वह जो नहीं / विमल चंद्र पांडेय
अंदर घुसते ही एक अलग सी ही दुनिया नजर आती थी। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सजी गोल-गोल मेजें और उनके चारों तरफ कुर्सियाँ। एक मेज से दूसरी मेजवाले का चेहरा साफ दिखाई न पडे़, ऐसी रोशनी की व्यवस्था थी। हर मेज से उठने वाला धुआँ आँखों से दिमाग तक पहुँचता था। हर छल्ले, हर कश, हर घूँट और हर गिलास में अपनी-अपनी कहानियाँ और मजबूरियाँ थीं, कुछ बनीं, कुछ ओढ़ी और कुछ ऐसी जो हमेशा से हैं। सामने थोड़ी ऊँचाई पर एक लड़की बेहद कम कपड़ों में नाच रही थी - आप जैसा कोई...। उसके अंग उसकी मजबूरियों की तरह काफी हद तक नंगे नजर आ रहे थे। सभी अपनी कुर्सियों से अपनी अतीत की तरह चिपके हुए थे। किसी भी कीमत पर छोड़ने को तैयार नहीं। जिस पर सुरुर अधिक हो जाता वह थोड़ी देर उठकर लड़की के साथ नाच लेता, उसके बदन की गर्मी से अपने बदन की तपिश शांत कर लेता और फिर अपने अतीत से चिपक जाता।
‘वेटर, कम हियर।’
‘यस सर?’
‘वन लार्ज व्हिस्की।’
‘ओके सर।’
वहाँ से काउंटर साफ दिखाई पड़ रहा था। शेल्फ पर करीने से रखी बोतलें भी दिखाई पड़ रहीं थीं। काउंटर पर एक लड़की झुकी बारमैन से बातें कर रही थी। शायद काफी नशे में थी। पैग पर पैग चढ़ाती लड़की किसी बड़े बाप की बिगड़ी औलाद लग रही थी, या फिर शायद कोई बाजारू...।
राखी की समझ इतनी छोटी है, ऐसा शादी के पहले तो नहीं लगता था। शक भी एक लाइलाज बीमारी की तरह होता है, लेकिन इतना बड़ा शक...? वह भी उसके चरित्र के बारे में...।
‘वेटर।’
‘यस सर।’
‘वन मोर लार्ज।’
अब तो घर जाने का दिल ही नहीं करता। राखी से तो बात करना भी मुश्किल है। पता नहीं उसके दिमाग पर जमाने भर की गंदगी कहाँ से छा गई है।
‘तुम कल रात किसके साथ थे?’
‘किसके साथ का मतलब? सिन्हा के साथ गया था तो जाहिर है उसी के साथ हूँगा।’
‘नहीं, कल रात तुम नेहा के साथ थे, एक ही रूम में।’
‘बको मत, मैं नेहा के साथ नहीं था।’
‘तुम उसी के साथ थे। मैंने कल रात उसके फ्लैट पर रिंग किया तो उसने फोन नहीं उठाया।’
‘यार मैं एक रूम में था और सिन्हा मेरे बगलवाले रूम में। बीच में नेहा कहाँ से आ गई?’
‘बीच में नहीं, वह तो शुरू से तुम्हारे साथ है। बीच में तो मैं आ गई। ...तुम्हें उसी से शादी करनी चाहिए थी।’
‘फॉर गॉड सेक, चुप रहो राखी... रोना बंद करो। ऐसा कुछ नहीं...।’
लड़की का स्टेज पर डांस तेज हो रहा था - ‘चोली के पीछे...’ कपड़े भी कम होते जा रहे थे। बार काउंटर पर लड़की पीती जा रही थी।
चरित्र पर लगा दाग तब कैसे स्वीकार्य हो सकता है जब कोई चरित्र को ही अपनी सबसे बड़ी ताकत माने और उसे ही चरित्रहीन कहा जाए। राखी ने सीधा इल्जाम लगा दिया कि उसके नेहा के साथ नाजायज संबंध हैं, जबकि वह तो नेहा के मौन आमंत्रणों का जवाब दोस्ती से देकर नजरअंदाज करता आया है।
‘जीजाजी, यह मैं क्या सुन रहा हूँ?’
‘क्या? मैं कुछ समझा नहीं।’
‘आप दीदी के साथ ऐसा नहीं कर सकते।’
‘कैसा नहीं कर सकता? क्या कर रहा हूँ मैं?’ वह चीख पड़ा था। राखी को ये बेसिर-पैर की बातें अपने मायकेवालों तक पहुँचाने की क्या जरूरत थी। राजू का दिमाग भी बिल्कुल अपनी बहन जैसा ही है। एक बार भी यह जानने की कोशिश नहीं की कि असली बात क्या है। क्या सबके लिए वही जवाबदेह है?
‘यस सर?’
‘वन मोर लार्ज।’
‘फाइन सर।’
सामने की मेज से उठ कर एक आदमी नाचती हुई लड़की से लिपटने की कोशिश करने लगा है। लड़की परेशान। शायद मजबूरी ने सिर्फ नाचने और जिस्म दिखाने की ही इजाजत दी है, इसके आगे इसका भी एक चरित्र है। यह बात बाउंसर्स को भी पता है। उन्होंने उस आदमी को बाहर ले जाकर पटक दिया है। थोड़ी देर तक भुनभुनाहटें, फुसफुसाहटें। कुछ देर बाद फिर नाच व गाना शुरू - ‘जाओ चाहे दिल्ली, मुंबई...’।
काउंटर के सामनेवाली मेज पर एक खतरनाक सा दिखनेवाला आदमी एक सूटेड बूटेड आदमी से बातें कर रहा है।
‘नहीं सेठ, इससे कम में काम नहीं होगा। छोटा-मोटा काम होता, हाथ-पाँव तोड़ने का होता तो... लेकिन इसके लिए तो...।’
‘अच्छा चलो साठ कर लो। अब ठीक है न?’
‘चलो सेठ, आपके लिए कर लेता हूँ नहीं तो आजकल रेट तो ज्यादा...। अच्छा सेठ चलता हूँ। कल परसों में खबर पढ़ लेना।’
आज किसी की मौत होगी। ये शहर तो जैसे मौत के आगोश में ही सोता और जागता है। किसी की जिंदगी सारे अरमानों और बहुत से प्लांस को अधूरा छोड़ कर खत्म हो जाएगी। मौत पर इनसान का कोई बस नहीं, बहाना चाहे जो भी हो। मरने की बात सोचने पर कॉलेज की कुछ बातें याद आ जाती हैं।
‘और अगर मर गया तो...?’ बात में बात निकलती।
‘नहीं यार, अभी नहीं मरूँगा। अभी तक तो कुछ किया ही नहीं।’
‘कुछ मतलब?’ अगला हँसता।
‘अबे, न शादी की, न मजे लिए। कुछ भी तो नहीं देखा। शादी करूँगा, बच्चे पैदा करूँगा, पैसे कमाऊँगा, तब कहीं जाकर...।’ वह भी हँसता।
लेकिन शादी तो एक समझौता बनकर रह गई। राखी ने उसे कोई सुख, कोई संतुष्टि नहीं दी, न शारीरिक, न मानसिक। वह बच्चे नहीं पैदा कर सकती, इस खबर से वह तो परेशान हुआ ही था लेकिन राखी तो जैसे अर्धविक्षिप्त सी हो गई। वह बिल्कुल ही असुरक्षित महसूस करने लगी। उसका खुद पर से, उस पर से, दुनिया से, भगवान से, सबसे भरोसा उठ गया। परिणाम यह हुआ कि हालात बद से बदतर होते चले गए। वह एक ऐसे आदमी के चरित्र पर शक करने लगी जिसने शादी के पहले कोई नशा तक नहीं किया था, किसी लड़की पर निगाह तक नहीं डाली थी और इसे बहुत बड़ी बात समझता था। जिसने अपने दिल के आईनाखाने को सिर्फ एक अक्स के लिए शफ्फाक रख छोड़ा था। वह जो प्यार को इबादत मानता था। उसकी कद्र करता था और प्यार के अहसास के आगे जिस्म को कुछ नहीं समझता था।
लड़की का नाच चरम पर था। बदन पर नाम मात्र के कपड़े ही बचे थे - ‘खल्लास...।’ काउंटर पर पी रही लड़की बारमैन से उलझ रही थी। वह बहुत पी चुकी थी। वह अपनी कुर्सी से उठ गया।
‘क्या बात है? यह चिल्ला क्यों रही हैं?’
‘देखिए न सर, इनका बिल पंद्रह सौ हो गया है। यह बिना पे किए और रम माँग रही हैं। क्लब के रूल के अनुसार हम पंद्रह सौ के बाद क्रेडिट नहीं चला सकते और ये मैडम...।’
‘ठीक है, ये लो दो हजार, इनके बिल में एडजस्ट करके इन्हें पीने दो।’
वह आकर कुर्सी पर बैठ गया। आज राखी ने सारी हदें पार कर दीं। उसको राजू के सामने ऐयाश ही नहीं कहा, बल्कि उसके पूरे खानदान को गाली दी। ये औरत किस मिट्टी की बनी है, समझ में नहीं आता। हाँ वाकई, राखी ने आज साबित कर दिया कि चरित्र, सदाचार, आत्मसंयम सब बेकार की बातें हैं। आप कितनी पवित्रता से जिंदगी बिता रहे हैं, उससे किसी को कोई मतलब नहीं है। राखी क्या, उसे स्वयं इन सब बातों में यकीन नहीं रहा।
‘थैंक्यू मिस्टर...?’
‘अमर।’
‘थैंक्स... अमर, मेरा... बिल चुकाने के... लिए। मे आई... सिट... हियर?’ लड़की और उसकी जबान दोनों लड़खड़ा रहे थे।
‘इट्स ओके मिस...?’
‘काजल...।’
‘हैलो काजल, नाइस टु मीट यू। यू शुड गो टु योर होम नाउ। तुम लड़खड़ा रही हो।’
‘तुम... जैसा हैंडसम... इनसान सामने हो... और काजल... घर चली जाए... नेवर।’ लड़की ने माहौल की गरमाहट उसके होंठों में भर दी। उसका शरीर जलने लगा। सबकुछ धुँधला-सा होने लगा था। नाच, पीना, शरीरों की रगड़, सबकुछ चरम पर था।
‘कम ऑन... अमर... कम विद मी।’ ऊपर के फ्लोर पर कमरे शायद इसीलिए थे। दोनों घुसे। दरवाजा बंद किया गया। उसकी बाँहों में लड़की का जिस्म झूल रहा था और वह लड़खड़ाती हुई बार-बार उसे किस कर रही थी। उसने उसे बिस्तर पर लिटाया और उसकी बगल में लेट गया। लड़की ने अपनी गुदाज बाँहें उसके गले में डाल दीं। उसने काफी देर से पीछा कर रही अपनी रूह को परे धकेला और लड़की को किस करने लगा।
शराब उसके सिर पर भी असर दिखा रही थी। किस करते वक्त उसे लड़की के चेहरे में राखी का चेहरा नजर आने लगा। जब सबकी नजरों में वह चरित्रहीन और ऐयाश है तो मासूमियत का चोला पहन कर बेवकफूफों की तरह घूमने से क्या फायदा? उसके हाथ लड़की के नाजुक अंगों पर फिरने लगे। नशे की अधिकता से लड़की की आँखें बंद हो रही थीं।
‘आई लव... यू... विशाल... आई लव... यू। डोंट... लीव मी... एलोन...।’ उसके हाथ रुक गए। कमरे में एक झिरी से उसकी रूह फिर प्रवेश पा गई। प्यार वाकई एक खूबसूरत एहसास है। वह सीधा बैठ गया।
‘क्या... हुआ... विशाल?’
‘...।’
‘क्या... हुआ... विशाल...?’
‘आयम नॉट विशाल। आयम अमर।’ वह बिस्तर से उतर कर खड़ा हो गया।
‘ओह... यू... आर नॉट... विशाल?’
‘नो, आयम...। यू लव हिम ?’
‘या... बट ही... डजंट। ही... डजंट।’ लड़की की आँखें बंद हो गईं। नशे की अधिकता उसके दिमाग और आँखों पर हावी हो गई।
थोड़ी देर तक वह लड़की को देखता रहा। वह बाजारू लड़की उसे बहुत पवित्र और खूबसूरत लग रही थी। उसका सोया हुआ शांत चेहरा उसे बहुत भला लगा। उसने लड़की के माथे पर एक चुंबन लिया और चुपके से बाहर निकल गया।