वाह रे कंप्यूटर! / प्रतिभा सक्सेना
कल्पना भी नहीं थी कि कंप्यूटर जैसी चीज़ का कभी प्रयोग करूँगी। लिखने-पढ़ने के मामले में अपना हाथ जगन्नाथ लगता था। लेकिन यह भी यह सच है कि नहीं सीखा होता तो बहुत-कुछ से वंचित रह जाती। जितना लिख लेती हूँ उतने का तो सोच भी नहीं सकती थी।
बेटा भारत से बाहर चला गया था।
हम दोनों अक्सर ही उसके पास जाते थे।
रिटायर होने पर उसने कहा,' आप कंप्यूटर सीख लीजिये।वैसे यहाँ आप बोर हो जाती हैं।'
सब को उस पर काम करते देखती थी,उत्सुकता जागी, ' अच्छा देखती हूँ '।
फ़ुर्सत में थी ही। ज्वाइन कर ली क्लास।
पर वे जाने क्या-क्या सिखा रहे हैं -डायरेक्ट्री- फ़ाइल्-ट्री, इधर का इधर, आदि।
उसे बताया तो बोला, 'उससे आपको कोई मतलब नहीं। छोड़िये मैं बता दूँगा। '
पहली मुश्किल - हाथ रखते ही फर्र्र से तीर की नोंक इधऱ से उधर पहुँच जाय,
हार कर मैने कहा, 'यह चूहा एकदम भागता है मेरे बस में नहीं आता।'
वह चिल्लाया, 'मम्मी फिर चूहा।, चूहा नहीं माउस है वह।माउस कहिये।'
'क्यों माउस मानेई तो चूहा, और क्या कहें इसे? '
'नहीं बस, माउस कहिये। '
क्यों, हिन्दी में बोलना मना है?।
मैने सिखाया था माउस माने चूहा और आज ये उलटी पट्टी पढ़ा रहा है।
अगली परेशानी, देखो, ज़रा सी उँगली बहकी तो फिर एक खिड़की खुल गई। '।
फिर वही टोकना उसका - वह विंडो है, खिड़की मत कहो।
मुझे तो याद ही नहीं रहता एकदम हिन्दी हो जाती है।
वह टोकता है तो मुझे हँसी आती है। इसने मुझे कितना झिंकाया था अंग्रेजी याद करने में !
मेरे आगे तो ढेर लगा है- कैरेक्टर, एपल, बुकमार्क,बाइट,कैश मेमरी, सर्वर, बिट,की, मानिटर, स्पैम,कुकी और जाने क्य-क्या।जो पढ़े भी हैं उनके अर्थ सब बदले हुये!
जहाँ मैने पुराना अर्थ बोला वह चीखता है, 'आप सुनती क्यों नहीं। ।।'
'फिर वही कहा, कर्सर है वह तीर नहीं। '
अब मैं उसे ठीक करूँ कि ख़ुद को !
लो, अब उसमें टेबलेट और जुड़ गया
'आपको टेबलेट चाहिये बहुत हल्की है?'
मुझे लगा इस सब गड़बड़ के, बीच(नॉर्मल रहने को ) गोली लेनी पड़ती होगी।
हे भगवान !
ये बात तो है- इन लोगों के दिमाग़ गुठला गए हैं, एकदम कुंठित ! याददाश्त ज़ीरो।
ज़रा-सा गुणा-भाग हो, दौड़ते हैं- कहाँ केलकुलेटर? कहाँ,कंप्यूर?
जो गिनती-पहाड़े ज़बान पे रखे थे, सब चौपट !
पर टेबलेट तो कुछ और ही करिश्मा निकला !
समझ में नहीं आता कहाँ अंग्रेज़ी चलेगी , कहाँ हिन्दी।
ख़ैर जो हुआ सो हुआ। उसने मुझे इतना कंप्यूटर सिखा दिया कि मैं लिख पढ़ लेती हूँ और भी कई काम कर लेती हूँ !
इतना पढ़ने को मिल जाता है और लिखने को भी कि और कुछ सीखने का अवकाश ही नहीं । बहुत आसान हो गया है अब सब कुछ।
यह नहीं होता तो मेरी तो बड़ी मुश्किल हो जाती।
वैसे मुझे आता-जाता कोई खास नहीं, और ऊपर से यह विचित्र ग्लासरी ! गड़बड़ कर जाती हूँ हमेशा।अपना बहुत तैयार माल उड़ा चुकी हूँ इस के चक्कर में।
चलो, जित्ता सीख लिया, काफ़ी है मेरे लिये!