वहीदा रहमान की खामोशी और किताब / जयप्रकाश चौकसे

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वहीदा रहमान की खामोशी और किताब
प्रकाशन तिथि : 11 नवम्बर 2013


मुन्नी नसरीन लंदन की रहने वाली हैं और भारतीय सिनेमा पर अपने लंबे साक्षात्कार के आधार कुछ किताबें लिख चुकी हैं, साथ ही 'आवारा' और 'मुगले आजम' की पटकथाएं भी पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर चुकी हैं। सुना है कि अब वहीदा रहमान से लिए गए साक्षात्कार के आधार पर किताब लिखने जा रही हैं। इस किताब में वहीदा रहमान के जीवन या अवचेतन में पैंठी गहरी बातें उजागर होना संभव नही है क्योंकि वहीदा रहमान अपने निजित्व की रक्षा हमेशा बड़ी शिद्दत से करती रही हैं। मूलत: वे गरिमामय खामोशी का निर्वाह करने वाली महिला रही हैं। अपने व्यक्तिगत जीवन की गोपनीयता वे ग्रेटा गारवो और सुचित्रा सेन की तरह करती रही हैं।

अपने शिखर दिनों में भी उन्होंने कभी लंबे साक्षात्कार नहीं दिए और तमाम विवादों में भी वे खामोश ही रही हैं। वहीदा रहमान ने तो 'गाइड' में कंधे दिखाने वाली पोषाक के नीचे एक झीना कपड़ा पहने रखा। जिस महिला सितारे ने कभी अपने शरीर का प्रदर्शन नही किया, वह भला अपना मन कैसे उजागर करेगी। गुरुदत्त ने उन्हें हैदराबाद में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में नृत्य करते देखा था और अपनी निर्माणाधीन सीआईडी में उन्होंने उसे अपराध सरगना की मन बहलाने वाली की भूमिका दी जिसमें गीत 'कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना' कमोबेश उनके व्यवहार का परिचायक भी रहा है। 'प्यासा' की शूटिंग के पहले दौर के बाद पूरा यूनिट इस नई नायिका से निराश था तो गुरुदत्त ने विश्वास नही खोया तथा कलकत्ता में दूसरा दौर किया जिसमें साहिर-सचिन दा का गीत 'जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैंने कही, पर बात हो ही गई' शूट हुआ और सचमुच बात बन गई। 'प्यासा' में वे बहुत सराही गईं। गुरुदत्त की 'कागज के फूल' की असफलता से जन्मे लाखों के घाटे को पूरा किया 'चौदहवी का चांद' ने और वहीदा का सिक्का इतना जमा कि महान दिलीप कुमार ने भी उनके साथ कुछ फिल्में कीं।

गुरुदत्त और उनकी पत्नी गीतादत्त अत्यंत प्रतिभाशाली लोग थे और अपने विश्वास व विचारों में अडिग थे, अत: उनमें खटपट चलती रहती थी, यहां तक कि गीतादत्त को नायिका लेकर बनाई जाने वाली 'गौरी' को कुछ रीलों के बनने के बाद गुरुदत्त ने निरस्त कर दिया। सच्चाई यह है कि वहीदा और गुरुदत्त के बीच आपसी समझ और स्नेह का एक अनाम रिश्ता था, या कहें कि उनके बीच 'सखा भाव' था और गुरुदत्त की आत्महत्या के लिए वहीदा की तथाकथित 'बेवफाई' की बात सर्वथा आधारहीन है। गुरुदत्त तो आत्महत्या का संकेत 'प्यासा' के गीत में ही दे चुके थे कि 'अगर यह दुनिया मिल भी जाए तो क्या है'। बहरहाल 'काला बाजार' के समय से ही विजय आनंद वहीदा के प्रति आकर्षित थे और उन्होंने 'गाइड' में उसे उसके सुंदरतम रूप में प्रस्तुत किया परन्तु इस रिश्ते की मंजिल शादी नहीं थी।

वहीदा रहमान ने 'खामोशी' नामक फिल्म में एक ऐसी नर्स की भूमिका की है जो अपने स्नेह और सेवा से दिमागी खलल वाले रोगियों को पूरी तरह रोग मुक्त करती थीं परन्तु बार-बार चिकित्सा की प्रक्रिया के तहत प्यार करते-करते वह स्वंय एक अनजाने कैमिकल लोचे का शिकार हो जाती है। वहीदा के चरित्र में खामोशी ही उसका मूल स्वर है और अपने जीवन की अंतरंगता वे कभी बयां नही करेंगी। वे सदैव सृजनशील लोगों के अहंकार और अवचेतन के रोगों की अनंत नर्स ही रही हैं।