विदुषी ट्विंकल खन्ना और नया मंच / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 अक्तूबर 2019
अक्षय कुमार की पत्नी ट्विंकल खन्ना विभिन्न विषयों पर लेख लिखती हैं और उनका कॉलम 'फनी बोन्स' के नाम से प्रकाशित होता है। उनकी किताबें 'लीजेंड ऑफ लक्ष्मी प्रसाद' और 'पजामा आर फॉरगिविंग' प्रकाशित हो चुकी हैं और अब इंटरनेट पर भी वे अभिव्यक्त होने जा रही हैं। गुरुदत्त की 'साहब, बीवी और गुलाम' में इस आशय का संवाद है। "जमींदार घरानों की अन्य बहुओं की तरह गहने तुड़वाओ और गहना बनवाओ" गोयाकि समय काटने के लिए इस तरह के काम करो। ट्विंकल खन्ना इस तरह समय व्यतीत करना पसंद नहीं करतीं। वे पढ़ती और लिखती हैं।
उन्होंने अपनी मां, पति और पालतू कुत्ते के पात्र गढ़े हैं परंतु ये उनकी मां डिंपल कपाड़िया या अक्षय कुमार नहीं हैं। यह सब काल्पनिक पात्र हैं। वे चाहें तो अपने घर के बाहर यह इबारत लिख सकती हैं कि इस घर के सारे पात्र काल्पनिक हैं, जैसे इंदौर की 'विभावरी संस्था' ने अपने द्वार पर लिखा है। ज्ञातव्य है कि ट्विंकल ने बॉबी देओल के साथ फिल्म 'बरसात' से अपनी अभिनय यात्रा प्रारंभ की थी और शाहरुख खान के साथ 'बादशाह' में अभिनय कर चुकी हैं। फिल्मों में मांग कायम होते हुए भी उन्होंने अभिनय से संन्यास ले लिया। यह संभव है कि उन्हें तर्कहीनता से गढ़े गए पात्र अभिनीत करने में रुचि नहीं थी। उनके पिता राजेश खन्ना और माता डिंपल अत्यंत लोकप्रिय कलाकार रहे हैं और डिंपल आज भी चुनिंदा भूमिकाएं अभिनीत करती हैं। उन्होंने 'पटियाला हाउस' और एक अन्य फिल्म में ऋषि कपूर के साथ अभिनय किया है। वे अनीस बज्मी की 'वेलकम' शृंखला में भी काम कर चुकी हैं। यह संभव है कि ट्विंकल खन्ना ने बुद्धि और विट के चलते अभिनय छोड़ दिया हो।
ज्ञातव्य है कि अक्षय अभिनीत 'टॉयलेट एक प्रेम कथा' और 'पैडमैन' का विचार भी उन्हीं का गढ़ा हुआ है। इस तरह वे इस कहावत को ही सिद्ध कर रही हैं कि हर सफल व्यक्ति की सफलता का श्रेय किसी स्त्री को दिया जाता है परंतु किसी पत्नी की सफलता का श्रेय उसके पति को नहीं दिया जाता। हम सब बिना विचार किए ही कुछ बातों को स्वीकार कर लेते हैं। स्त्रियों को समानता का अधिकार नहीं देने के लिए हमने अनगिनत मिथ गढ़े हैं। इस कार्य के लिए संभवत: एक उपकरण के रूप में हमने आईने की खोज की ताकि स्त्री अपना रूप देखते हुए मुग्ध हो जाए। वह आत्म-मुग्ध बनी रहे। पुरुष ने अपनी मनमानी करने के लिए कई जतन किए हैं परंतु वह यह नहीं जानता कि पत्नी के मौन समर्थन से ही यह संभव हो पाया है। इस बात का खुलासा एक नाटक में भी हुआ है - 'शी स्टूप्स टू कॉन्कर'। कभी-कभी मूर्खता का अभिनय करना बड़ा लाभप्रद होता है। इस विषय में कुमार अंबुज का कथन है कि मूर्खता हर बात पर गर्व कर सकती है, जाति पर, अशिक्षा पर और इतिहास पर भी।
सितारा पत्नियां किटी पार्टी आयोजित करती हैं और अनावश्यक वस्तुओं की खरीदी अभियान पर निकल पड़ती हैं। खरीदारी एक नशे का स्वरूप भी ले लेती है। वे लोग अब नहीं रहे जो बाजार से गुजरते तो हैं परंतु खरीदारी नहीं करते। सितारों के चमचे होते हैं, सितारा पत्नियां भी अपने चाटुकार पालती हैं। साधन संपन्न लोगों का शगल होता है समय काटना। मेहनतकश के पास फालतू समय नहीं होता। समय के विषय में जावेद अख्तर की एक नज्म का आशय इस तरह है कि भागती हुई रेलगाड़ी में बैठे व्यक्ति को दरख्त भागते हुए नज़र आते हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि समय स्वयं एक जगह स्थिर है और हम भाग रहे हैं।
ट्विंकल खन्ना आज की सितारा पत्नियों से अलग हैं। आज के दौर में पढ़ना-लिखना आउट ऑफ फैशन होता जा रहा है और सच तो यह है कि व्यवस्था ने अभिव्यक्त विचारों को ही अप्रभावी बना दिया है। गाेयाकि कुएं में ही भांग पड़ी है। ज्ञातव्य है कि भांग की पकौड़ी नामक वयस्कों के लिए लिखी किताब के लेखक का नाम कभी कोई खोज नहीं पाया।