विचारधारा / संजय पुरोहित
”बाबूजी, ये मूर्ति किसकी है, देखो कितनी साफ सुथरी है, लगता है इसकी खूब साफ सफाई होती है।”
”बेटा, ये महापुरूष हैं प.दीनदयाल उपाध्याय, बहुत बड़े देश भक्त थे, इस मूर्ति की हर सप्ताह सफाई होती है। तुम्हें मालूम है कि राज्य में इनकी विचारधारा वाले लोगों की सरकार है।”
”उधर देखो बाबूजी, वो रही चाचा नेहरू और इन्दिरा गाँधी की मूर्तियाँ, ऐसा लगता है, इन्हें कभी कभी ही साफ किया जाता है।”
”बेटा, अभी केन्द्र में इनकी विचारधारा वाले लोगों की सरकार है, लेकिन राज्य में नहीं, इसलिये कभी-कभी ही इन मूर्तियों की सफाई हो पाती है, वैसे इनकी पार्टी की सत्ता वाले राज्यों में इनकी मूर्तियाँ भी खूब चमकती है।”
”वो तो देखो, बाबा साहब की मूर्ति, बाबूजी, हमारा संविधान इन्होंने ही लिखा था ना?”
”हाँ बेटा, इनकी मूर्ति हमेशा साफ-सुथरी और चमकती है। इनकी विचारधारा वाले लोगों का सरकार में बड़ा योगदान रहता है।”
”और वो देखो बाबूजी, हमारे स्वर्गीय महाराजा की मूर्ति। कितनी शानदार, चमकीली और साफ सुथरी।”
”बेटा, इस मूर्ति का रख-रखाव निजी हाथों में है। और तुम्हें मालूम है निजी संस्थान अपनी सम्पत्तियों का और विचारधारा का कितना ख्याल रखते हैं।”
”और बाबूजी, वो मूर्ति किसकी है ? चेहरा भी साफ नहीं दिखाई दे रहा है, ये प्रतिमा तो पक्षियों की बीटों से भरी हुई है। देखो, एक पक्षी ने तो घोंसला ही बना लिया है, क्या इसकी साफ सफाई कभी नहीं होती?”
”बेटा, वो बापू की प्रतिमा है, वैसे शहीद दिवस और गाँधी जयन्ती पर इसकी भी साफ सफाई होती है। बस फिर एक साल तक ये पक्षियों का आशियाना बन जाती है।”
”तो क्या बापू की विचारधारा वाले लोगों की सरकार कहीं नहीं है ”
”पता नहीं बेटे।”