके बाद भी बचे ब्रश वाला हिस्सा काटकर उसका नाड़ेपानी बना डालते हैं यानी पजामे में नाड़ा डालने के काम में लाते हैं।

हम वस्तुओं से अपनी वफादारी पूरे तौर पर निभाते हैं और उसकी अंतिम साँस तक उसका इस्तेमाल करते हैं, जैसे हम पहले नए कपड़े बाहर आने जाने में पहनते हैं, कुछ पुराने होने पर घर पर पहनेगें और उसके बाद वो कपड़ा डस्टर या पोछा बन जाएगा। हममें से कुछ लोग तो इतने महान होते हैं कि पुराने कपड़ों को रसोई में इस्तेमाल कर डालते हैं।

एक बार मेरी एक अभिन्न मित्र अपने पति के दोस्त के घर पर डिनर के लिए गई, जब डिनर लगने का समय हुआ तो वो उनकी पत्नी के साथ रसोई में चली गई, वहाँ उसने जो देखा उससे उसका दिल खराब हो गया और वो अपने पति से वापस चलने की जिद करने लगी। तबीयत खराब होने का बहाना करने लगी। उसकी जिद के सामने, वो बेचारे बिना डिनर किए लौटने पर मजबूर हो गए, पर रास्ते में उस पर बहुत नाराज हुए और बोले "क्या पागलपन है तुमने इतना अजीब व्यवहार क्यों किया? वो बोली, मैं क्या करती, आपके दोस्त की पत्नी अपने पति के कच्छे से प्लेट साफ कर रही थी। उसकी बात पूरी होते ही उसके पति एकदम शांत हो गए और हँसते हुए बोले, हे भगवान अच्छा हुआ, तुमने बचा लिया। वो ही क्यों, यहाँ बहुत से ऐसे परिवार मिल जाएँगे जो बिना सोचे समझे बस इस्तेमाल की नीयत से इस्तेमाल कर डालते हैं।

अजी हमारे यहाँ के लोग तो जहाँ पैसा खर्च करें उसे तो वसूलते ही हैं, जहाँ खर्चा ना करें उसे तो और ज्यादा वसूलते हैं यानी यदि अपने पैसे खर्च करके बाहर खाने जाए तो सोच समझ कर मँगवाएँगे, बचेगा तो पैक करवा लेंगे या ठूँस लेंगे पर यदि शादी या समारोह में जाएँगे तो कोई भी चीज बिना चखे नहीं छोड़ेंगे, नहीं पसंद आएगी तो भरी प्लेट डस्टबिन के हवाले कर देंगे।

हमें कौन सा पैसा देना है फ्री ही तो है। फ्री शब्द तो हमें वैसे ही बहुत लुभाता है बस मिलना चाहिए। यदि किसी सामान के साथ कुछ फ्री मिले तो हम वो सामान भी खरीद सकते हैं जिसकी हमें जरूरत ही नहीं। बस हमें पता लगना चाहिए कि कही फ्री कुछ मिल रहा है, फिर तो हम टूट पड़ेंगे। अजी हम कोई ऐसे वैसे थोड़े हैं हम वसूली चंद जो ठहरे।

होटल में खाना खाने जाते हैं तो सौंफ पेपर नैपकिन में भरना, हम कतई नहीं भूलते। भई क्यों भूले? पैसे दिए हैं। हमारा फर्ज बनता है वसूलने का। हम तो शताब्दी और राजधानी में सफर करते हैं तो वहाँ से चाय, चीनी तक के पाउच समेट लाते हैं और क्यों न लाएँ जी? इत्ती महँगी टिकट जो खरीदी है, पईसा तो पूरा वसूलेंगे।

हमारे यहाँ लोगों की एक और आदत होती है जो हमें सारी दुनिया से भिन्न बनाती है, वो ये की हम हर चीज को अपना समझते है, हर जगह पर अपना अधिकार मानते है। पार्क में पिकनिक मनाने जाते हैं तो खा पीकर सारा कचरा इधर उधर बिखरते हैं, चाहे वहाँ कूड़ेदान रखा हो।

हम तो गाड़ी में चलते हुए कोल्डड्रिंक की बोतल और चिप्स के खाली पैकिट खिड़की से बाहर सड़क पर भी फेंक सकते हैं। रास्ते में कही भी पान की पीक थूकेंगे, अरे भई! आपको क्या परेशानी है? हमारा देश, हमारा शहर, जहाँ मर्जी थूकें, जहाँ मर्जी मूतें। हमें क्या? यदि सरकार ने जगह जगह जन सुविधाएँ बना दी हैं, खामखाँ में इस काम के लिए पैसे दें, जब पूरा शहर हमारा है।

हमें तो सिर्फ इस बात से मतलब है कि हमारा घर साफ रहना चाहिए, फिर चाहे कूड़ा हम घर के बाहर ही क्यों ना फेंके। हम तो अपनी बालकनी से सड़क पर या पार्क में भी कूड़ा फेंक सकते हैं। मौका लगे और पड़ोसन लड़ाकी ना हो तो हम पड़ोसन के घर को भी कूड़ेदान बना डालें। सारे कूड़े की लदान उसी के घर में कर दें। अरे भई! अपना घर तो साफ है ना!

पर एक बात आपको बताए देते हैं, वो ये कि हममें तमीज बहुत है, किसी अन्य देश में जाते हैं तो हम ऐसा कोई काम नहीं करते। सारे नियमों का पालन करते हैं पर ये हमारा देश है। हमें अपने देश को कूड़ाघर बनाने का अधिकार है। हमें भला कौन रोक सकता है?