विचार / शशि पुरवार
कमला बाई के पति का 15 दिन पहले ही स्वर्गवास हुआ था, कि पुनः 15 दिन के बाद उसका बड़ा बेटा भी स्वर्ग सिधार गया, यह खबर सुनकर सभी परेशान हो गए कि बेचारी कितने कष्ट सह रही है दुःख का पहाड़ टूट गया उस पर।
15 दिनों के बाद पुनः कमला काम पर आने लगी पर पहले की अपेक्षा अधिक शांत थी। एक दिन मैंने उसके दुःख में शामिल होने के उदेश्य से बात की शुरुआत की --
"तुम्हारे घर में कौन कौन है कमला, अभी तो बहुत परेशानी होती होगी, यह अच्छा नहीं हुआ, बहुत दुःख हुआ सुनकर।"
"नहीं बाई घर तो पहले जैसा ही चल रहा है, बड़ा बेटा भी बाप की तरह दारु पीता था, घर में कोई मदद नहीं करता था इसीलिए बहु भी बहुत पहले उसे छोड़कर मायके चली गयी थी, बाप बेटे दोनों ने अपने कर्म की सजा भुगती है, दारु पीने से भी कभी किसी का भला हुआ है आजतक।"
"हाँ वह तो है, लोग सब कुछ जानने के बाद ऐसी गलती करते है"
"बस मुझे तो अपने नाती की चिंता है, जहाँ माँ होगी वह तो वहीँ रहेगा, सोचती हूँ छोटे बेटे के साथ लगन कर दूं बड़ी बहु के साथ, जिससे अपना खून भी अपने घर आ जाये, मेरा बेटा बहुत सुन्दर, ऊँचा पूरा है, अच्छा कमाता है वही घर भी चलाता है, बस बहु के मायके खबर कर देती हूँ। उसके माता पिता बहु को राजी कर लेंगे।"
"अच्छा विचार है, तुम्हारा बेटा तैयार है"
"हाँ वह तैयार है, बहु को भी मना लेंगे, बस जल्दी बरसी करके यही काम करूंगी। मेरा नाती भी घर आ जायेगा फिर".
मै उसकी समझदारी पर उसे देखती ही रह गयी। एक संतुष्ट भाव था चहरे पर। झोपड़ी में रहने वाली कितनी आसानी से जीवन के पन्नो को समेटती जा रही थी। आज अशिक्षित होकर भी उसके विचार कितने ऊँचे है।