विदाई / राजनारायण बोहरे
अगले दिन पता लगा कि दो-चार दिन में ही श्रीराम का राजतिलक होगा। अंगद को लगा कि हमारे यहाँ तो हाल के हाल राजतिलक कर दिया जाता है, यहाँ इतनी देर क्यों हो रही है?
सारा अयोध्या नगर दुल्हन की तरह सजाया जा रहा था।
जाने कहाँ-कहाँ से राजे-महाराजे इस समारोह में शामिलहोने के लिए पधार रहे थे। सबकी अपनी शान शैाकत थी।
भरत, लक्ष्मण और शत्रुहन बहुत व्यस्त थे। वे सबका इंतज़ाम कर रहे थे।
निर्धारित दिन बहुत बड़े समारोह में एक बहुतविशाल सिंहासन पर श्रीराम और सीता बैठे। गुरु वशिष्ठ ने उनका राजतिलक किया।
इसके बाद अलग-अलग राज्यों के राजा-महाराजा श्रीराम के सामने आने लगे वे अपनी ओर से बड़े कीमती तोहफे उन्हे भेंट कर रहे थे।
सारा दिन यह समारोह चला।
संाझ समय सब लोग राज दरबार से वापस हुये तो अपने अतिथिग्रह में पहुँचे। आज घूमने की हिम्मत न थी, सब थक गये थे।
अगले कई दिन यों ही बीत गये। अंगद को लग रहा था कि वे अपने सपनों में देखे गये स्वर्ग जैसे नगर में आ गये हैं बस अब जीवन भर यहीं रहना है।
कभी वे लोग अकेले अयोध्या की यात्रा पर निकल जाते तो कभी श्रीराम के किसी भाई को विनम्रता से रोक लेते ओर अयोध्या के बारे में, श्रीराम के बचपन के बारे में, उनके अनूठे बयाह के बारे में नये किस्से सुनाने का आग्रह करते।
पन्द्रह दिन बीत गये बाक़ी सारे राजा एक-एककर विदा हो गये तो सोलहवें दिन हवा फैली कि अब बानर वीर विदा किये जायेंगे। अंगद घबरा गये। वे कहाँ जायेंगे? पिता की मौत के बाद राम ही उनके पिता थे, अन्यथा किष्किन्धा में तो चाचा सुग्रीव ने उन्हे कभी पंसंद नहीं किया। वहाँ लौटे तो उनका जीवन खतरे में रहेगा। क्योंकि चाचा सुग्रीव अंगद की जगह अपने बेटे गद को राजा बनाना चाहेंगे।
भरे दरबार में श्रीराम ने मल्लाहों के राजा निषाद, लंका के राजा विभीषण, किष्किन्धा के राजा सुग्रीव और दूसरे बानरवीरों को उचित भेंट, कपड़े आदि देकर सम्मानित किया। बाद में दूसरे बानर वीरों को भेंट दी गई।
अंगद एक ओर चुपचाप खड़े थे। उनक दिल बहुत घबरारहा था। कहीं उन्हे विदा न कर दिय जाये, यदि किया गयातो क्या कहेंगे वे भरे दरबार में।
राम ने उनका संकोच समझ लिया, वे ख़ुद राजसिहासन से उठे और अंगद को हाथ पकड़ कर अपने पास लाये। अंगद को काटो तो खून नहीं।
वे रोते से स्वर में बोले "आप मेरे धर्म पिता है। मेरे पिता मुझे आपकी गोद में छोड़ गये है। इसलिए मुझे मत छोड़िये।"
राम बोले "तुम एक राज्य के राजकुमार हो, तुम्हारा किसी दूसरे राज्य में तुम्हारा रहना न तो सम्मानदायक है न ही उचित।"
उन्होंने अंगद के सिर पर हाथ फेरा और सुग्रीव से बोले "महाराज सुग्रीव, याद रखना अंगद मेरा दत्तकपुत्र है। आप इनका ख़्याल रखना। इन्हे जरा-सी भी तकलीफ हुइ्र तो आप ये समझ लें कि अयोध्या राज्य से दुश्मनी मोल ले रहे हैं।"
सुग्रीव की तो डर के मार घिग्धी बंध गई। वे क्या कहते?
राम ने अपने हाथ से अंगद को भेट में दिये वस्त्र पहनाये, भेंट सोंपी।
फिर सब अपने अतिथिग्रह लौट आये।
अंगद रात भर जागते रहे। कभी सोचते कि क्येां न माता सीता से मिल कर अपने अयोध्या में रहने के लिए उनसे कहलाया जाय। या फिर श्रीराम की माता माँ कौशल्या से निवेदन किया जाय। संभवतः गुरु वशिष्ठ भी मददकर सकते हैं।
लेकिन हर बात लगता कि श्रीराम की बात को कोई नहीं काट सकता, इसलिए ऐसा लगता है कि अब जाना ही पड़ेगा। यह समझते ही वे रोने लगे।
रात भर वे जागते रहे, रोते रहे।
कहीं किष्किन्धा में सुग्रीव ने कोइ्र षड़यंत्र करके उनका नुक़सान किया तो क्या होगा?
जैसे-तैसे रात बीती।
सुबह सारी तैयारी थी।
सबके लिए विमान तैयार थे।
एक एक कर सब अपने विमानों में बैठे तो बिलखते हुए अंगद एक बार फिर राम के पैरों में गिरे राम ने उन्हे पीठ पर हाथरख कर ख़ूब ' प्यार किया ओर बोले "तुम वहाँ रहकर भी मेरे पास हो। मेरे जासूस तुम्हारी हर ख़बर मुझे भेजेंगे।"
विलखते हुए अंगद अपने विमान में बैठ गये। हनुमान अंत में उनके पास आये। वे अभी वापस नहीं जा रहे थे। अंगद उनसे बोले "प्रभु को आप लगातार मेरी याद दिलाते रहना और मेरी दंडबत प्रणाम उनसे कहते रहना। बताना कि उनका यह बेटा बहुत असुरक्षित हैं। बस उनका ही दूर का भरोसा है।"
हनुमान ने कहा " श्रीराम को पल-पल की ख़बर है। आप वहाँ भी सुरक्ष्ति हैं। फिर जब मन चाहे आप अयोध्या चले आया करना।
विमान उठा तो अंगद को लग रहा कि-कि कोई उन्हे क़ैद में भेज रहा है, उनका शरीर वापस जा रहा है प्राण तो अयोध्या में ही रह गया है।
अंगद फूट-फूट कर रोते हूए दूर होता अयोध्या नगर देख रहे थे और उनका विमान किष्किन्धा की ओर उड़ा जा रहा था।