वाह रे सपूत / कल्पना रामानी

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रुक्मिणी देवी अपने ६ माह के पोते को गोद में लेकर बहला रही थी कि अचानक खाँसी का दौरा शुरू हो गया और वो बेदम होने लगी. आवाज़ सुनकर उनका बेटा विनय वहाँ आ गया और चिंतातुर स्वर में बोला-

“माँ, लगता है तुम्हारी खाँसी बहुत बढ़ गई है”.

सुनकर रुक्मिणी देवी की बुझी-बुझी आँखों में यह सोचकर चमक आ गई कि बेटे को आखिर मेरी सुध आ ही गई, मुश्किल से खाँसी रुकी तो बोली-

“हाँ बेटे, तुम देख ही रहे हो न तुमसे कितनी बार तो डॉक्टर को दिखाने के लिए कह चुकी हूँ. अब क्या बताऊँ, रात में पल भर भी नींद नहीं आती और खाँसते-खाँसते बिस्तर भी गीला हो जाता है.” शर्म को ताक पर रखकर रुक्मिणी देवी ने उम्मीद भरी निगाहों से बेटे की ओर देखा.

“तो माँ, अब तुम मुन्ने को गोद में मत लिया करो, इसके लिए आया है न!” कहते हुए विनय ने बड़ी बेशर्मी के साथ मुन्ने को माँ की गोद से खींच लिया