विक्टर ह्यूगो के उपन्यास से प्रेरित फिल्म / जयप्रकाश चौकसे

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विक्टर ह्यूगो के उपन्यास से प्रेरित फिल्म
प्रकाशन तिथि : 20 मई 2019


कान फिल्म समारोह में सबसे अधिक चर्चित फिल्म विक्टर ह्यूगो के उपन्यास 'लेस मिसरेबल्स' से प्रेरित है। फ्रांस में जन्मे विक्टर ह्यूगो की मृत्यु मात्र 50 वर्ष की उम्र में हो गई परंतु उन्होंने अल्प जीवन काल में भी बहुत-सा सृजन किया। उनकी रचना 'द हंचबैक ऑफ नोट्रे डेम' से प्रेरित फिल्म कई बार बनाई गई है। कुछ वर्ष पूर्व दक्षिण भारत में 'आई' नामक फिल्म बनी थी। जिस पर हंचबैक का ही प्रभाव है। 'आई' का नायक सुगठित शरीर वाला श्रेष्ठ मॉडल है। उससे जलने वाले लोग एक षड्यंत्र करके खतरनाक वायरस का इंजेक्शन उसे लगा देते हैं। उसके शरीर में आमूल परिवर्तन होने लगते हैं। सुंदर शरीर बेडौल हो जाता है, जगह-जगह फोड़े हो जाते हैं। वह कुबड़ा हो जाता है। बहरहाल, फिल्म में वह सारे खलनायकों को वही वायरस इंजेक्ट करता है।

बहरहाल, 'लेस मिसरेबल्स' का नायक बचपन में अपनी भूखी एवं बीमार मां के लिए रोटी चुराता है। उसे 5 वर्ष का कारावास दिया जाता है। इसी तरह का दृश्य राजकपूर की 'आवारा' में भी है। जेल में उसे रोटी मिलती है तो वह कहता है कि यह कमबख्त रोटी बाहर मिल जाती तो वह अपराध ही क्यों करता? याद आता है अल्लामा इकबाल का शेर 'जिस खेत से दहक़ां को मयस्सर नहीं रोज़ी उस ख़ेत के हर ख़ोशा-ए-गुन्दम को जला दो'। इस उपन्यास का नायक सारा जीवन नेकी के काम तो करता है परंतु उससे अपराध भी होते जाते हैं। जीवन के पथ पर गड्ढे ही गड्ढे हैं और वह वहां बार-बार गिरता है। हर बार वह उठकर दुगने जोश से जीने लगता है। हमारे यहां एक लोकप्रिय भ्रम यह है कि कुछ लोगों की जन्म कुंडली में शनि की साढ़े साती की दशा हमेशा बनी रहती है। यह भी भ्रामक है कि इस तरह की कुंडली वाला कभी सुखी जीवन नहीं जी पाता। सोचिए कि कोई कुंडली का ग्रह बुरा क्यों हो सकता है। जिस तरह हमने अभिशाप और वरदान गढ़े हैं, वैसे ही शनि की साढ़े साती को भी गढ़ा है। अनीस बज्मी की निर्माणाधीन फिल्म 'पागलपंती' के नायक को भी शनि की साढ़े साती की दशा है। इस हास्य फिल्म में कहीं किसी धारणा या मिथ का मखौल नहीं बनाया गया है। यह माना जा सकता है कि 'लेस मिसरेबल्स' के नायक को भूख और अभाव ने बड़े प्यार से पाला है। यह चरित्र स्याह, सफेद, धूसर से भी परे जाता है। इसे किस रंग का पात्र कहे? इस पात्र के जीवन में इतने उतार-चढ़ाव आते हैं कि जेल में कई बरस बिताने वाला व्यक्ति शहर का मेयर भी चुना जाता है। यह बात थॉमस हार्डी के उपन्यास 'मेयर ऑफ कैस्टरब्रिज' से कुछ हद तक मिलती है। साहित्यकार अपने पात्रों को विविधता देता है। हर पात्र में उसके अपने जीवन के अनुभव शामिल होते हैं। ईश्वर की सृष्टि भी विविधता से रची गई है। नज़दीक लगे वृक्षों के पत्ते भी अलग-अलग होते हैं। अपने जीवन के एक दौर में विक्टर ह्यूगो को पेरिस से निष्कासित कर दिया गया था परंतु बाद में भूल सुधारकर उन्हें वापस बुलाया गया तो सारे शहर ने उन्हें बहुत सम्मान दिया। इसी की लहर पर सवार होकर उन्होंने यह मांग भी रख दी कि अब पेरिस को ह्यूगो नगर का नाम दिया जाए। इसे स्वीकार नहीं किया गया। हमारे देश में भी मुगलसराय शहर का नाम बदला गया है परंतु उसे लोग मुगलसराय कहना पसंद करते हैं। मुंबई के वार्डन रोड का नाम भूलाभाई देसाई रोड रखा गया परंतु सब वार्डन रोड ही कहते हैं।

बहरहाल, 'लेस मिसरेबल्स' पर कई बार फिल्में बनी हैं। फ्योदोर दोस्तोयव्स्की के उपन्यास 'क्राइम एंड पनिशमेंट' पर भी फिल्में बनी हैं। फ्योदोर दोस्तोयव्स्की की कथा 'व्हाइट नाइट्स' से प्रेरित मनमोहन देसाई की फिल्म 'छलिया' सफल रही परंतु इसी कथा से प्रेरित 'सांवरिया' असफल रही। फिल्मकार का नज़रिया और प्रस्तुतीकरण महत्वपूर्ण होता है। विक्टर ह्यूगो ने आत्मकथा नहीं लिखी परंतु उनका जीवन और व्यक्तित्व उनकी कृतियों में किश्तवार जाहिर हुआ है। ज्ञातव्य है कि लेस मिसरेबल्स के नायक के जीवन की घटना पर नाटक 'प्रीस्ट एंड कैंडलस्टिक' अत्यंत लोकप्रिय रहा है।