वहीदा रहमान: गरिमा और खामोशी / जयप्रकाश चौकसे

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वहीदा रहमान: गरिमा और खामोशी
प्रकाशन तिथि : 05 फरवरी 2020


मध्य प्रदेश की सरकार में संस्कृति मंत्री डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ ने वहीदा रहमान को किशोर कुमार पुरस्कार मुंबई जाकर उनके निवास स्थान पर दिया। उम्रदराज वहीदा रहमान खंडवा आने में असमर्थ थीं। इस बात का विरोध किया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि केवल युवा और सेहतमंद लोगों को पुरस्कार से नवाजा जाए। क्या उम्रदराज होना और अस्वस्थ होना कानूनी अपराध है? एक अमेरिकन फिल्म का नाम था ‘इट्स नो कंट्री फॉर ओल्डमैन’। हमारे सवैतनिक हुड़दंगी भारत को गैर भारतीय करने पर आमादा हैं। उन्हें सरकारी संरक्षण प्राप्त है। इस निठल्लेपन के दौर में आइफा पुरस्कार समारोह के इंदौर में आयोजन पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं। इसे भी अनदेखा किया जा रहा है कि बाजार मंदी के दौर से गुजर रहा है और इस तरह के आयोजन उसे मंदी से कुछ हद तक मुक्त करा सकते हैं। पर्यटन को भी लाभ मिलेगा। आसपास के शहरों और कस्बों से लोग सितारों को देखने आएंगे। गुरु दत्त की फिल्मों के हैदराबाद वितरक ने उनकी मुलाकात वहीदा रहमान से कराई थी। उस फिल्म में वहीदा रहमान ने चरित्र भूमिका अभिनीत की थी। गुरु दत्त की ‘सीआईडी’ में वहीदा रहमान ने छोटी सी भूमिका अभिनीत की। उन पर फिल्माया गीत-‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना..’ अत्यंत लोकप्रिय हुआ। ‘प्यासा’ के लिए उनका स्क्रीन टेस्ट लिया गया। जिसे गुरु दत्त की टीम ने पसंद नहीं किया। गुरु दत्त ने कोलकाता जाकर दूसरी बार स्क्रीन टेस्ट लिया जिसे सभी ने पसंद किया। ‘प्यासा’ में वहीदा रहमान पात्र गुलाबो बहुत पसंद किया गया। ‘कागज के फूल’ की असफलता के बाद गुरु दत्त ने ‘चौदहवीं का चांद’ बनाई जो असफल रही। उनकी अगली फिल्म ‘साहब बीवी और गुलाम’ में मीना कुमारी ने केंद्रीय पात्र अभिनीत किया और वहीदा रहमान ने चरित्र भूमिका अभिनीत की। फिल्मकार विजय आनंद की ‘काला बाजार’ में वहीदा रहमान ने काम किया, परंतु ‘गाइड’ में उनके अभिनय को सर्वश्रेष्ठ माना गया। एक साक्षात्कार में वहीदा रहमान ने विजय आनंद को अपनी फिल्म का फिल्मकार माना। वहीदा रहमान ने उम्रदराज होने पर चरित्र भूमिकाएं कीं। यशराज चोपड़ा की ‘लम्हे’ में उन्होंने दाईजा की भूमिका की। ‘रंग दे बसंती’ और ‘दिल्ली 6’ में भी उन्होंने अपना योगदान दिया।

मीडिया ने गुरु दत्त की आत्महत्या के लिए उन पर संदेह व्यक्त किया, परंतु गुरु दत्त अपनी पत्नी गीता दत्त की शराबनोशी से व्यथित थे। उनकी आत्महत्या के कारण का सूक्ष्म दार्शनिक संकेत तो ‘कागज के फूल’ के एक गीत में पहले ही प्रस्तुत हो चुका था- ‘ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है।’ सारी सफलताएं और संपत्ति मनुष्य के कोई काम नहीं आती। आध्यात्मिकता के स्पर्श से ही भौतिकवाद के दंश से बचा जा सकता है। वहीदा ने लंबी पारी खेली और उनका व्यवहार कभी संदिग्ध नहीं रहा। उन्होंने शैलेंद्र की ‘तीसरी कसम’ में अभिनय के लिए कम मुआवजा लिया। ‘नौटंकी’ की हीराबाई का पात्र उनके लिए एक चुनौती की तरह था, परंतु ‘गाइड’ की रोजी जैसा साहसी पात्र कभी प्रस्तुत नहीं किया गया। रोजी अपनी व्यक्तिगत पहचान अपनी नृत्य कला द्वारा प्राप्त करना चाहती है। माता और पति ने उसे स्वयं की खोज में कोई मदद नहीं की। इतना ही नहीं वरन रोड़े भी लगाए। राजू गाइड उसकी विचार प्रक्रिया में कैटेलिटिक एजेंट की तरह आया। रोजी सफलता के समय सामान्य बनी रही, परंतु उसकी सफलता का नशा राजू गाइड के सिर पर सवार हो गया। वह इसी नशे का शिकार हुआ। रोजी के पात्र को शैलेंद्र ने बखूबी अभिव्यक्त किया। ‘तोड़कर बंधन बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है’।

वहीदा रहमान फिल्म उद्योग की काजल की कोठरी से बेदाग निकलीं जो उनके व्यक्तित्व में ठहराव और वैचारिक गहराई का प्रतीक है। वे कभी किसी भी विवाद का हिस्सा नहीं रहीं। उन्होंने कभी अभद्र शरीर प्रदर्शन नहीं किया। उनके ‘खामोशी’ में अभिनीत पात्र को भी ‘गाइड’ की रोजी के समान यादगार माना जाता है। ‘खामोशी’ में वहीदा रहमान नर्स की भूमिका में प्रस्तुत हुईं। वह अपनी सेवा टहल से दिमाग में उत्पन्न केमिकल लोचे के रोगियों की सेवा करती हैं। इसी प्रक्रिया में एक दिन वह अपना दिमागी संतुलन खो देती हैं। अपने यथार्थ जीवन में वहीदा रहमान ने अपनी गरिमा अक्षुण्ण बनाए रखी। वे जरूरत से अधिक एक भी शब्द कभी नहीं बोलतीं। उनकी जीवन यात्रा रस्सी पर चलने की तरह रही। कभी उनके पैर न डगमगाए और न ही कभी पलक झपकी। मध्य प्रदेश सरकार बधाई की पात्र है कि उनकी मंत्री सुश्री साधौ ने मुंबई जाकर वहीदा को पुरस्कार दिया।