विदेशी फिल्मकार की मुंबई में शूटिंग / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 25 सितम्बर 2019
फिल्मकार क्रिस्टोफर नोलन ने अपनी नई फिल्म 'टेनेट' की शूटिंग मुंबई में की और दस दिन का काम पांच दिन में ही पूरा कर लिया। इसके पूर्व वे अपनी फिल्म 'डार्क नाइट' की शूटिंग जोधपुर में कर चुके थे। हाल ही में की गई शूटिंग के एक दृश्य के लिए
मुंबई के 'गेटवे ऑफ इंडिया' परिसर में उन्हें जोधपुरी कपड़े पहने हुए कुछ लोगों की आवश्यकता थी। उनके निर्माण अधिकारी ने जोधपुर से अपनी पारंपरिक पोषाख को साथ लेकर मुंबई आने की व्यवस्था पहले से कर ली थी। अमेरिकन फिल्मकार पांच से सात सप्ताह की शूटिंग की पूर्व तैयारी महीनों पहले ही कर लेते हैं। क्रिस्टोफर नोलन को मुुंबई में जिन स्थानों पर शूटिंग करनी थी, उन स्थानों का प्रभाव उत्पन्न करने वाले सेट्स भी वे पहले से बनवा लेते हैं। इसी कारण मुंबई में भारी वर्षा के चलते भी वे अपनी शूटिंग करते रहते। ज्ञातव्य है कि फिल्म विरासत को संजोकर रखने का काम करने वाले शिवेंद्र सिंह डंूगरपुर के निमंत्रण पर क्रिस्टोफर नोलन मुंबई आए थे और उन्होंने शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर के काम की सराहना की थी। यह घटना दो वर्ष पहले की है। हॉलीवुड में फिल्म विरासत को सहेजने का कार्य एक संस्था करती है। ज्ञातव्य है कि फिल्म के टाइटल 'टेनेट' का अर्थ है अभिमत या पहले से स्थगित किसी सिद्धांत के प्रति विश्वास। ज्ञातव्य है कि क्रिस्टोफर नोलन दो हमशक्ल जादूगरों की कथा 'प्रिस्टेज' नामक फिल्म में प्रस्तुत कर चुके हैं। एक जादूगर पर अपने हमशक्ल जादूगर की हत्या का आरोप अदालत में सही पाया गया और उसे मृत्युदंड दिया गया। मृत्युदंड दिए जाने के कुछ क्षण पूर्व ही एक व्यक्ति को सजायाफ्ता व्यक्ति से एकांत में मिलने दिया जाता है। मृत्युदंड पाया व्यक्ति कहता है कि उसे मरने का गम नहीं है। मिलने आने वाला व्यक्ति अपने चेहरे से नकली दाढ़ी निकालकर उसे बताता है कि जिस व्यक्ति की हत्या के जुर्म में वह मारा जा रहा है, वह अभी तक जीवित है और उससे रूबरू भी है। अब तुम्हारे प्रतिवाद पर कोई यकीन भी नहीं करेगा। अत: अब तुम्हें मृत्युदंड का गम होगा, क्योंकि तुमने किसी की हत्या की ही नहीं है। यह इसलिए किया जा रहा है कि तुमने जादू की ट्रिक्स अपने जिस गुरु से सीखी, उसी गुरु का तमाशा तुम चौपट कर रहे थे। तुम यह भूल गए थे कि हर गुरु अपने प्रिय शिष्य को भी एक चीज का ज्ञान नहीं देता।
लीक से हटकर बनाई गई क्रिस्टोफर नोलन की सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर धन कमाती हैं। इसलिए कहते हैं कि साहसी विषयों पर भी मनोरंजक फिल्में बनाना चाहिए, क्योंकि मनोरंजन उद्योग की अदालत में अवाम ही न्यायधीश है। इसलिए फिल्में गणतंत्र के मूल्यों का वहन करने में सफल एवं सार्थक रही हैं। संस्थानों और भवनों को ध्वस्त करने के दौर में भी जीवन मूल्य अक्षुण्ण बने रहते हैं, क्योंकि वे अवाम की विचार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं। एक विचाराधीन योजना नए संसद भवन के निर्माण की भी है। नई इमारतों को बनाने से अधिक महत्वपूर्ण है जीवन मूल्यों की रक्षा करना। हमारे फिल्मकार भी विदेश जाते हैं, परंतु उस देश के किसी सांस्कृतिक मूल्य को ग्रहण नहीं करते और न ही परदे पर प्रस्तुत करते हैं। विदेशों में बसे भारतीय हमारी फिल्मों को देखते हैं और ये ही लोग हमारी राजनीति को भी प्रभावित करने की चेष्टा करते हैं। परंतु विगत कुछ वर्षों में उन्होंने भारत के उद्योग-धंधों में पूंजी निवेश नहीं किया है। हाल में रिजर्व बैंक के सूत्रों ने यह तथ्य उजागर किया है कि अप्रवासी भारतीय अपनी रकम भारत से बाहर अपने पास बुला रहे हैं। रुपए के गिरते मूल्य से वे परेशान हैं। उनका स्वदेश प्रेम उनके स्वार्थ द्वारा संचालित है। ये लोग तमाशों में शामिल होते हैं, तालियां बजाते हैं। उनकी भूमिका इतने में ही सिमटी रहती है। हमारे फिल्मकार विदेश में भांगड़ा या गरबा नृत्य शूट करते हैं, परंतु कभी क्रिसमस के उत्सव को नहीं दिखाते। वे 'गुड फ्रायडे' भी बोलते हैं। क्रिस्टोफर नोलन की तरह वे जोधपुर से लोक-गायक आमंत्रित नहीं करते।