विज्ञानं बनाम समाज की प्रयोगशाला / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :30 दिसम्बर 2015
दक्षिण के सफल निर्देशक शंकर को अब राजामौली की 'बाहुबली' से आगे निकलना है। उन्होंने अपनी रजनीकांत अभिनीत 'एंदीरन-2' की पटकथा आमिर को पढ़ने दी और स्पष्ट किया कि इसमें नायक और खलनायक की भूमिकाओं का समान महत्व है और भूमिका चुनने का प्रथम हक स्वयं रजनीकांत ने दिया है परंतु पटकथा पढ़ने के बाद आमिर खान दोनों ही भूमिकाएं करना चाहते थे। शंकर को यह स्वीकार नहीं था। ज्ञातव्य है कि शंकर ने शाहरुख खान के साथ 'एंदीरन' बनाने की योजना बनाई थी परंतु शाहरुख खान का आग्रह था कि फिल्म के 'विशेष प्रभाव' उनके मुंबई स्थित स्टूडियो में किए जाए, जबकि शंकर यह काम दक्षिण में ही करना चाहते थे। अत: बात नहीं बनी और शंकर ने रजनीकांत के साथ उसी पटकथा पर सुपरहिट फिल्म बनाई और शाहरुख ने स्वयं 'रा.वन' नामक हादसा रचा।
अब खलनायक की भूमिका अक्षय कुमार करने जा रहे हैं और नायक की भूमिका रजनीकांत करेंगे। अत: शंकर अपनी इस फिल्म के साथ राजामौली से आगे निकलकर अपना शिखर सिंहासन वापस लेना चाहते हैं। वर्ष 1833 में महान विज्ञान फंतासी लेखक एचजी वेल्स ने मानव मशीन रोबो की कल्पना की थी और उनकी अनेक फंतासियों को विज्ञान ने यथार्थ रूप में प्रस्तुत कर दिया। अमेरिका में रोबो को लेकर अनेक फिल्मों की रचनाएं की गई हैं। स्टीवन स्पीलबर्ग ने 'आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस' नामक फिल्म में मध्यम आयु की नि:संतान विधवा की कहानी प्रस्तुत की है, जो अपने एकाकीपन से ऊबकर एक कंपनी को ऑर्डर देकर पांच-सात वर्षीय बच्चे जैसा रोबो बनाने को कहती है, जो घर के काम में उसकी मदद भी करने लगा। महिला भी रोबो को यथार्थ पुत्र की तरह स्नेह करती हैं और रात में उसे कंबल भी ओढ़ा देती है। फिल्म के क्लाइमैक्स में जब महिला को लाइलाज कैंसर हो जाता है, तो एक मार्मिक दृश्य में रोबो की आंख से आंसू झरते हैं।
स्टीवन स्पीलबर्ग स्पष्ट संकेत करते हैं कि मानव जीवन में संवेदनाएं घट रही हैं और उनका रोबोकरण हो रहा है, जबकि लेबोरेटरी में रचे मशीनी मानव में संवेदना हो सकती है। एचजी वेल्स की एक कथा में वैज्ञानिक की किशोरी बेटी कहती है कि उनका बनाया रोबो कभी-कभी उसे प्रेम की कविताएं सुनाता है और प्रेम निवेदन भी करता है। वैज्ञानिक पिता का कहना है कि यह संभव नहीं, क्योंकि उन्होंने रोबो की प्रोग्रामिंग इस तरह नहीं की है और वह बेटी को आगाह करता है कि वह उसके नज़दीक नहीं जाए, क्योंकि सेल्फ डिफेंस के लिए वह प्रोग्राम्ड है कि लोहे के हाथों से निकट आने वाले को कुचल दे। एक शाम वैज्ञानिक पिता अपनी किशोरी बेटी की मृत देह रोबो के पैरों के पास देखता है। उसके दु:ख को व्यक्त करना संभव नहीं, वह रोबो को डिसमेंटल करता है और उसके मेमोरी सेल की मास्टर मेमोरी से तुलना करता है, तो उसे आश्चर्य होता है कि प्रेम निवेदन और मीठी बातें कहां से आईं। कुछ दिन बाद उसे ज्ञात होता है कि उस लैब के नीचे एक बगीचा है, जहां युवा प्रेमी आते हैं। किसी समय रोबो का मेमोरी सेल खुला रह गया और ये प्रेमालाप उसके सेल में रिकॉर्ड हो गया। दरअसल, यह रोबोनुमा प्रोग्रामिंग केवल विज्ञान की लैब में नहीं होती। समाज की प्रयोगशाला में मनुष्यों के दिमाग को प्रोग्राम किया जाता है। कई राजनीतिक दल भी अपने सदस्यों की प्रोग्रामिंग करते हैं, इसलिए टीवी पर प्रस्तुत बहसों में हम प्रोग्राम्ड दिमागों का प्रलाप सुनते हैं। जो व्यक्ति इस प्रोग्रामिंग से बाहर जाकर अपने विचार अभिव्यक्त करता है, उसे दल से निष्कालित कर दिया जाता है। मनुष्यों का अलग विचार रखते हुए एक साथ शांति से रहना ही प्रकृति का नियम है परंतु प्रोग्राम्ड व्यक्ति लांग प्ले रिकॉर्ड की तरह बजता रहता है। दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं, 'चाहे जैसे बजाइए हमको इस सभा में, हम नहीं आदमी, हम झुनझुने हैं।'
बाजार और विज्ञापन की ताकतें भी मनुष्य को चाबी से चलने वाला रोबो बनाती हैं। दवा कंपनी के प्रतिनिधियों को जो वाक्य रटाए जाते हैं, वे सुनकर तो वे अंग्रेजी में प्रवीण लगते हैं परंतु सामाजिक व्यवहार में उनके ज्ञान की पोल खुल जाती है। अवाम को क्या खाना है, क्या सोचना है और क्या पहनना है, यह भी बाजार द्वारा प्रोग्राम्ड है। अब तो मनुष्य परिवर में किसी की मृत्यु पर पहले सोचता है कि उसे कैसा व्यवहार करना है अर्थात रोना-हंसना सब पूर्व नियोजित हो चुका है। बाजार और समाज की प्रयोगशाला, विज्ञान की प्रयोगशाला से बेहतर रोबो रच रही है। इस प्रयोगशाला में रचे रोबो के मुंह से कभी कविता या प्रेम की बात नहीं निकल सकती। इस प्रयोगशाला के निकट कोई बगीचा नहीं है।