विज्ञान का आनंद गणित / जयप्रकाश चौकसे

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विज्ञान का आनंद गणित
प्रकाशन तिथि : 08 अगस्त 2014


दिग्गज महारथी फिल्मकारों के इतिहास में बॉक्स ऑफिस पर सफलतम फिल्मकार दादा कोंडके रहे हैं जिन्होंने लगातार अठारह सुपरहिट फिल्में मराठी में बनाई आैर हिन्दुस्तानी में भी 'पांडू हवलदार', 'अंधेरी रात में, दिया तेरे हाथ में' में इत्यादि सफल फिल्में बनाई हैं। उनकी फिल्मों में ग्रामीण पुरुष समाज मेंं प्रचलित मजाक होते थे आैर उन्हें मराठी भाषा के ही अनेक लोग अश्लील मानते थे। उन्हीं के द्विअर्थी संवादों से कादर खान ने प्रेरणा ली, मेहमूद का हास्य भी कभी-कभी वैसा ही होता था परंतु जॉनी वॉकर ने कभी इस तरह की बातों का सहारा नहीं लिया। दरअसल इस तरह का हास्य नौटंकी आैर पारसी थियेटर में भी रहा है। सारी लोक संस्कृति में अश्लीलता की सरहद तक पहुंचा भोंडा हास्य रहा है। लखनऊ स्थित एक ग्रामोफोन कंपनी अपने 'अटारी पर हवलदार' नुमा भौंडे लोक गीतों के लिए लोकप्रिय रही है। 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है' आैर 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली' भी उत्तर प्रदेश के लोक गीत रहे हैं।

इस 'कोंडकाई' धारा के समानांतर ही विशुद्ध हास्य भी सिनेमा में मैजूद रहा है आैर ऋषिकेश मुखर्जी की एक फिल्म में इसे 'निर्मल आनंद' कहा गया है जो 'धूमिल आनंद' के अस्तित्व को स्वीकार करने की तरह है। हास्य की उच्चतम श्रेणी में किशोर कुमार की 'चलती का नाम गाड़ी', मेहमूद की 'पड़ोसन', गुलजार की 'अंगूर' आैर ऋषिकेश मुखर्जी की 'गोलमाल' शामिल हैं। पाठकों के आग्रह के बावजूद कपिल शर्मा को अनदेखा करने का एक कारण तो यह है उसके शो का फॉर्मेट विदेश से मारा हुआ है। पियक्कड़ दादी, चौंवालीस वर्षीय कुंआरी बुआ बिना वेतन का नौकर बाहरी प्रेरणा की मौजूदगी पर पाकिस्तान के टी.वी. का असर है। कपिल अच्छा अभिनेता, गायक है आैर संवाद अदायगी में कमाल की टाइमिंग है परंतु उसकी अपनी 'पत्नी' का अभद्र मखौल हजम करना मुश्किल है। दरअसल टेलीविजन के सारे हास्य का आधार महिला अपमान ही रहा है। बहरहाल विगत चालीस वर्षों से कुछ वैज्ञानिक आनंद का नाप तौल खोजने में लगे हैं आैर हास्य के माद्दे को लेकर देशों का श्रेणीकरण भी किया जा रहा है। बाजार इस तरह के शगूफे रचता है। मुस्कान के नाप से आनंद की अनुभूति का वजन भी खोजने के हास्यास्पद प्रयास भी होते रहे हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने विश्व प्रसिद्ध पेटिंग मोनालिसा की मुस्कान का गणित भी प्रस्तुत किया है। उनका आकलन है कि मुस्कान में 83 प्रतिशत खुशी, 9 प्रतिशत विद्रूप, 6 प्रतिशत डर आैर दो प्रतिशत क्रोध है। बेचारे लिआेनार्डो डा विंची को मरकर भी चैन नहीं मिल रहा है। फैशन बाजार में नितंब, छाती, कमर के नाप के आधार पर महिलाओं का श्रेणीकरण भी अमानवीय है। अब किसी चेहरे पर आधा इंच मुस्कान, 3/4 इंच मुस्कान जैसी वाहियात बातों से आनंद को किलोग्राम में तोलने का क्या अर्थ है|

ऋतिक रोशन के दादा संगीतकार रोशन 1967 में हरिवालिया की दावत में लतीफे सुनाते रहे, ठहाके मारते रहे आैर क्षणांश में तीव्र ह्रदयघात से गिरकर मर गए आैर उस समय उनके चेहरे पर उनके ठहाके की खुरचन की तरह एक मुस्कान कायम थी। मृत्यु की गोद में लेटे व्यक्ति की मुस्कान को शोधकर्ता क्या कहेंगे- चरम आनंद। उन तवायफों की मुस्कान को क्या कहेंगे जो बदशक्ल बदमिजाज ग्राहक के आनंद के लिए शरीर कुटवाने से अधिक मुस्कराती हैं। आनंद सचमुच में आनंद ही है यह बताना कठिन है- सारा मामला अलसभोर की तरह है जिसमें दु:ख का चंपई अंधेरा है आैर आनंद का सुरमई उजाला है। एक अमीर जादा महंगी स्पोर्टस कार पाकर खुश होता है, कांकेर की जनजाति नमक मिलने पर खुश होती है। सड़क पर धन प्राप्त करने के लिए स्वयं अपनी पाठ को हंटर से लहुलुहान करने वाला पेट भरने की आशा में हंटर खाकर खुश है। आनंद की परिभाषा में इतिहास की भूमिका को अनदेखा नहीं कर सकते। हिटलर ज्यू जाति को कष्ट देकर आनंदित होता था आैर अब उसी जाति का इजराइल गाजा में बच्चों को मारकर खुश हो रहा है। नूरजहां ने गुलाब के इत्र की खोज की थी परंतु वह अपने आनंद के लिए मुजरिमों को हाथियों से कुचला देती थी।

वैज्ञानिकों के दल का कहना है कि आनंद का यह नाप तौल सरकारों को जनहित में नीतियां बनाने में सहायता देगा। शायद ऐसे ही किसी आकलन से भारतीय रेल में विदेशी निवेश द्वारा शानदार स्टेशन, साफ सुथरी वातानुकूलित गाडिया, सस्ती पैसेंजर ट्रेन को रद्द करना किया जा रहा है गोयाकि शाइनिं भारत के लिए रचा जा रहा है परंतु इस निवेश पर लाभ कमाने वाले व्यापारी रेल भाड़ा इतना बढ़ा देंगे कि गरीब के लिए यात्रा असंभव हो जाएगी। दरअसल सभी क्षेत्रों में सारी संरचना ऐसी ही की जा रही है गोयाकि आनंद भारत आैर असहाय भारत- दो खंडों में विकास होगा। यह भी संभव है कि विज्ञान, समय की नदी के दूसरे किनारे से आए नवजात शिशु की मुस्कान से ईश्वरीय स्पर्श को अलग करके आकलन करें, बोतलबद्ध बेचें।