वापसी / राजनारायण बोहरे

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अगले दिन

बहुत सुबह विभीषण राम के सामने हाज़िर थे।

वे चाह रहे थे कि राम कुछ दिन लंका में चल कर मेहमान की तरह रहें, लेकिन राम नहीं माने। वे कह रहे थे कि उन्हे अयोध्या से चौदह बरस का वनवास मिला था, जो पूरे हो चुके है, अब वहाँ उनके छोटे भाई भरत उनका बेसब्री से इंतज़ार कर रहे होंगे। इसलिए जल्दी से जल्दी लौटने का इंतज़ाम किया जाये।

विभीषण ने लंका के विमान घर में दिखवाया तो पता चला कि वहाँ कई्र तरह के ऐसे विमान हैं जो बहुत सारे लोगों को बैठा कर तेज गति से आसमान के रास्ते कहीं भी जा सकते हैं।

अब राम ने लौटने की तैयारी की तो सारे बानर उनके साथ अयोध्या चलने को तैयार थे। हुआ यह था कि रात जामवंत ने सबसे कहा था कि हो सकता है चौदह साल तक राज संभालने वाले भरत को राजगद्दी अच्छी लगने लगी हो और वे राम का राज्य न दें। इसलिए हम लोग राम की तरफ़ से दूसरी लड़ाई लड़ने के लिए साथ चलेंगे।

राम क्या कहते?

उन्होंनेविभीषणजी से कहा कि अब उन्हे बहुत सारे विमान देने होंगे। विभीषण तो कहते थे राम जी अयोध्या न जाकर लंका के ही राजा बनें, विमान क्या चीज थे।

तब रामादल के लोग अलग-अलग विमानों में बैठ कर अयोध्या के लिए चल दिये।

विभीषण और सुग्रीव एक साथ एक अलग विमान में बैठे।

बहुत तेज गति से चलते विमान से नीचे की धरती तेजी से पीछे भागती लग रही थी।

अयोध्या में तो राम के इंतज़ार में हजारों की भीड़ अयोध्या नगर के बाहर खड़ी थी। अंगद को ताज्जुब हुआ कि राम की तरह शकल सूरत के एक दूसरे तपस्वी उन सबके आगे खड़े आसमान की ओर देख रहे थे। अंगद ने अनुमान लगाया यही भरतजी होंगे। लक्ष्मण जैसी सूरत के दूसरे व्यक्ति ज़रूर शत्रुहन होंगे अंगद ने सोचा।

राम के विमान से उतरते ही सबसे पहले भरतजी व्याकुल हो कर आगे बढ़े। राम उनसे गले मिले। फिर वे लगभग हर आदमी से गले मिलने लगे।

अंगद ने देखा कि राम हरेक से ऐसे मिल रहे थे जैसे वह उनके बराबर का हो। न तो यहाँ कोई राजकुमार था न कोई नागरिक।

अंगद को एक नया सबक मिला, जनता में लोकप्रियता पाना है तो इतना सरल और सहज होना चाहिए कि हर आदमी से गले लगकर मिल सके॥

गुरू वशिष्ठ से राम ने अपने सुग्रीव, विभीषण, जामवंत, हनुमान और अंगद आदि का परिचय यह कर दिया कि इनकी सहायता से ही हम लोगों ने अत्याचारी रावण को मारा और हम सीता का वापस पा सके।

उधर गुरु वशिष्ठ के बारे में राम का कहना था कि इनकी बताई धनुर्विद्या के कारण ही हमने लंकेश को मार गिराया है।

अंगद बहुत कुछ सीख रहे थे। राम हरेक को भरपूर सम्मान देते थे। अपनी जीत का जिम्मा वे कभी बानरों को दे रहे थे तो कभी गुरु वशिष्ठ कों।

भेंट-मिलन के बाद भरत ने सब लोगों को राजा के अतिथिगृह में ठहराया।

अंगद, गद और नल, नील को अयोध्या देखना था, वे लोग नगर में घूमने निकल गये। पूरे नगर में उन्हे जगह-जगह अयोध्या के नागरिकों की तरफ़ से जलपान लेना पड़ा। सारे अयोध्या वासी उन्हे अपने सबसे प्रिय मेहमान मान रहे थे।

रात में वे लोग सरयू के तट पर गये।

सरयू के किनारे बने बड़े मकानों में अच्छी रोशनियाँ जलाई गई थीं जिनकी छांया नदी के पानी में बहुत सुंदर लग रही थी।

अतिथिगृह में लौटे तो पता लगा कि अंगद को सुग्रीव और विभीषण के साथ ठहराया गया है। वे चाहते थे कि अपने दोस्तों के साथ ठहरें, लेकिन मेहमान की अपनी कोई मर्जी नहीं होती। वे चुपचाप अपने महल की ओर बढ़े। एक बडे़ से कमरे के बाहर से निकलर रहे थेे कि भीतर से चाचा सुग्रीव क आवाज़ सुूनाई दी "विभीषण जी, श्रीराम ओर उनके भाइयों का आपसी प्रेम देख कर हमे बड़ी शर्म आ रही है। देखिये कितना प्रेम है इन चारों में।"

विभीषण की आवाज़ थी "मैं तो बहुत ही शर्मिन्दा हूँ इनके सामने। हम लोगों ने ज़रा से स्वार्थ के कारण हमने अपने भाइयों से विद्रोह किया और उन्हे जान से मरवा कर राजगद्दी पर बैठगये। इधर ये लोग हैं कि एक दूसरे की ओर इतना बड़ा और भव्य राज्य संभालने के लिए धकेलरहे हैं।"

अंगद चुपचाप निकल गये और अपने बिस्तर पर जा पहुँचे।