वात्सल्य के धागे / सुधा भार्गव
विलियम ने बड़ी आशा से भारत की भूमि पर कदम रखे। चलते समय उसके भाई ने कहा था
-भारत के गाँवों में जाना, वहाँ की गरीबी इंसान को समूचा निगल लेती है। ईश्वर ने चाहा तो किसी झोंपड़े के आगे तुम्हारी इच्छा जरूर पूरी हो जायेगी
दो-तीन दिन से विलियम लगातार भटक रहा था। उसकी गोरी चमड़ी को देखकर ग्रामीण महिलायें कतराने लगतीं या दरवाजा बंद कर लेतीं।
एक दिन वह चलते-चलते थक गया और साधारण सी झोंपड़ी के आगे रुक गया। दस्तक देते ही घर के मालिक ने दरवाजा खोला और पूछा
--तुमको क्या चाहिए?
--पानी पिला दो तो बड़ी मेहरबानी होगी।
उसकी आवाज गृहिणी ने सुन ली। वह पानी का गिलास लेकर अतिथि के सामने आई। इतने में बच्चों के चीखने-चिल्लाने की आवाजें कान के परदे फाड़ने लगीं
--औरत ने लजाते हुए कहा -चारों भाई -बहन ऊपर-तला के हैं। हर समय झगडा करते रहते हैं।
--इतनी छोटी सी झोंपड़ी में ६ जन का गुजारा, कैसे रहते हैं?
--अजी --हमें तो आदत है यहाँ की
आगंतुक वहीं बैठकर कुछ सोचने लगा। चिंता की रेखाएं उसके ललाट पर छाई हुई थीं। कुटिया में अभाव का एक छत्र साम्राज्य था।
-क्या मैं आपका कोई काम कर सकता हूं? आप बहुत परेशान लग रहे हैं।
-तुम ठीक कह रहे हो, मैं महीनों से नहीं सो पाया हूं।
कुछ सोचकर वह चुप हो गया। दो पल रूककर गला साफ किया और अस्फुट शब्दों में बोला --
--यदि तुम मुझे अपना एक बच्चा दे दो तो उसके बदले में मैं तुम्हें इतना रुपया दूँगा कि तुम्हारी और तुम्हारे तीनों बच्चों की जिन्दगी सुधर जायेगी। मेरा और मेरे बच्चे का जीवन भी बच जायेगा।
-जब आपका एक बच्चा है तो मेरा बच्चा क्यों लेना चाहते हैं?
-मेरे बच्चे का एक गुर्दा बेकार हो गया है। अस्पताल में गुर्दा मिलने वालों की सूची में उसका नाम है पर उसका नंबर आते-आते दो वर्ष लग जायेंगे वह तो मौत से लड़ रहा है। दो वर्ष का क्या इन्तजार करेगा!
-मगर मेरे बच्चे से तुमको क्या चाहिए?
--उसका गुर्दा!
-गुर्दा देने के बाद क्या मेरा बच्चा बच सकेगाॽ
-यह मैं कैसे कह सकता हूं।
-तब श्रीमान एक को बचाने के लिए दूसरे को मौत की खाई में ढकेलना कहाँ का न्याय है। हम गरीब जरूर हैं पर प्यार के धागों में गुंथे हुए हैं।
सुनने वाला उन धागों में उलझकर रह गया।