विकी का पत्र / कुबेर

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विकी पिछले सत्र से स्कूल जाना शुरू कया है। वह अन्य बच्चों की तरह शरारती है। बड़ी खूबसूरत शरारतें करता है, पर वह शैतान नहीं है। वह अपने घर के सामने छोटी सी लॉन में खूब खेलता है। कभी रबर की बाल से कभी अपने लकड़ी वाले घोड़े के साथ। क्रिक्रेट खेलना उसे बहुत अच्छा लगता है। पर वह अकेला ही बॉलिंग, बैटिंग और फील्डिंग तो नहीं कर सकता न। पापा को उसके साथ खेलने के लिए समय ही नहीं मिलता। सुबह से शाम तक बस ऑफिस ही ऑफिस। और मम्मी! वह तो रसोई में ही दिन भर न जाने क्या-क्या करती रहती हैं। पिछले रविवार को जब वह मम्मी-पापा के साथ पिकनिक मनाने गया था, बड़ा मजा आया था। पाप बॉलिंग करते करते और मम्मी फील्डिंग करते करते थक गई थी। वह नाट आऊट ही रहा था। जाने कितनेे चौके लगाया था, और हाँ, तीन बड़े छक्के भी तो जड़ा था। बड़ा मजा आया था। टी.व्ही. पर सचिन को खेलता देख उसे बड़ा मजा आता है। उस दिन मानो वह सचिन की बरारबरी कर रहा था। उसने पक्का निश्चय किया है कि बड़ा होकर वह भी सचिन जैसा ही बनेगा।

पड़ोस के राजू, मोनू और बंटी खेलने अक्सर उसके लॉन में आ जाया करते हैं। पर वे अच्छे नहीं हैं। खेलते कम हैं और पौधों को नुकसान अधिक पहुँचाते हैं। विकी पौधों से बहुत प्यार करता है। पौधों का तोड़ा-मरोड़ा जाना उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता। मम्मी कहती हैं - पौधों में भी हम लोगों की तरह जीवन होता है। अगर पौधे न हों तो हम लोगों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा।

विकी टी.व्ही पर रोज कार्यक्रम देखता है, पर वह पढ़ने से जी नहीं चुराता । अपना होमवर्क वह रोज ही पूरा कर लेता है। जरूरत पड़ने पर मम्मी से भी पूछ लेता है। मम्मी बड़े प्यार से उसे हर सवाल समझाती हैं।

टी.व्ही. पर आने वाले समाचार उसे बिलकुल भी अच्छे नहीं लगते। समाचार पढ़ने वाले न जाने क्यों रोज राज्य, सरकार, प्रधानमंत्री, आतंकवादी जैसे भारी-भरकम शब्दों का प्रयोग करते रहते हैं। ये शब्द न तो उसकी समझ में आते हैं और न ही अच्छे लगते हैं। मास्टर जी की भी बहुत सी बातें उसे समझ में नहीं आते, सिर के ऊपर से ही गुजर जाते हैं, पर वे बुरे तो नहीं लगते हैं।

पापा ऑफिस जा चुके हैं। मम्मी किचन में काम कर रही हैं। वह सोफे पर अकेला बैठा है, न जाने कहाँ-कहाँ की बातें उसके मन में आ रहे हैं। होमवर्क तो वह पहले ही कर चुका है। स्कूल बस के आने में अभी कुछ समय है।

अकेला बैठा हुआ विकी कुछ सोच रहा है। क्या सोच रहा है वह? सुबह टी.व्ही. पर समाचार सुनकर पापा काफी बौखलाये हुए से लग रहे थे। यही, आतंकवाद और लोगों को गोलियों से भून डालने के समाचार आ रहे थे; शायद इसीलिए। ’क्या है यह आतंकवाद और कौन हैं ये आतंकवादी?’ जरूर ये अच्छे शब्द नहीं हैं, वरना पापा दुखी क्यों होते? हाँ शायद बहुत सारे लोगों को गोलियों से भून डाला गया था, इसीलिए पाप दुखी हो रहे होंगे। मरने वाले लोग क्या हमारे रिस्तेदार थे?

ओफ हो! मैं भी कितना बुद्धू हूँ, मरने वाले लोग जरूर हमारे ही परिवार के रहे होंगे। मारने वाले लोग कौन हैं? आतंकवादी ही होंगे शायद। पर ये लोगों को मरते क्यों हैं? जरूर ये अच्छे लोग नहीं हैं। कभी अगर ये मुझे मिल जायें तो मैं इनसे कुट्टी कर लुँगा, हाँ।

पर ये ऐसा करते क्यों हैं? ऐसी घटनाएँ होती क्यों हैं? समझ में नहीं आता।

विकी आगे सोचने लगा - आइडिया! मास्टर जी की जो बातें समझ में नहीं आती उसका मतलब मम्मी से पूछ लिया करता हूँ; क्यों न इन सब के बारे में भी मम्मी से ही पूछ लूँ। पापाजी तो ऑफिस चले गए हैं। और वैसे भी पाप से पूछने का काई फायदा नहीं। कुछ बताते तो हैं नहीं, उल्टा डाट लगा देते हैं। छीः। और मम्मी, वह भी कभी-कभी डाटती तो जरूर हैं, पर पापा जैसा तो नहीं। उनका डाटना भी तो अच्छा लगता है। डाटने के बाद तो वह और भी प्यार से जो समझाती हैं। पाप मुझे कभी प्यार नहीं करते, हमेशा झुंझलाये से रहते हैं। मम्मी बड़ी भली हैं, हमेशा ही वह मुझे प्यार करती रहती हैं। मैं उनका राजा बेटा जो हूँ।

किचन से स्टोव्ह की आवाजंे आ रही हैं। मम्मी शायद कुछ,...दूध ही उबाल रही होंगी। बर्तनों के टकराने से पैदा हुई झनझनाहट की आवाज से विकी के सोचने का क्रम टूटता है। पर कुछ ही देर में राज्य, सरकार, प्रधानमंत्री, आतंकवाद, आतंकवादी जैसे शब्द फिर उसके मस्तिष्क में हावी हो जाते हैं। वह पुनः सोचने लगता हैं। इन सबके बारे में मम्मी से आज वह पूछ कर ही रहेगा।

कभी-कभी पापा जब हमें घुमाने ले जाते हैं, तब वह भी मुझे प्यार करते हैं, खूब प्यार करते हैं। हमेशा गोद में ही लिये रहते हैं। मम्मी के मना करने पर भी मेरे लिए वे खूब खिलौने खरीदते हैं, गोद से उतारते भी नहीं हैं। मम्मी का खिलौने के लिए मना करना, हमेशा गोद में लिये रहने के लिए मना करना, तब मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता। मम्मी भी तब मुझे अच्छी नहीं लगती, जरा भी नहीं। हाँ ! अब समझा, घर में मुझे मम्मी प्यार करती हैं और बाहर जाने पर पापाजी।कितने अच्छे हैं मेरे मम्मी-पापा।

“आई लव यू मम्मी।” अपनी बेखयाली में विकी एकाएक चहक उठा। दूसरे ही पल अपनी इस बेखयाली पर वह झंेप गया। सोचने लगा - ओहो! यह क्या हो गया?

“विकी, वहाँ क्या कर रहे हो बेटे? देखो, शैतानी नहीं करना। मैं अभी आती हूँ, तूम्हारा दूध लेकर।” किचन से माँ का प्यार भरा आश्वासन आया।

विकी को लगा, वह सोफे पर नहीं माँ की गोद में बैठा है। टी. व्ही. के वे शब्द एक बार फिर विकी के मस्तिष्क में गडमड होने लगे। राज्य, सरकार, प्रधानमंत्री, आतंकवाद, आतंकवादी लोगों को गोलियों से भूनना। ओहो ! किस शब्द को कहाँ से पकड़ूँ, समझ में नहीं आता। विकी फिर विचारों में उलझ गया। चाहे जो हो, आज मम्मी से इसका हल पूछ ही लेना चाहिए। आ....तं....क, यह शब्द तो कुछ जाना पहचाना लगता है। पर कैसे? हाँ! पापा ने मुझे एक बार कहानी सुनाई थी, शेर और खरगोश की। जंगल के छोटे-छोटे कई जानवरों को मारकर शेर रोज ही खा जाता था। जंगल में शेर का आतंक छाया हुआ था। अब समझा, आतंक याने डर, भय। शेर जब छोटे-छोटे निर्दोश जीवों को मारता है तब उसे आतंक कहते हैं। और आतंकवाद? आतंकवादी? कुछ भी हो छोटा सा एक खरगोश उस ताकतवर शेर को किस चतुराई से ठिकाने लगाता है। वाह, वाह! चतुर खरगोश जिन्दाबाद। काश मैं भी खरगोश होता, चतुर तो हूँ ही, हाँ।

तभी दूध का गिलास लेकर मम्मी आ पहुँचीं। विकी हड़बड़ा कर खुद को सहज बनाने का प्रयास करने लगा। विकी को इस हालत में देखकर मम्मी घबरा गईं। “बेटे! तबीयत तो ठीक है? कैसे लग रहा है? अच्छा नहीं लग रहा है क्या?” एक ही सांस में वह कई सवाल कर गई।

विकी को कुछ जवाब नहीं सूझा। हड़बड़ी में उसके मुँह से निकल गया - “मम्मी, भूख लगी है।” पर दूसरे ही पल उसे अपने इस बेखयाली पर गुस्सा आया। भूख लगी है? मम्मी जब जबरदस्ती उसके मुँह में रोटी ठूँसेंगी तब पता चलेगा।

“भूख लगी है? मैं सब समझती हूँ। जरूर कोई होम वर्क रह गया होगा।” मम्मी बोली, उसका कान उमेंठती हुई।

“मम्मी! मेरी प्यारी मम्मी, तुम तो सब समझती हो। मुझे कब भूख लगती है, कब नाश्ता करना है, कब नहाना है, कब सोना है, कब स्कूल जाना है और टीचर ने कौन सा होमवर्क दिया है; तुम सब समझ जाती हो।” विकी मम्मी की खुशामद करने लगा।

“हाँ, हाँ! सब समझ जाती हूँ। यह भी कि टॉफी चुराने के लिए तुम कब स्टूल को सरका कर अलमिरा के पास ले आओगे।” माँ ने चुटकी ली।

विकी ने शरमाकर अपना मुंँह माँ की आँचल में छिपा लिया।

माँ विकी को दूध पीने के लिए मनाने लगी। विकी ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दी, गट, गट, गट। दूध ज्यादा गरम न था। विकी को जल्दी थी। माँ से उसे अभी बहुत सारे शब्दों के अर्थ जो पूछने हैं।

“शाबास! हमारा विकी राजा बेटा है।” माँ प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरने लगी - “अब चलो, स्कूल के लिए तैयार हो जाओ। मैं तुम्हारा युनीफॉर्म लेकर आती हूँ।” मम्मी अलमिरा की ओर चली गई।

विकी फिर उदास हो गया। वह अपनी बातें कहाँ से शुरू करे। सरकार? नहीं, नहीं। हूँ .... आतंकवाद? ऊ हूँ। तो फिर? आतंकवादी?

तभी युनीफॅर्म लेकर माँ सामने आ गई। “विकी, चलो कपड़े बदल लो। स्कूल के लिए देर हो जायेगी।

विकी कुछ न बोला

“तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न? आज इतने गुमसुम क्यों बैठे हो? स्कूल नहीं जाना है?” ढेर सारे प्रश्न करती हुई माँ विकी के मस्तक पर हथेली रख कर ताप मापने का उपक्रम करने लगी। “मैं सब समझती हूँ। बहाना-वहाना कुछ नहीं चलेगा। चलो, युनीफॉर्म पहनो। चलो, चलो।”

विकी के मन में संघर्ष छिड़ा हुआ था। अपनी बात भला कहाँ से शुरू करे वह? आखिर उसने पूछ ही लिया - “मम्मी! मम्मी, एक बात पूछूँ?”

“पूछो, इसीलिए उल्लू बने बैठे हो।”

“मरने वाले वे सारे लोग हमारे रिश्तेदार हैं?”

“कौन लोग? मरने वाले कौन? हाँ?”

“ओ, हो! मम्मी वही लोग,” विकी को मम्मी की अज्ञानता पर झुँझलाहट हुई, “सुबह जिसकी खबर सुनकर पापा काफी बौखला से गए थे।”

“कहाँ-कहाँ की बातें लिए बैठे हो, शैतान कही के। किसने खबर लाई थी। चलो शर्ट पहनो।” विकी की बातों को अनसुना करके मम्मी उसका शर्ट बदलने लगी।

“बताइये न मम्मी?”

“किस खबर की बात कर रहे हो?”

“वही, सुबह समाचार वाली, जिसमें आतंकवादियों ने कई लोगों को गोलियों से भून डाला है। बताइये न मम्मी, क्या वे हमारे रिश्तेदार थे?”

मम्मी एकबारगी चौक गई। मामला संजीदा है। उन्हें कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। तो क्या वह इस बात को टाल दे? नहीं, ऐसी-वैसी बातों से विकी आज मानने वाला नहीं है। उसके तेवर बता रहे हैं कि उसे जवाब चाहिए ही।

“बेटे, तुम्हें इससे क्या? चलो, स्कूल के लिए तैयार हो जाओ।”

“नहीं! पहले आप मुझे बताइये कि आतंकवाद, आतंकवादी, राज्य, सरकार, ये सब क्या हैं?” विकी अड़ गया।

बेटे अभी तुम ठीक से समझ नहीं पाओगे। पढ़ लिख लो। बड़े होने पर खुद ही समझ जाओगे।” मम्मी ने समझाने का प्रयास किया।

पर विकी भी कमर कसकर मैदान में उतरा था, मचलने लगा - “बताइये न मम्मी।”

“अच्छा, सुनो।” मम्मी ने समझाना शुरू किया। “मरने वाले वे लोग चाहे हमारे रिश्तेदार न हों, पर उनके भी तो परिवार होंगे न। तुम्हारे जैसे उनके भी प्यारे-प्यारे बच्चे होंगे, है न? अब उन बच्चों को कौन प्यार करेगा? इसीलिए तुम्हारे पापा दुखी हो रहे होंगे। आखिर वे हैं तो अपने ही देशवासी न। इस नाते वे हमारे रिश्तेदार भी तो हुए। है न?”

“क्या इन लोगों ने कोई गलती की थी?”

“नहीं! वे सब निर्दोष थे। आतंकवादी बिना किसी कारण लोगों को मारते हैं।”

“पर क्यों मम्मी?”

सरकार को परेशान करने के लिए, अपनी बातें मनवाने के लिए।”

“तो क्या आतंकवादी लोग अच्छे नहीं होते? इतने बुरे होते हैं?” विकी के मन में अब डर समाने लगा था। अ्रगर आतंकवादी उसके भी मम्मी-पापा को मार देंगे तो कौन उसे प्यार करेगा? नहीं, नहीं। ये आतंकवादी जरूर बुरे लोग होते हैं; हम जैसे बच्चों के मम्मी-पापा को मार जो डालते हैं। विकी भय से काँपने लगा। उसे लगा, आतंकवादी उसके मम्मी-पापा को मारने आ रहे हैं।

विकी की हालत देखकर मम्मी घबरा गईं। वह उसे गोद में लेकर चूमते हुए बोली - “नहीं बेटे, आतंकवादी लोग बुरे नहीं होते। ये तो बस शरारती होते हैं। दूसरों के बहकावे में आकर वे ऐसा करते हैं। जिस दिन वे इस बात को समझ जायेंगे, सब ठीक हो जायेगा। अब चलो तैयार हो जाओ। देखो! बस आ गई।”

पीठ पर बस्ता लादकर विकी बस में जा बैठा, बिलकुल बेमन।

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स्कूल में सारा समय वह उन्हीं बातों से संघर्ष करता रहा। पढ़ाई में जरा भी मन न लगा। टीचर के किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे पाया, और इस बात पर उसे डांट भी खानी पड़ी।

घर लौटने के बाद भी उसकी यही हालत बनी रही। होमवर्क में जरा भी मन नहीं लग रहा था। रह-रहकर वह कॉपी में कुछ लिखता और फिर फाड़कर फेंक देता। न जाने किस प्रेरणा से फिर नये सिरे से लिखना शुरू कर देता। पापा ऑफिस से लौटे नहीं थे। मम्मी किचन में रात का भोजन तैयार कर रही थी। अब की बार कॉपी के पन्नों पर उसका अंतर्द्वन्द्व इस प्रकार उतरने लगा-

प्रिय आतंकी अंकलों,

नमस्ते।

मैं आप लोगों के बारे में सही-सही कुछ भी नहीं जानता। टी. व्ही. पर आने वाले समाचारों से ही मैं आप लोगों के बारे में कुछ जानने लगा हूँ। मम्मी कहती हैं कि आप लोग बुरे नहीं हैं। मेरी मम्मी मुझे बहुत प्यार करती हैं। वह मुझसे कभी झूठ नहीं बोलती। आप लोग अच्छे आदमी ही हैं न? तो फिर मुझ जैसे बच्चों के मम्मी-पापा को आप लोग मारते क्यों हैं? ऐसे समाचार सुनकर मेरे पापा काफी दुखी हो जाया करते हैं। आप लोग क्या मेरे भी मम्मी-पापा को मार डालोगे? नहीं, नहीं। मम्मी कहती हैं कि आप लोग दूसरों के बहकावे में आकर ऐसा करते हैं। आप लोग ऐसा क्यों करते हैं? कभी मुलाकात होने पर मैं आप लोगों से विनती करूँगा कि मुझ जैसे बच्चों के मम्मी-पापा को आप लोग न मारा करें। क्या आप लोग मेरी विनती नही मानेंगे?

आपका.... विकी।