विटोरियो डि सिका की 'बायसिकल थीव्ज' और साइकल की वापसी / जयप्रकाश चौकसे

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विटोरियो डि सिका की 'बायसिकल थीव्ज' और साइकल की वापसी
प्रकाशन तिथि : 06 दिसम्बर 2019


राकेश आनंद बक्षी फिल्मकारों और तकनीशियनों के साक्षात्कार प्रकाशित करते हैं। उन्होंने सेट और लोकेशन पर यूनिट सदस्यों को चाय पिलाने वाले स्पॉट बाॅयज से भी मुलाकातें की हैं। फिल्म यूनिट में अमूमन सौ के लगभग सदस्य होते हैं। स्पॉट बॉयज सबकी सेवा करते हैं। फिल्म की नामावली में उनका नाम आता है, जो दर्शक के पलक झपकते ही चला जाता है।

परंतु एक क्षण के लिए वे जी तोड़ परिश्रम करते हैं। उन्हें प्रसन्नता होती है जब कोई सितारा उनके नाम से बुलाता है। फिल्म जगत में कभी धर्म देखकर काम नहीं दिया जाता। काबिलियत एकमात्र गुण है। यहां गुण-अवगुण के परे जाकर भी मात्र मनुष्य होने को सम्मान दिया जाता है।

राकेश आनंद बक्षी साधनहीन लोगों को साइकल उपलब्ध कराते हैं। प्रदूषण की भयावह समस्या से निजात दिलाने के लिए साइकल के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। पेरिस में सार्वजनिक स्थल पर कार पार्किंग से कई गुना अधिक स्थान साइकल पार्किंग के लिए आरक्षित होता है। भारत में मुंजाल बंधुओं ने बड़े पैमाने पर साइकलों का उत्पादन किया। उनके कारखानों की यात्रा करने का सुखद अनुभव है। अरसे पहले खाकसार ने उनकी साइकल की विज्ञापन फिल्में भी बनाई थीं। इंदौर में भी दवाओं की थोक बिक्री करने वाले पंसारी परिवार के सदस्य छुट्टी के दिन साइकल चलाते हैं और इंदौर से भोपाल तक की यात्रा भी बिना रुके पूरी कर चुके हैं। एक दौर में पूना और इंदौर में साइकल का उपयोग सबसे अधिक किया जाता था।

सन 1948 में इटली में बनी फिल्म 'बायसिकल थीव्ज’ क्लासिक मानी जाती है। विटोरियो डि सिका की फिल्म में दूसरे विश्व युद्ध के समय आर्थिक तंगी और बेरोजगारी के रोग से सभी ग्रस्त थे। दीवारों पर पोस्टर चिपकाने का काम उसी व्यक्ति को दिया जा सकता था, जिसके बाद साइकल हो। पोस्टर चिपकाते हुए व्यक्ति की साइकल चोरी चली जाती है। चोरी की रपट के कारण चोर पकड़ा जाता है। परंतु जब वह देखता है कि उसकी साइकल चुराने वाले का बालक भूखा है तो वह अपनी साइकल की पहचान जान-बूझकर नहीं करता। अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों ने अरसे पहले ही चेता दिया था कि 2022 में वैश्विक आर्थिक मंदी आने वाली है। तमाम देश इसके लिए तैयारी कर रहे हैं। हुक्मरान के पोस्टर दीवारों पर लगाने का काम पाने के लिए साइकल होना आवश्यक होगा। लगता है कि साइकल के दिन फिरने वाले हैं। उसके अच्छे दिन अवश्य आएंगे।

राकेश आनंद बक्षी की अन्य 'किताब’ में उन्होंने रेडियो और टेलीविजन पर बातचीत प्रस्तुत करने वालों के साक्षात्कार लिए हैं। उन्होंने अमीन सयानी, ममता सिंह, गौरव श्रीवास्तव इत्यादि लोगों के साक्षात्कार लिए हैं। बिनाका गीतमाला प्रस्तुत करने वाले अमीन सयानी ने सितारों के समान लोकप्रियता अर्जित की थी। मेहमूद ने अपनी एक फिल्म 'भूत बंगला’ में राहुल देव बर्मन और अमीन सयानी से अभिनय कराया था। रेडियो और टेलीविजन पर न्यूज प्रस्तुत करने वाले लोगों को अनेक पाबंदियां झेलनी होती हैं। मीडिया उतना स्वतंत्र नहीं है, जितना वह अपने को दिखाता और सुनाता आया है। बकौल निदा फाजली 'जंजीरों की लंबाई तक है सबका सैर सपाटा, ये जीवन शोर भरा सन्नाटा, चारों ओर चट्टानें घायल बीच में काली रात, रात के मुंह में सूरज, सूरज में कैदी सब हाथ, नंगे पैर अकीदे सारे, पग-पग लगे कांटा...’

दिन-ब-दिन निरंतर झूठ परोसने वालों की अपनी मजबूरियां हैं। आवाम को उनसे सहानुभूति होना चाहिए। मीर तकी मीर की नज्म इस तरह है- 'अय झूठ आज शहर में तेरा ही दौर है, शेवा (चलन) यही सभी का, यही सबका तौर है, अय झूठ तो सुआर (तरीका) हुआ सारी खल्क (दुनिया) का, क्या शाह का वजीर का, क्या टहले दल (जोगी) का, अय झूठ तेरे शहर में ताबई (अधीन) सभी, मर जाएं क्यों न कोई, वे न बोले सच कभी’ सारांश यह कि झूठ कोई नया आविष्कार नहीं है। वह मीर तकी मीर के जमाने में भी बोला जाता था। आज उसका लिबास नया है, ताब नई है। बहरहाल राकेश आनंद बक्षी जैसे लोग प्रशंसा के हकदार हैं।