वही हूँ / पद्मजा शर्मा
Gadya Kosh से
'हम बहुत आगे निकल आए. यहाँ सब हमें घूर रहे हैं। इस समय और समाज में इस तरह मेल-जोल बढ़ाना ठीक नहीं। पीछे चलो।'
'कहाँ?'
'अजनबी निगाहें न हों, वहाँ।'
'कहाँ?'
'जहाँ दम न घुटे। शब्दों के तीर न चलें।'
'कहाँ?'
'जहाँ हँस सकें खुलकर, मिल सकें जी भर।'
'कहाँ?'
'जहाँ पहली बार मिले थे हम। कभी चाँद की तो कभी सूरज की बांहों में थे। गुल हमारी राहों में थे।'
'मैं तो वहीं हूँ! यह तुम कहाँ चली गयी?'