वापसी / अर्चना राय

Gadya Kosh से
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सुबह से ही उन्हें अपने अंदर एक अलग ही ताज़गी और जोश महसूस हो रहा था। हो भी क्यों न, आज वे आफिस एक इन्टरनेशनल ब्राण्ड की शर्ट जो पहन कर आए थे। जो उनकी पत्नी ने बचत के पैसों से, पचास पर्सेंट की डिस्काउंट की सेल पर खरीदकर, जन्म दिन पर गिफ्ट की थी।

"गुड मार्निंग, मालिनी जी, कैसी है?"-जानबूझकर अपनी सहकर्मी का ध्यान शर्ट पर दिलवाने के लिए कहा।

"गुडमार्निग, मैं ठीक हूँ, ...अरे! वाह क्या बात है, आज, आप बडे हेन्डसम लग रहे हैं।"-मालिनी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अरे! ऐसी कोई बात नहीं है।"-सिर के बाल संवारते हुए जबाब दिया, और अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए।

"सर, आपकी शर्ट बहुत अच्छी लग रही है। ये तो शायद ब्राण्डेड है?"-जूनियर सहकर्मी ने कहा।

"हाँ, सही पहचाना, ये मेरी पत्नी ने माॅल से खरीदी है।"-कहते हुए उनकी आंखों में अलग ही चमक थी।

"तब तो यह बडी कम्फर्टेबल होगी?"-जूनियर ने जिज्ञासा से पूछा।

हाँ, बहुत कम्फर्ट है, बस इसके पीछे लगा लेबल थोडा चुभ रहा है। "

"तो, उसे निकाल दीजिए।"

अरे नहीं, लेबल निकाल दिया तो ये ब्राण्डेड नहीं बल्कि आम शर्ट हो जाएगी। "-हंसते हुए कहा। कहने को तो कह दिया, पर गर्दन पर लेबल की लगातार चुभन उन्हें बेचैन कर रही थी।

"घर जाकर, सबसे पहले इस लेबिल को निकलवा दूँगा...अरे! ... नहीं कही मेरे ऐसा करने से पत्नी को बुरा लग गया तो, उसने कितने प्यार से दी है।"-वे अपने विचारों में खोये थे कि

"अच्छा ठीक है, सर वह टेंडर वाली फाइल, जल्दी से कम्प्लीट कीजिए, बाॅस ने कहा है।"-

सहकर्मी की बात सुनकर वे विचारों से बाहर आए।

"ठीक है करता हूँ।"-कहकर उन्होंने फाइल लेकर, पेन उठाया ही था कि

"कहीं शर्ट पर स्याही का दाग न लग जाए।"-सोचकर वे सतर्क हो गए।

अचानक उन्हें शरीर पर हल्का-सा वज़न महसूस होने लगा। काम करने की कोशिश की, पर मन नहीं लगा। अब धीरे-धीरे शरीर पर वज़न कुछ बढता-सा महसूस हो रहा था। जैसे-तैसे करके ज़रूरी फाइल को निपटाया।

"चलिए सर, लंच टाइम हो गया, खाना खाते हैं।"-सहकर्मी ने कहा।

जैसे ही उन्होंने खाने का डिब्बा खोला

"तेल का दाग..."-सोचकर ही उनका मन, खाना खाने का न हुआ, एक अजीब-सी जकडन शरीर में महसूस होने लगी थी।

"क्या बात है सर, आप परेशान लग रहे हैं?"-उनके बार-बार गर्दन को सहलाते देख सहकर्मी ने कहा।

नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। "-कहकर, बात टालते हुए उन्होंने, बेमन से खाना मुँह में डाला। दिन भी आज कुछ लंबा महसूस हो रहा था। कुर्सी पर बैठे हुए भी उन्हें इतनी थकान महसूस होने लगी, मानो मीलों चलकर आए हो। और शाम को आफिस से सीधे घर पहुँचकर, उन्होंने सबसे पहले शर्ट उतार कर, करीने से तह कर, पालीथीन में पैक की और अलमारी के अंदर रख दी।