वहीदा रहमान पर नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक / जयप्रकाश चौकसे

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वहीदा रहमान पर नसरीन मुन्नी कबीर की पुस्तक
प्रकाशन तिथि :13 जनवरी 2016


नसरीन मुन्नी कबीर ने अनेक सितारों से लंबी बातचीत की है और इसके आधार पर किताबें प्रकाशित की हैं। नसरीन लंदन में रहती हैं। उनकी किताबों की शृंखला की नई कड़ी है वहीदा रहमान से उनकी तीन माह में की गई अनेक मुलाकातें। वहीदा रहमान अपने माता-पिता की चौथी पुत्री हैं और उनका कोई भाई नहीं जन्मा। उनके पिता की मृत्यु के समय उनकी उम्र कम थी। उन दिनों उन्होंने शास्त्रीय नृत्य का अभ्यास किया और किसी नृत्य को देखकर उन्हें एक दक्षिण भारतीय फिल्म में नृत्य गीत प्रस्तुत करने का अवसर मिला और इस सुपरहिट फिल्म का सारा श्रेय उनके उस एक नृत्य को मिला। कुछ और फिल्मों में काम करने के बाद गुरुदत्त ने उन्हें अपनी कंपनी में तीन वर्ष के लिए अनुबंधित किया। उन्होंने राज खोसला निर्देशित निर्माता गुरुदत्त की 'सीआईडी' और 'प्यासा' की शूटिंग लगभग साथ की तथा इस तरह की दो विपरीत भूमिकाओं को एक साथ निभाते हुए हिंदी फिल्मों में अभिनय यात्रा प्रारंभ की। उस कच्ची उम्र में माता-पिता द्वारा दी गई तरबियत के कारण उनकी जीवन शैली में तर्कप्रधानता आई। 'सीआईडी' में ही एक पारदर्शक ब्लाउज पहनने से उन्होंने इनकार किया तो राज खोसला भड़क गए कि एक नई लड़की की यह हिम्मत कि वह उनका कहा नहीं माने। गुरुदत्त ने आकर समझाने की चेष्टा की तो वहीदा इस शर्त पर तैयार हुईं कि वे पारदर्शक ब्लाउज पहनेंगी परंतु उस पर एक दुपट्‌टा भी पहनेंगी ताकि अंग प्रदर्शन नहीं हो सके।

इसी तरह राज खोसला निर्देशित 'सोलहवां सावन' में प्रेमी घर से भगाई प्रेमिका के गहने लेकर चंपत हो जाता है तो वह नदी में डूबने जाती है, जहां नायक उसे बचा लेता है और उनके गीले कपड़े सूखने तक उन्हें अन्य किसी के कपड़े पहनना है। राज खोसला ने कुछ साहसी पोशाक बनवाई थी, जिसे वहीदा ने नहीं स्वीकार किया। देवआनंद समझाइश के लिए आए तो वहीदा ने कहा कि इस दृश्य में नायक का संवाद है 'तुम बड़ी लाजवंती दिख रही हो।' अब बताइए इस संवाद के समय तन उघाड़ने वाले कपड़े कैसे पहने जा सकते है। सारांश यह कि वहीदा ने ताउम्र गरिमामय शालीनता का निर्वाह किया और अपने तर्क के मार्ग से नहीं हटीं। अत: यह प्रचारित धारणा कि फिल्म उद्योग में सब करना पड़ता है, सर्वथा निराधार है। आपके भीतर नहीं कहने की कूवत होनी चाहिए। जिन सितारों ने अंग प्रदर्शन किया है, यह उनकी अपनी इच्छा थी और दिखाने मात्र के लिए कभी-कभी विरोध किया है। इसी तर्ज पर राजनीति में यह झूठ है कि लोग अपने दल की नीति के कारण खामोश रहते हैं या गलतबयानी करते है। दरअसल, उनके पास विवेक ही नहीं है और वे सोचना बंद करके ही दलगत राजनीति में उगते सूर्य को नमन करते हैं। हर समझौतावादी महज बहानेबाजी करता है। इस किताब में वहीदा से पूछा गया कि क्या वे गुरुदत्त से प्यार करती थीं। वहीदा ने कहा कि आपको मेरी और गुरुदत्त की फिल्मों के बारे में बातें करनी चाहिए। व्यक्तिगत रिश्तों के बारे में क्यों बात की जाती है। वे गुरुदत्त का आदर करती थीं और गुरुदत्त ने ही उनका कलाकार स्वरूप निखारा है परंतु आप यह कैसे भूल जाते हैं कि गुरुदत्त ने तो मधुबाला और मीनाकुमारी का भी श्रेष्ठ अभिनय उभारा है और उनके प्रेम प्रसंग नहीं गढ़े गए। देखिए सृजनशील निर्देशक अपनी नायिका को उसके सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रदर्शित करना चाहता है, क्योंकि यह उसकी फिल्म की मांग है। इसे पूरा करने के लिए वह मन ही मन अपनी नायिका से प्रेम करता है ताकि सर्वश्रेष्ठ की परिकल्पना की जा सके। फिल्म समाप्त होते ही यह भाव भी समाप्त हो जाता है। नायिका अपने सुंदरतम स्वरूप को प्रकट करने के लिए उसकी शुक्रगुजार है, जिसे आप प्यार नहीं कह सकते। गुरुदत्त अत्यंत संवेदनशील व्यक्ति थे और वे कभी किसी को आहत नहीं करते थे।

वहीदा ने बहुत गर्व से कहा है कि उन्हें सत्यजीत राय ने भी एक फिल्म में निर्देशित किया है और वे आरके नारायण के उपन्यास 'गाइड' को मेरे साथ बनाने चाहते थे परंतु इस बातचीत के तीन वर्ष पश्चात देवआनंद ने बताया कि इस उपन्यास के अधिकार उन्होंने खरीदे हैं और महान पर्ल एस.बक के साथ अंग्रेजी संस्करण होगा। यह फिल्म पहले अंग्रेजी में बनी और उसके महीनों बाद विजय आनंद के निर्देशन में हिंदी सस्करण बना, जिसमें शैलेंद्र के गीत 'तोड़के बंधन सारे, बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है, मरने का इरादा है' में नायिका रोजी के चरित्र का पूरा परिचय है।

फिल्म के अंग्रेजी संस्करण के लिए उन्हें अमेरिका में पुरस्कृत किया गया और श्रेष्ठ अभिनेत्री का प्रमाण-पत्र दिया गया, जो वर्षों बाद किसी ने उन्हें दिया। वहीदा को आश्चर्य है कि देव आनंद को यह मालूम था परंतु उन्होंने कभी बताया नहीं, वरन् जानकर यह बात गुप्त ही रखी। सितारें आत्म-केंद्रित होते हैं और अपनी ही फिल्म में किसी अन्य की प्रशंसा उनके लिए नाकाबिले बर्दाश्त होती है। कितने छोटे लोग हैं ये महानायक।