विकास, विनाश और महाप्रलय / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :24 दिसम्बर 2016
समान नागरिक संहिता लागू करने के प्रयास की खबरें आ रही हैं कि जनजातियों और आदिवासियों पर भी इसे लागू करने का विचार किया जा रहा है। कई देशों में समान नागरिक संहिता लागू रही है परंतु भारत की सामाजिक बुनावट अलग प्रकार की है, जिसमें अनेक धर्मों को मानने वाले लोग हैं और हर चालीस किलोमीटर पर लहजा बदल जाता है। अनेक भाषाओं के साथ सैंकड़ों बोलियां भी अभिव्यक्ति का माध्यम हैं। सत्यजीत राय का कथन है कि कोलकाता में बोली जाने वाली बांग्ला भाषा ग्रामीण क्षेत्र में अलग ही ध्वनित होती है। इस अनेकता में एकता वाले देश में समान नागरिक संहिता नहीं लगाई जानी चाहिए। दरअसल, यह उस राजनीतिक दर्शन का हिस्सा है, जो चाहता है कि सब एक से कपड़े पहनें, एक सा सोचें अर्थात विविधता समाप्त हो जाए, जिसका अर्थ है कि अनेकता में एकता का महान आदर्श ही नष्ट हो जाए। यह रेजिमेंटेशन है और भारत को गैर-भारतीयता का लिहाफ ओढ़ाने की तरह है। आज असल खतरा तो भारत बने रहने का है, क्योंकि बाजार की ताकतें और राजनीतिक ताकतें उससे आदर्श जीवन-मूल्य छीनने का प्रयास कर रही हैं। यह उनके व्यापक प्रचार-तंत्र की ताकत है कि भीतर सांस्कृतिक रूप से तोड़ने के कार्य को देशभक्ति कहा जा रहा है। आज राशन कार्ड या मतदाता कार्ड मात्र दिखाने से व्यक्ति भारतीय नहीं हो जाता। हुल्लड़बाज अलग किस्म का प्रमाण-पत्र मांगते हैं।
जनजातियों में विवाह को सादगीपूर्ण रखा गया है। बस्तर में दूल्हा और दुल्हन तीन कुल्हड़ शराब एक-दूसरे पर डालकर विवाहित हो जाते हैं। वहां नवयुवक को अपनी प्रेमिका के पिता को उसका मांगा हुआ धन देना पड़ता है और धन न होने पर वह कुछ समय तक प्रेमिका के पिता के घर या खेत में चाकरी कर सकता है। मेहरुन्निसा परवेज की एक कहानी में युवती का पिता उसके प्रेमी से इतना अधिक काम करवाता है कि वह मर जाए और यही देखकर युवती के मन में उस युवक के लिए प्रेम इतनी तीव्रता से प्रकट होता है कि उसे भगा ले जाने का परामर्श युवक को देती है। गुलशेर खान शानी और मेहरुन्नीसा परवेज ने बस्तर की जनजातियों पर कथाएं रची हैं और शानी का उपन्यास 'कालाजल' सर्वकालिक महान रचना के रूप में स्वीकार कर लिया गया है। फिल्मकार आर. बाल्की की फिल्म 'चीनी कम' के एक दृश्य में मध्य आयु की तब्बू अपने उम्रदराज प्रेमी अमिताभ बच्चन से एक वृक्ष तक दौड़कर जाने का आग्रह करती हैं। इस दौड़ के बाद बच्चन पूछते हैं कि तब्बू का क्या तात्पर्य था। तब्बू कहती है कि वह अपने भावी दूल्हे का दमखम परख रही थी। बस्तर में दूल्हे को अपनी दुल्हन को गोद मंे उठाकर एक वृक्ष तक दौड़ना होता है और अन्य लोग छेड़छाड़ भी करते हैं। अगर वह वृक्ष तक नहीं दौड़ पाया तो विवाह होता ही नहीं है। शारीरिक सामर्थ्य के इस इम्तिहान से ही आर. बाल्की का वह दृश्य प्रेरित है। जनजातियां आज भी प्रकृति की गोद में पल रही हैं और महानगर में रहने वाले लोग दीवार पर टंगे किसी कैलेंडर में ही प्रकृति का सौंदर्य निहार पाते हैं।
मानवीय लोभ-लालच ने पहाड़ों को श्रीहीन और नदियों को प्रदूषित कर दिया है। जिस दिन तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने लाल किले से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की बात की, उसी दिन प्रात: राज कपूर की 'राम तेरी गंगा मैली' का प्रदर्शन हुआ, जबकि फिल्म निर्माण काफी पहले ही प्रारंभ हो चुका था। प्राय: साहित्य व सिनेमा से जुड़े लोग समय को उसके आने से पहले ही पढ़ लेते हैं। राजीव गांधी के बाद बने प्रधानमंत्रियों ने भी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की बात दोहराई परंतु इस क्षेत्र में अभी तक कोई ठोस काम नहीं हुआ है। इसी तरह पारसी इंजीनियर दस्तूर ने भारत की सभी नदियों को एक-दूसरे से जोड़ने की बात की थी परंतु ऐसा हुआ नहीं। अगर सारी नदियां जुड़ जाएं तो सड़कों पर परिवहन कुछ हद तक कम होगा और नावों से लोग यात्रा करेंगे। मछली उत्पादन इतना बढ़ जाएगा कि उसके निर्यात से हमारी विदेशी मुद्रा की आवश्यकता पूरी हो जाएगी। दरअसल, चुनाव में विजय के लक्ष्य के पीछे दौड़ा जा रहा है और देश की चिंता सत्तासीन लोगों को नहीं है।
हिमालय के चीन वाले भाग में उन्होंने शिखर तक सड़क का निर्माण कर लिया है परंतु हमारे वाले भाग में हमने कुछ नहीं किया है। सदियों से हमारा विश्वास रहा है कि हमालय हमारी रक्षा करता है परंतु उसके शिखर पर दागा गया एक बम बर्फ पिघला दे, तो पूरे उत्तर भारत मंे बाढ़ आ जाएगी। क्या यह कम आश्चर्य की बात है कि विश्व के सारे कवियों ने बाढ़ से मनुष्यता के नष्ट होने की बात लिखी है। किसी भी कवि ने ज्वालामुखी या भूकम्प का आकल्पन नहीं किया है। जयशंकर प्रसाद की 'कामायनी' या जॉन मिल्टन की 'पैराडाइज़ लॉस्ट' सभी बाढ़ से डूबने की बात करते हैं। सरकार के ओहदेदारों के लिए किसी महाकाव्य को पढ़ना अनिवार्य कर दिया जाए। साहित्य को खारिज कर देने से होने वाली हानि की कल्पना हुक्मरान कर ही नहीं पाते। विज्ञान और साहित्य में कोई बैर नहीं है और सारी विधाएं एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। हर शोधकर्ता पहले कल्पना करता है, फिर परिश्रम करके प्रमाण एकत्रित करता है। यह कार्य प्रयोगशाला में किए जा रहे अनुसंधान के समान ही है। एचजी वेल्स की काल्पनिक कहानियां विज्ञान द्वारा सत्य के रूप में प्रतिपादित हुई है।